Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Gunbhadrasuri, Tonkwala, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ प्रस्तुत कर रही हूँ पर मापके गुणोल्लेख के प्रति मेरा प्रयत्न वैसा ही है जैसे कोई बालक हाथों को फैला - फैला कर समुद्र के विस्तार को कहना चाहे | आपके गुरण समुद्र के समान गम्भीर हैं, मुझ प्रबोध बालिका के लिये प्रापका गुणोल्लेख सर्वथा अशक्य है तो आपकी स्तुति से हमारे कर्मों का क्षय होगा और पाठकों का मार्ग-दर्शन होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं । श्रतः प्रात्म शोधन के लिये मैं आपके पवित्र जीवन को लिखना चाहती हूँ । १०५ परम पूज्या अायिका रत्न गरिणनी विजयामती माताजी का जीवन गंगा की जल धारा के समान पवित्र और निर्मल है । आप बालकों के समान सरल, चन्द्रमा के समान शीतल, अमृत के समान मधुर और सुदृढ़ नौका के समान तारक हैं । कहावत है 'होनहार वीरवान के होत चीकने पान' सो गर्भ से ही आपके त्याग और वैराग्य की वृत्ति दीखने लगी । जब आप गर्भ में ६ महीने को थीं उस समय आपकी माताजी को श्री सम्मेद शिखरजी को वन्दना का दोहला हुम्रा और उन्होंने उस अवस्था में भी पैदल सम्मेद शिकी बना कर ली। इधर आपके पिताजी, प्राचार्य श्री १०८ शान्तिसागर जी महाराज के संघ के साथ पैदल विहार करते हुए सम्मेद शिखरजी पहुँचे । गर्भ से ही आपको गुरुमों का आशीर्वाद मिलता रहा। आपके जीवन रूपी लता का सिंचन, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्वारित्र रूपी जल से हुग्रा, उसी का प्रतिफल है कि आज प्राप हमारे सामने एक महान तपस्वी के रूप में उपस्थित है । आपका जन्म १ मई १६२८ बैशाख शुक्ला द्वादशी विक्रम सम्वत् १६८५ में उत्तरा फाल्गुनी चतुर्थ चरण नक्षत्र में राजस्थान - कामा नगरी में हुआ था । प्रापके पिता का नाम सन्तोषीलाल और माता का नाम चिरोंजी देवी है । इस पृथ्वी पर आपका अवतरण प्रातःकालीन उदित हुए सूर्य के समान, भव्य जीवों को प्रफुल्लित करने वाला है । आपका पालन-पोषण विशेष लाड़ प्यार से हुआ था। सभी परिजन पुरुजनों के मन को हरण करने वाली माप अत्यन्त रूपवान और गुणवान थीं। माता-पिता ने viii ]

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 232