Book Title: Jambu Gun Ratnamala
Author(s): Jethmal Choradia
Publisher: Jain Dharmik Gyan Varddhani Sabha
View full book text
________________
गुण
रख । माला
प
ताम ।। हे०१२ साहिस असंदो देखी पूछीयो कि मनोरथ भाष । नोकरी करवा पेटरे कारणे शेर अन्न। अभिलाष । हे० १३ ॥ रहो मित्र थे हमरे पाखती । गाजीरी लीद उठाय । धणी हमारो अधिक उदार छ । इण घर कमियन काय ॥ हे०१४ ॥ करस्युं इमही होसे माहरो । तुम प्रसाद गुदगन । इम कहिवा लागो निश दिने । कपट तणो मंडान ॥ हे० १५ कितना ही वासर इण परे वोह लिया। उपजी पूरी प्रीतीत । सर्व रुखाला धंधइ लागिया । इणरे भरोसे न चीत ॥ हे० १६ ॥ छेद हुवा गाछिद्र तकी तदा । करीयो पीठ पलाण । कर असवारी चालण अवसरे । वाजी न तजे वाण ॥ हे०१७ ॥ कुपंथ कदापि पांव घरे नहीं सहन करे बहु मार । खबर हुवांथी सेठजी आविया । भागो चोर जिवार ॥ हे०१८ ॥रीझया महि पति देख शीलता। हवो अतही खुस्य ल । प्राण समाना करतो जाबता । जीवे तेहने निहाल । हे०१६॥ मुतलव एह वोहि वे तुम अोलखो । दिल थिरता में ल्याय । जित शत्रु सम श्री जिणराज जी हय मुझ जीव कहाय ॥ हे० २० ॥ सुधर्म स्वामी सेठ ने मूपियो । समगत दिवा शिखाय । मोइ महीपति भेज्यो चोर कू। काम कुबुद्धि थाय
॥ हे० २१ ॥ मिष्ट वचन तुम देती ताना । मैं सहुं छं सम भाव । विषय कुमार्ग निश्चे जाणियो । देवू नहीं | । हुँपाव ॥ हे० २२ ॥ प्रभुजी रोझयां करसी आपसा । संदेह नाहि लिगार । करो कलाप जु क्यूं तुम कामिनी । म्हारो एह विचार ॥ ६० २३ कथा अपूर्व इण पर वर्णवी । पांच वीसमी दाल । जंबू सोना सालमा ज्यू तावे ज्यूं लाल ॥ हे० २४ ॥

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96