Book Title: Jine ki Kala
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 56
________________ गुस्सा कुछ मिनट या घंटे तक का होता है और उससे माहौल बिगड़ता है। किसी कारण से हड़बड़ी में व्यक्ति कुछ भी कह देता है और कुछ मिनट बाद अफसोस करता है। मैं मध्य प्रदेश के एक शहर में था। मैंने देखा कि एक व्यक्ति जो वहाँ के समाज का अध्यक्ष था, उसका पता ही नहीं लगता कि बात-बात में उसे कब क्रोध आ जाता है? इतना ही नहीं, वह गस्से में आकर माइक पर, मंच पर कुछ भी बोल देता था। पर वह था इतना निश्च्छल दिल का आदमी कि या तो दो मिनट बाद ही सामने वाले से माफी मांग लेता अथवा यह कहते हुए मधुर मुस्कान से बात खत्म कर देता कि मैंने कब गुस्सा किया। अल्पकालीन क्रोध करने वाले लोग किसी बात को ज्यादा लंबी नहीं खींचते । बस दो मिनट के लिए जैसे हवा में गुबार आया हो या पानी में बुलबुला उठा हो। ऐसा होता है उसका गुस्सा। ऐसे लोग कभी भावुक हो जाते हैं और कभी कठोर।। जिसे मैं अस्थायी क्रोध कहना चाहता हूँ उन लोगों की प्रकृति ऐसी होती है कि वे किसी भी बात को दो दिन तक ढोते रहते हैं। बात छोटी-सी होगी पर उसे खुद ही बढ़ाएँगे और दो दिन तक रूठे रहेंगे। फिर यह प्रतीक्षा करेंगे कि कोई उन्हें मनाएं या 'सॉरी' कहे तो वे वापस पहले जैसे हो जाएँ। ऐसे लोग पाँच-सात दिन तक तो औरों से 'सॉरी' कहलवाने का इंतजार करते हैं, पर उसके बाद खुद ही सीधे और शांत हो जाते हैं। तीसरी प्रकृति होती है स्थायी क्रोध की। ऐसे लोग मरते दम तक किसी भी बात को ढोते रहते हैं । जैसे किसी ने चार लोगों के बीच अपमानजनक कोई बात कह दी अथवा किसी की शादी में जाने पर सामने वाला व्यक्ति सबसे तो घुलमिल कर बात करे पर उनसे बात करना भूल जाए, यदि परिवार के किसी सदस्य द्वारा सहजता में ही कोई व्यंग्यात्मक बात कह दी जाए तो उस श्रेणी के क्रोध में जीने वाले लोग उनकी गांठ बाँध लेते हैं और धीरे-धीरे अपने व्यवहार के द्वारा उस गांठ को और भी अधिक मजबूत करते रहते हैं। धीरे-धीरे यह गांठ जो पहले तो एक तरफी होती है पर फिर दो तरफी हो कर कई परिवार और समाज में विभाजन करा देती है। जैसे गन्ने की गांठ में एक बूंद भी रस नहीं होता वैसे ही जो लोग मन में गाँठे बांध कर रखते हैं, उनका भी जीवन नीरस हो जाता है। न बांधे वैर की गांठ हम एक शहर में थे। किसी महानुभाव ने तपाराधना के उपलक्ष्य में सम्पूर्ण समाज के भोज का आयोजन किया। जिस दिन भोज का आयोजन था उस दिन समाज के कुछ वरिष्ठ व्यक्ति हमारे पास आए और कहने लगे कि जिस व्यक्ति के द्वारा आज सम्पूर्ण भोज का आयोजन है, वे दो भाई हैं लेकिन उनका दूसरा भाई व उसका परिवार इस भोज में नहीं आएगा। उन लोगों ने हमसे निवेदन किया कि, साहब, आप चलें और उसे समझाएँ । शायद आपके कहने से वह मान जाए।' उन लोगों के साथ मैं उस महानुभाव के घर गया। उसने मुझे सम्मान-पूर्वक बैठाया। बात ही बात में मैंने कहा कि 'आज तो आप के परिवार की ओर से सम्पूर्ण समाज का भोज है।' उसने कहा, आप ऐसा न कहें 55 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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