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धीरे हमारे, तन-मन को अपने आगोश में समेट लेते हैं। तनावग्रस्त व्यक्ति की स्थिति वैसी ही हो जाती है जैसी जाले में फंसी मकड़ी की। जिसने जाला भी खुद बनाया और फँसी भी खुद। भगाएं, भय का भूत
तनाव का दूसरा कारण है भय । मनुष्य के भीतर भय की ऐसी ग्रंथि निर्मित हो जाती है कि वह हाथी और शेर जैसी शक्ति रखते हुए भी गीदड़ से भी पस्त हो जाता है। कमजोर शरीर पर मजबूत मन जहाँ निश्चित ही विजयी होता है, वहीं इसके विपरीत मजबूत शरीर और कमजोर मन जीवन में पराजय का मुख्य कारण बनता है। हमें महाभारत का वह घटनाक्रम याद है। जब अर्जुन जैसा धनुर्धर योद्धा युद्ध-भूमि में लड़ाई के कुछ समय पूर्व ही शत्रुसेना में अपने परिजनों को देखकर बैचेन हो जाता है और कृष्ण से कहता है, 'प्रभु, युद्ध भूमि में अपने परिजनों को देखकर मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं, मुँह सूख रहा है, शरीर काँप रहा है। प्रभु, मेरा गांडीव मुझसे उठाया नहीं जा रहा है । मुझे चक्कर आ रहे हैं। और तो और, मैं खड़ा भी नहीं रह पा रहा हूँ।' ये सारे लक्षण चिंता और घबराहट के ही तो हैं।
चिंता और भय से ग्रस्त व्यक्ति उन निमित्तों से मुकाबला करने की बजाय अपने आपको कमजोर महसूस करता है। उसे लगता है कि उसके हाथ-पाँव ठंडे पड़ते जा रहे हैं। भय की स्थिति में मुँह और गला सूखता है, भूख कम हो जाती है और आमाशय में रोग पैदा होने शुरू हो जाते हैं । भयग्रस्त व्यक्ति सामने वाले का मुकाबला करना तो दूर, सही ढंग से किसी बात का जवाब भी नहीं दे पाता। जैसे सूखी घास के ढेर में लगी छोटी-सी चिंगारी शुरुआत में थोड़ी ही दिखाई देती है लेकिन धीरे-धीरे पूरी घास को ही राख में तब्दील कर देती है; ऐसी ही स्थिंति भयग्रस्त व्यक्ति की हो जाती है।
व्यक्ति को जीवन में सबसे बड़ा भय होता है मृत्यु का। तुम्हें किसी ने फोन पर धमकी दे दी, रात भर तुम्हें नींद नहीं आयी। डर गये यह सोचकर कि पता नहीं, अब क्या होगा? भला इससे डरना कैसा? दुनिया में कोई भी व्यक्ति जन्मा है तो उसका मरना तय है और हर व्यक्ति सोमवार से रविवार के बीच ही गया है। आंठवाँ वार तो किसी के लिए नहीं हआ।जिनके भीतर भय की गत्थी है. वे सदैव इस बात को याद रखें कि मारने वाले के सौ हाथ होते हैं पर बचाने वाले के हजार हाथ। समय से पहले हमें कोई मार नहीं सकता। भय होता है रोग का, विशेषकर उन रोगों का जो लाइलाज होते हैं- जैसे कैंसर, एड्स। इन खतरनाक रोगों के बारे में सोचकर भी व्यक्ति भयभीत हो जाता है। अब तक के अनुभव हमें यह बता चुके हैं कि भयभीत व्यक्ति जहाँ उन रोगों से घिरकर जल्दी पस्त हो जाता है, वहीं व्यक्ति निर्भय चित्त होकर इन पर कुछ अंश तक विजय भी प्राप्त कर लेता है। तेज का नाश करे उत्तेजना
उत्तेजना तनाव का तीसरा कारण है। कुछ लोगों की आदत पटाखों की तरह होती है कि एक तीली लगाई और बम फूटा। उन्हें कुछ भी कहा नहीं कि बस लड़ने-भिड़ने को पहले से ही तैयार ! ऐसा लगता है कि बस अब बरसे कि तब बरसे। जो छोटी-छोटी बातों में उत्तेजित हो जाते हैं, उनके जीवन में शांति का अभाव होता है। हमने आज के युग में तकनीकी चमत्कारों से बहुत कुछ पाया है किन्तु यदि कुछ खोया है तो केवल मन की
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