Book Title: Jambu Gun Ratnamala
Author(s): Jethmal Choradia
Publisher: Jain Dharmik Gyan Varddhani Sabha

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Page 13
________________ जवु माला प्रत्यख दीसे चुडेल । श्रा० अं० ॥१७॥ गुप्त वात दाखी तदा, चमक्यो चित्त निग्रंथ । मु । मौवन प्यारी | भल मिली, तूं नारी हुं कंथ । श्रा० । अं० ॥१८॥ कुण नारी कुणनाहलो, अकल ठिकाणे लाय, । मु. । हूं छू श्रमण उपासिम, तुम छो हम गुरुराय । मु० स०॥ १९ ॥ बे नाता संसारना, हुवा अनंती बार । मु० । निश्चल नातो एह छ, भोगां सुं होवे झार । मु० । स० ॥२०॥ त्रितीया दाखी ढाल ए, सती दियो उपदेश । मु० । दृढ धरमीजे थाय से, टलसी सकल कलेस । मु० । सः ॥ २१ ॥ दीहा- तुम वो मोकू तज मया, मिल्या सुगुरु मुझ भाग । आतम सरूप जणावियो लग्यो धर्म से राग ॥१॥ शील व्रत सुद्ध राखियो, रंक तणी पर रत्न । करणी कर तन सोखियो । ज्ञान तणो कर यत्न । ॥ २॥ नीट नीठ धन जोडियो, करी तुच्छ व्यापार । लाखां रा व्योहार कर, थे स्यू काढ्यो सार ॥३॥ पर्व दिवस पोषा करूं, देवू सुपातर दान । छट न आमल पारणो, द्वे प्रहरा अनुमान ॥४॥ विषय भोग मन नहीं रुचे, करूं निजातम काम । थिर थापो परिणाम तुम । चित कुंल्याको ठाम ॥ ५ ॥ ॥ ढाल चोथी ॥ देशी चौकरी इन्द्र प्रभु जग जीवन अंतर यामी । ए देशी ॥ मुनि चित्त मांहे चमार्कयो, सती सीख चाबुक दियो । कुपंथे हुँ प्रवृतियो निज कुल दाग लगावियो । दृढ चित्त भयो, ज्ञान बाग सुं । मन हय फेरी लीनो । शिवराह गयो चिहुं गत चोक में, भ्रमण करणथी व्हीनो ।। १ ।।

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