Book Title: Jindutta Charit Author(s): Gunbhadrasuri, Tonkwala, Mahendrakumar Shastri Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti View full book textPage 4
________________ प्रशस्त मार्ग बनाकर निर्भय बढ़ता चला जाता है । पीछे देखता ही नहीं । क्यों देखे ? आगे प्रकाश है, मार्गे स्वच्छ है, कहीं बाधा नहींसर्वत्र छाया है फिर पीछे घूमने की श्रावश्यकता ही क्या है ? भ्रात्मविश्वास, एटम और अणुबम को अपेक्षा अनन्त गुणी शक्ति रखता है । मनोबल के समक्ष संसार के असंख्य सुभट वराशायी हो जाते हैं ! वर्तमान में मानव, धर्म विमुख होता चला जा रहा है। त्याग, संयमएवं दान की बात सुहाती ही नहीं । ग्रात्म विकास के साधनों -- खिसकते देव, शास्त्र, गुरु एवं इनके उपासक तथा श्रायतनों से हम दूर जा रहे हैं। यही नहीं इनके विपरीत कार्यों - मिथ्यात्व, रात्रि भोजन कन्दमूलादि अभक्ष्य भक्षरण, बिना छना जल पान, नशीली वस्तुओं-तमाखू, पानपराग आदि का सेवन, सौन्दर्य वर्द्धन के नाम से हिंसात्मकपाउडर, लिपिष्टिक आदि का प्रयोग करते हैं । फलतः रोग, भय, शोक, प्रशान्ति, द्वेषादि की वृद्धि होती जा रही है । इस तथ्य का परिज्ञान इस चरित्र के पाठकों को प्राप्त होगा। विलास की दल-दल से निकाल कर प्रशस्त स्वच्छ सद्धर्म मार्ग पर श्रारूढ़ करने के लिए यह टॉर्च के समान है । प्रथमानुयोग चारों श्रनुयोगों का सार रूप है। यह अनुयोग प्रन्य अनुयोगों के कपाट उद्धारन की कुञ्जी है । चाबी रहने पर कितना हो मजबूत ताला क्यों न हो ग्रासानी से शीघ्र खुल जाता है । अन्दर प्रवेश हो जाता है तथा वहाँ की गतिविधि वस्तुओं का भी सम्यक् ज्ञान हो जाता है। इस प्रकार प्रथमानुयोग का अध्येता निर्विघ्न, सफलतापूर्वक अन्य अनुयोगों के हार्ट का ज्ञान-गहन अध्ययन कर भ्रात्म तत्त्व की उपलब्धि करने में समर्थ हो जाता है । पुण्य, पाप क्या है ? उनका बंध किस प्रकार होता है ? श्रात्मा अनन्त शक्ति युक्त होकर भी क्यों परतन्त्र हो जाता है ? कर्म क्या हैं, किस प्रकार प्राते हैं, ठहरते हैं, फल देते हैं ? जड़ होकर भी इनका नाटक किस प्रकार होता है ? इत्यादि प्रश्नों का समाधान इस अनुयोग के अध्ययन से अनायास हो जाता है। प्रस्तुत चरित्र भी प्रथमानुयोग के अन्तर्गत है । पाठक स्वयं इसे पढ़कर उपर्युक्त प्रश्नों का हल - समाधान प्राप्त कर सकेंगे ऐसा मेरा विश्वास है । नारी जीवन जितना सरल है उतना ही कठिन भी है। शील एवं सदाचार नारी का आभूषण है। पति भक्ति उसका कर्त्तव्य है । सद्गृहणी, [ miPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 232