Book Title: Jindutta Charit Author(s): Gunbhadrasuri, Tonkwala, Mahendrakumar Shastri Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti View full book textPage 7
________________ को भी माग दर्शन करें यह मेरी विनम्र प्रार्थना है। अन्य भी विद्वानजन सावधानी से संशोधन करें। यद्यपि हमने पर्याप्त परिश्रम और पूर्ण जागरूकता से यह कार्य किया है तो भी कहीं कुछ कमी रही हो तो उसे सुधार कर लें । इसमें नवरसों का समाहार कर अन्स में शान्त रस की विजय दिखायी है। इस श्रेष्ठ अन्य के प्राशन का प्राधिक भार धर्म प्रेमी श्री जयचन्दजी, राजकुमारबी एवं श्री महेन्द्र कुमारजी मद्रास वालों ने स्वीकार किया है। प्रकाशन "श्री दि० जैन विजयाग्रन्थ प्रकाशन समिति झोटवाडा जयपुर" से हो रहा है । इस समिति के सम्पादक श्री महेन्द्रकुमार जी बड़जात्या, प्रबन्ध सम्पादक श्री नाथुलाल जी जैन, राजेन्द्रकुमार जी, मुभाष चन्द्र जी आदि सभी कार्यकर्ताओं ने अपना अमूल्य समय दिया है। इन सभी महानुभावों को हमारा पूर्ण प्राशीर्वाद है। इनकी धार्मिक भावना, जिनभक्ति, श्रुत और गुरुभक्ति निरन्तर वृद्धिंगत हो। ज्ञान का क्षयोपशम और चारित्र मोह का उपशम प्राप्त हो यही हमारा पुनः पुनः माशीर्वाद है । इत्यलम् ।। ग० प्रा० १०५ विजयामतीPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 232