Book Title: Jambu Gun Ratnamala
Author(s): Jethmal Choradia
Publisher: Jain Dharmik Gyan Varddhani Sabha

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Page 44
________________ पृ.३८ नीर | कामरण क्षुद्रा तेहने पाखती, अटवी गहन गंभीर ॥ १ ॥ कामण समझो चित्रा विचार के। आकडी । मृत्यक हस्ती तिण वने, ख़ाल में पडीयो एक । का० मूवो कलेवर देखने । आव्या पंखी अनेक | का० स० ॥ २ ॥ • जण ढीच कांबला । काग चिडा अणपार । का० । आमिष चूंटी खत्वतां । वायस एक गिंवार | का० स० ३ || आवो जावो नित प्रते । कुण करे इतना श्रम ( महनत ) | का० । इम चिंती पेठा पेट में। मांस भखे ते नर्म ॥ स० ४ ॥ सम्बन्धी खेचर कहे । सांझ भई चल भ्रात । का० । सो कहे हूं मानूं नही । इहां रहस्यूँ दिन . रात ॥ का० स० ५ ॥ बंधण पंड दुःख भोगसे । माने नही सठ रंच । का० । परमादी गिरथ्यो रसे । विकल विवेक तिर्यच ॥ का० स० ६ ॥ इम करतां ग्रीषम ऋतु । तप्यो तेज दिन कार । का० । चामडो सूख्यो तेहनो | मुंद गयो तत्र अधो द्वार || का० स० ७ || वाहिर निकस्यो जावे नही । माहि रह्यो माने चैन । का० चिते सुखियो जगत में, हम सरीसों कोऊ हैन || का० स०८ ॥ श्रावण भाद्रमासमें । घन गरजी वरसाय का० । जल पूरित भरी खाल तदा । नालरु खाल वहाय ॥ का० स० ६ ॥ वहतो जलरा वेगं तटनी में ते गयो चर्म । का० । सरिता से समुद्र में । नाच नचावे कर्म ॥ का० स० १० ।। तोयसुं गीलो होय ने । खुलीयो मुख अध वीच | का० । फदकी वाहिर निकलीयो ऊपर बैठो नीच ॥ का० स० १२ ॥ च दिस नयन पसारतां दीठो ते दरियाव । का० । उड देख्यो दूरा लगे । किहां न लाग्यो दाव || का० स० १२ ।। याको फिर तिहां बैठियो । जोवे उदधि किल्लोल । का० । कुर्ममीन ने गाछला मगरमच्छ उल्लोल || का० स० १३ जंबू गुण रत माल ढाल १६

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