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बरकरार रखें। सकारात्मक सोच : तनाव-मुक्ति की औषधि
तनाव-मुक्ति का दूसरा उपाय है- 'सकारात्मक सोच।' व्यक्ति अपनी सोच को सदैव विधायात्मक रखे। जैसी सोच होती है वैसा ही अनुकूल और प्रतिकूल हमारा जीवन होता है। किसी की छोटी-मोटी टिप्पणी पर ध्यान न दें और अपने द्वारा भी छोटी-मोटी घटनाओं पर टिप्पणी न करें। सकारात्मक सोच एक ऐसा मंत्र है जिससे चुटकियों में ही व्यक्ति तनावमुक्त हो सकता है। तनाव-मुक्ति की बेहतर औषधि है 'सकारात्मक सोच'। किसी ने हमारे लिए अच्छा किया और हमने भी उसके लिए अच्छा किया- यह जीवन की सामान्य व्यवस्था है। प्रेम के बदले में प्रेम दिया ही जाता है, लेकिन सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति की यह विशेषता होती है कि वह अपना अहित करने वाले का भी हित करता है, शत्रु में मित्रता के सूत्र तलाशने की कोशिश करता है। वह काँटे बोने वाले के लिए भी फूल बिछाता है। सकारात्मकता व्यक्ति के मनोमस्तिष्क में विपरीत चिंतन को घर नहीं करने देती। आवेश, आशंका, आग्रह आदि सोच के वे दोष हैं, जो हमें नकारात्मकता की ओर धकेलते हैं। जब भी किसी बिंदु पर सोचें, समग्रता पूर्वक और विधायक नजरिये से सोचें। प्रसन्न रहें, तनाव-मुक्ति के लिए
सदैव प्रसन्न रहना तनाव से बचने का अच्छा टॉनिक है। जिस प्रकार अंधे के लिए लकड़ी सहारा बनती है और बीमार के लिए दवा, वैसे ही तनावग्रस्त व्यक्ति के लिए प्रसन्नता औषधि का काम करती है। हँसने, मुस्कुराने, प्रसन्न और आनन्दित रहने से मन का मैल तो साफ होता ही है, शरीर की सम्पूर्ण कोशिकाएँ- नाड़ियाँ सक्रिय भी होती हैं । एक प्रसन्नता सौ दवा का काम करती है।
मैंने सुना है, एक व्यक्ति बुखार से ग्रस्त हो गया। वह कई दिन तक घरेलू इलाज कराता रहा पर स्वस्थ न हो पाया। वह चिकित्सक के पास पहँचा। चिकित्सक ने उसे पीने की दवा दी। उस व्यक्ति के बंदर था। व्यक्ति ने दवा की एक खुराक ली। पास बैठे बंदर ने जब अपने मालिक को दवा पीते देखा तो उसके मन में भी दवा पीने की इच्छा हुई। उसने मालिक से नजर चुराकर दवा पी ली। दवा जबरदस्त कड़वी थी। दवा पीते ही बन्दर ने बड़ा विचित्र-सा मुँह बनाया। वह दाँत किटकिटाने लगा और अपने मालिक को घुड़काने लगा। बन्दर की इस भाव-भंगिमा को देखकर मालिक को बड़ी जोर की हँसी आयी। वह आधे घंटे तक लगातार हँसता रहा, क्योंकि बंदर बार-बार अपना मुँह बिगाड़ रहा था। आश्चर्य ! दो घंटे बाद जब उसने थर्मामीटर से अपना बुखार मापा तो उसे खबर लगी कि उसका बुखार उतर चुका है। वह अपने आपको काफी हल्का महसूस करने लगा।
मैं यही बताना चाह रहा हूँ कि जो काम दवा की दस खुराक नहीं कर पाती है, वह काम प्रसन्नता की एक खुराक कर जाया करती है। प्रसन्नता हमारे भीतर उत्साह पैदा करती है। उत्साह से मनोयोग जन्मता है और मनोयोग किसी भी कार्य की पूर्णता का प्राण होता है। उत्साहहीन व्यक्ति भले ही कितना भी काम करता रहे लेकिन उसे मनचाहा परिणाम नहीं मिल सकता। दुनिया के जितने भी महापुरुषों ने बड़े-बड़े कार्य किये हैं,
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