Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Gunbhadrasuri, Tonkwala, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 5
________________ पतिवृत परिरक्षण दक्ष वीराङ्गना किस प्रकार धर्म की छाया मे क्लेश और कष्टों के स्वेद बिन्दुओं को सुखा कर शान्ति का अनुभव करती है यह वतलाता है यह चरित्र । इस कथा की नायिका अनेकों भीषण विपदाओं को अञ्चल में छुपा कर धर्म ध्यान से नाता जोड़ती है। सांसारिक प्रपञ्चों से दूर रह संयमियों की शरण में जा पहुंचती है। कांटों में मुस्कुराते पाटल सुमन की भांति अपने जीवन को समुज्ज्वल बनाती है। वस्तुतः यह कथा मात्र मनोरंजक ही नहीं है अपितु जीवन साधना की कसोटी है। प्रेम, वात्सल्य और एकता की त्रिवेणी है । सम्यग्दर्शन, जान, चारित्र, रूप मुक्ति मार्ग की नसनी है। कायरों के हृदय में भी सच्चे वीरत्व को जाग्रत करने में सक्षम है। एक मात्र पातिव्रत ही नारी की शोभा है। वर्तमान सुधारकों को यह चुनौती देता है । महिला को (कन्या को) हो विवाह का अधिकार है । एक ही उसका पति हो सकता है यह जन समाजिगर कति है : है और भारी कीवन-आध्यात्मिक जीवन विकास का प्राकाट्य, अटल नियम है। विधवा विवाह और विजातीय विवाह धर्म, समाज और व्यवहार विरुद्ध है इस विषय का इसमें सुस्पष्ट उपास्थान, सबल प्रमाण उपलब्ध है। इसके प्रचार, अध्ययन, मनन, चिन्तन से अवश्य हमारा समाज एक ठोस, उच्चतम नतिक स्तर प्राप्त कर सकेगा यह पूर्ण विश्वास है । वैभव की दल-दल मानवता का उत्थान नहीं कर सकती। कोरी सम्पत्ति, ग्रहंकार, स्वच्छंदता, मद एवं उन्मत्तता की हेतू है । धार्मिक संस्कारों से संस्कृत वही विभूति त्याग, दान, संयम से युक्त हो उभय लोक में यश, सुख, शान्ति की कारण हो जाती है। जिनदत्त का जीवन एक समुज्ज्वल डाँचे में ढला है। जहाँ प्रहं की दीवार पा ही नहीं पाती। कषायों की उद्देकता का नामोनिशान नहीं है । सरल, सादा, स्वाभाविक, आडम्बर विहीन जीवन किस प्रकार ज्ञान-विज्ञान, बुद्धि, कला-कौशल का प्रदर्शन करता हुआ विकासोन्मुख होता है यह पाठक स्वयं अनुभव करेंगे। यद्यपि विषय-कघायों के झटके पाते हैं। जीवनधारा के प्रवाह को एकाएक पलट देते है । यदा तदा विपरीत ही मोड ला देते हैं। तो भी शुद्ध धार्मिक संस्कारों से प्राप्यायित मानव जीवन के उन प्रारम्भिक संस्कारों का मूलोच्छेदन नहीं कर सकत । कच्चे घड़े पर बनाये चित्र

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