________________ फुरसत / म० / आप तुल्य घर वर ताईजी / मत जोजो मेरी राह तुम्हे दीजो परणाईजी / छोटीकड़ी / पास प्राम विच आछो वर जोई लीनो | माता ने कन्या को व्याव धूमसे कीनो / शाक्ति के मुवाफिक डाइज्यो देदीनो / म० / सासर गई कुमारीजी // उस० 2 // अब पिता परदश से चल्यो काम से निपटी। म० ! आयो उसी ग्राम के मांईजी / सगपण की खबरन काय सराय में उतरा जाईजी। रजनी के बिच जा छत के ऊपर सुते / म / सुता का घर था वहांईजी / अर्द्ध निशा पैशाब करण वो बाहर आईजी / छोटीकड़ी / दीपक के उजाले देख बहात में सहाई / व्यभिचारण कन्या बोलत नहीं शर्माई / दो हार गलाको फिर बछु तुमताई ।म० / भोगवरा दिया उतारीजी ॥उस० 3 // दोई कर्म कमाके निज स्थान जा सूता / म०। प्रात हुवा सेठ सिधायाजी | वो निज नगरी में आय कुटुम्ब से मिल हुलसायाजी / कन्या को बुला के पिता अति सुख पाया / मा० / हार जद नजरां आयाजी भेद जान बेटी फांसीले प्राण गमायाजी / छोटीकड़ी / हुवा जन्म अख्यारत सेठका सुरजो भाई / कहे चोथमल्ल अब त्याग करो चितलाई / मरूस्थल में प्राम बिलाडा मांई / म० / उन्नीसे तिहोत्तर मुजारीजी // उस० 4 //