Book Title: Jindutta Charit Author(s): Gunbhadrasuri, Tonkwala, Mahendrakumar Shastri Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti View full book textPage 2
________________ मन्तव्य Xxx XXXXXXXXXXX परम ऋषि प्राचार्य वर्य श्री गुणभद्र स्वामी आत्म-विज्ञान के श्रेष्ठ ज्ञाता प्रतीत होते हैं। प्रात्म परिशोधना के साथ परम दयालु, परोपकार निरत हैं । प्रापकी कृतियों से स्व-पर कल्याण की भावना स्पष्ट झलकती है। समाज कल्याण का स्रोत प्रवाहित है। यतिधर्म की परिपूर्णता व पुष्टता के लिए स्वस्थ एवं पुष्ट श्रावक धर्म भी अपेक्षनीय है। प्रापने प्राध्यात्मिक और नैतिक दृष्टिकोण से सामाजिक जीवन की सफल व्याख्या की है । प्रस्तुत कृति "जिनदत्त चरित्र" भी प्रापकी अपूर्व देन है । एक सामान्य पुरुष अनेक विपत्तियों से आक्रान्त होकर भी किस प्रकार सद्धर्म का पालम्बन लेकर उन प्रापदामों पर विजयी होता है इसके अध्येता इसे ज्ञात कर धैर्य और विवेक प्राप्त कर सकता है। तूफानी सागर में उथल-पुथल, डूबती-उतराती नौका के समान जीवन तरणी को पार करने की कला है इसमें ! एक विवेकी सुबुद्ध जिनभक्त परायण व्यक्ति अपने सहयोग से अनेकों के मिथ्याभिप्रायों का मूलोच्छेदन कर उन्हें सन्मामें प्रदर्शन करता है । अनादि मिथ्यात्व रूपी सपं से इंसा प्राणी जहर से प्राकान्त हो भटकता पा रहा है। नाना प्राधिव्याधि-रोग-संतापों से व्यथित हो असंख्य लेशों का शिकार बना है।Page Navigation
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