Book Title: Jindutta Charit Author(s): Gunbhadrasuri, Tonkwala, Mahendrakumar Shastri Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti View full book textPage 8
________________ XX परिचय साघुनां दर्शनं पुण्यं तीर्थभ्रता हि साधवः । कालेन फलते तीर्थ सद्यः साधुसमागमः ॥ साधुओं का दर्शन पुण्यभूत है क्योंकि उनके दर्शन से हमारे पापों का क्षय होता है, परिणामों में निर्मलता प्राती है । साघु स्वयं तीर्थ-स्वरूप हैं क्योंकि वे हमको संसार समुद्र से पार होने का मार्ग बताते हैं। वे संसार के भयंकर दु:खों से उन्मुक्त अनाकुल शाश्वतिक सुख को देने वाले हैं इसलिये भी तीर्थ-स्वरूप हैं। तीर्थ क्षेत्रों को वन्दना तो यथाकाल फल देती है पर साधु संगति हमारे जीवन को तत्काल प्रभावित करती है कहा है - एक घड़ी माघी घड़ी प्रात्री में भी प्राध । मिले साधु को संगति, कटे कोटि अपराम ।। यदि हम चाहते हैं कि हमारा जीवन सुखमय हो तो साषुमों को संगति अवश्य करें और उनकी पवित्र जीवन गाथानों को गहराई से पड़े, अध्ययन करें और तत् रूप बनने का प्रयत्न करें। अभी मैं आपके सामने नारी जगत की एक महान विभूति, रत्नत्रय की प्रतिमूर्ति स्वरूप परम पूज्या प्रायिका रत्न श्री १०५ गणिनी श्री विजयामती माताजी का संक्षिप्त जीवन परिचय देना आवश्यक समझती हूँ क्योंकि ग्रन्थ को पढ़ने के समय उसका लेखक कौन ? यह प्रश्न सहज ही सबके मानस पटल को छूता है। श्री प्रकलंक देव स्वामी बसे उद्भट् विद्वान ने भी बार-बार यह कहा है कि वक्ता की प्रमागता से वचनों में प्रमागता पाती है इस तथ्य को ध्यान में रखकर, मैं गुरुभक्ति से प्रेरित हुई, टूटे-फूटे शब्दों में, माताजी के जीवन को एक हल्की रूप रेखा याप 1 viiPage Navigation
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