Book Title: Jambu Gun Ratnamala
Author(s): Jethmal Choradia
Publisher: Jain Dharmik Gyan Varddhani Sabha
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जबू
गुण
रत्र
॥ ॥दोहा ॥ आपस में बाढूं बहन मसलत करती एम । लग्यो उपाय न एक ही अब कहो कीजे केम ॥१॥ अट्ठी मिंजा रंग रही धर्म मजीठी रंग । कोटि कलाप कियां थका ए नहीं करता संग ॥२॥ हिव
आपां सब एकठी होय करां समजास । ज्यों मानो तो मानि है नहीं तर जांग्रह वास ॥ ३ ॥ इसडी सल्हाह विचार के ऊभी आय हजूर । जराक झांको नाथजी । ज्यूं विकसे हम नूर ॥ ४ ॥ हम हारी जीता तुम्हें । था पिउडा अनुकूल । चात्रक नीर घररी परे । कीजे अर्ज कबूल ॥ ५॥
॥ढाल बत्तीसमी ॥ आठ कुना नव वावडी पणिहारी हे । एदेसी। सर्व मिली इम वीन वे । माणे श्वरजी हम लागी तुम लारहा लाजो । किस के भरोसे छोडता | प्राणे० ग्रह मत तजो निराधार ॥ वा० १॥ श्रादर दीजे लीजिये प्राणेश्व० । पकड हाथ पर्यक । वा० । नांतर में तजस्यां सही । प्रा० । मर्यादा निसंक ॥ वा० २ ॥ सुगण सलूणा साहिबा । प्रा० । आप पुरंड समान । वा० हम आठों रंभा जैसी प्रा० । भोग वो भोग प्रधान ॥ वा० ३ ॥ आदूं २ क्या करो मोह मातीए । आठ कर्म दुख दाय कामण जो । आयूँ कर्म खवारी करे । मो० । आठ न नाम सुहाय ॥ का० ४ ॥ विष मिश्रित पकवान रो। मो० । ज्ञाता भेद लहाय || ढाल
३२. । का० । हरमंज सेवन नहीं करे । मो० । मेठाये ललचाय ॥ का० ५॥ मेण दांत लोहो का चिंणा । प्रा०। कैसे कवि ननचाय । वा० । कोमल तनु माखण जिसो । मा० । केम परिसा सहाय ॥ वा० ६ ॥ इहां सुख सेजा पाथरी । प्राः । उहां कंठाली भूम | बा० । इहां खस खाने पोढता । प्रा० | उहां अगन झालसी ||

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