Book Title: Jine ki Kala
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 52
________________ दोनों हाथ ऊपर करते और कहते, 'तू बड़ा दयालु है मेरी हर ज़रूरत का ध्यान रखता है।' सदा इसी बात को दोहराते रहते । कुछ सम्पन्न लोग जो प्रतिदिन उधर से गुजरा करते थे उसकी मस्ती को देखकर ईर्ष्याग्रस्त हो जाते। सोचते हमारे पास सारी सुविधाएं हैं पर मस्ती नहीं और इस फकीर के पास कुछ भी नहीं तब भी इतनी मस्ती में । आखिर एक सम्पन्न व्यक्ति कुछ दूरी पर बैठ गया और सोचने लगा, 'आखिर इस फकीर की मस्ती का राज क्या है ? मैं इस राज़ को ढूंढ कर ही रहूंगा।' वह बैठा रहा। उधर फकीर भी अपनी प्रार्थना कर रहा था। दोपहर के दो बज रहे थे, फकीर भूखा था। वह संम्पन्न व्यक्ति सोच रहा था, 'बंदा सुबह से भूखा है फिर भी कहे जा रहा है कि भगवान, मेरी हर जरूरत का ध्यान रखता है।' आश्चर्य, तभी एक राहगीर आया और उसने फकीर की थाली में रोटी डाल दी। फकीर तो आंखें बंद करके बैठा था । दो मिनिट बाद आंखें खोली, थाली में रोटी देखी और कहा, 'देखो, ईश्वर कितना ध्यान रखता है, भूख लगी तो भोजन की व्यस्था कर दी ।' भोजन के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने के लिए आंखें बंद की और अपनी वही बात फिर दोहरा दी। तभी एक कुत्ता आया और थाली में से रोटी ले भागा । अब उस संपन्न आदमी ने मन ही मन कहा अब पता लगेगा इसकी मस्ती का । जब आंख खोलेगा और देखेगा कि थाली में से रोटी गायब तो भगवान और कुत्ते को गालियां देगा। फकीर ने आंख खोली, रोटी के लिए हाथ बढ़ाया, थाली में नज़र डाली तो रोटी गायब । दूर देखा तो वह कुत्ता रोटी खा रहा था। अब अमीर आदमी ने सोचा कि यह फकीर खड़ा होगा और कुत्ते को डंडे से पीटेगा और सच में फकीर खड़ा हो गया । अमीर ने सोचा अब तो जरूर यह कुत्ते की पिटाई करेगा और इसका भगवान...... । लेकिन आश्चर्य जो फकीर अब तक बैठकर प्रार्थना कर रहा था, खड़े होकर दोनों हाथ ऊंचे किये और कहने लगा, 'अरे वाह खुदा । तू सचमुच बहुत दयालु है तू मेरी हर जरूरत का ध्यान रखता है, मेरी हर जरूरत पूरी करता है । तेरी परम कृपा है कि कभी-कभी मुझे उपवास करने का मौका भी दे देता है। तू तो परम दयालु है, मेरी साधना का भी ध्यान रखता है, मेरी आराधना का ध्यान रखता है, ऐसा करके तून मुझे उपवास का मौका दे दिया ।' अब आप ही बताएं भला ऐसे आदमी की मस्ती को कौन छीन सकता है। उसकी शांति और साधुता को कौन छीन सकता है। आप तनाव, चिन्ता, घुटन में से बाहर निकलना चाहते हैं तो हर समय व्यस्त और मस्त रहें और ध्यान रखें बूढ़े भी हो जायें तो काम से जी न चुरायें। छोटे-छोटे ही काम करें पर कर्मयोग अवश्य करें। साथ ही अपने भीतर की मस्ती को बरकरार रखें । अगर आप इतना करते हैं तो निश्चित ही चिन्तामुक्त जीवन जीने में समर्थ हो जाएंगे। प्रकृति की गोद में रहें जैसा हो रहा है, जो हो रहा है, जिस रूप में हो रहा है उसे स्वीकार करें। सुख, सुविधाओं में नहीं है। सुख भीतर की मस्ती में है, मन की शांति में है । चिता जलायें चिंता की वक्त-बेवक्त, वजह बेवजह दिमाग पर हावी चिंताएं हमें अंदर से खोखला करती हैं। अच्छा होगा हमेशा चिंताओं के निमित्त पालने के बजाय उन्हें भूलने की कोशिश की जाए। सकारात्मक सोच हमारी चिंताओं को चिन्तन में तब्दील कर सकती है। एक बार संबोधि-ध्यान शिविर में हमारा उद्बोधन था चिंता, चिंतन और चिता Jain Education International 51 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org.

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