Book Title: Jambu Gun Ratnamala
Author(s): Jethmal Choradia
Publisher: Jain Dharmik Gyan Varddhani Sabha
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ श्रीवीतरागायनमः॥ ॥ श्री जम्बु गुण रत्न माला॥ श्रीमान् श्रावक जेठमलजी चौरड़िया जैपुर द्वारा रचित. और श्रीमान् बिनयराज जी (बनराजजी) के सुपुत्र विजयराजजी बलुंदा (मारवाड़) निवासी की आर्थिक सहायता से. मुन्शी केशरीमलजी रांका के पुत्र मोतीलाल रांका, मंत्री-श्री जैन धार्मिक ज्ञान वर्द्धनी सभा ब्यावर, ने सर्व साधारण के लाभार्थ , . श्रीयुत् डाक्टर धारशी गुलाबचन्द संघाणी H. L. M. S. के प्रबन्ध से "श्री जैन सुधारक प्रेस" अजमेर में . मुद्रित करा कर प्रकाशित कराया। प्रथमावृत्ति १००० ] माघ शुक्ल पूर्णिमा वीर सं० २४४३. [मूल्य १ प्रति।।) पुठेकी।-)॥ १५ के ५) lao Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धन्यवाद। श्रीमान् विजयराजजी (बिजैराजजी) खींवसरा बलुदा [ मारवाड ] निवासी को धन्यवाद दिया जाता है कि जिन्होंने इस पुस्तक के प्रकाशन का सम्पूर्ण व्यय अपने पुत्र जन्मोत्सव के उपलक्ष में प्रदान किया है । आशा है कि अन्य महानुभाव भी आप का अनुकरण कर अपने धर्म परायण होने का परिचय शिघ्र देंगें । मोतीलाल रांका, "प्रकाशक" शील रक्षा प्रथम भाग ॥ . इस पुस्तक में शील की महिमा और कुशील का बखूबी निषेध किया गया हैं, और शील किस तरह ग्रहण कर ना चाहिये इसका वर्णन भी अति उत्तमता से बतलाया है, मनुष्य मात्र को अवश्य पढ कर लाभ उठाना चाहिये । इतनी विशेषतायें होने पर भी मूल्य केबल १ प्रति )॥ ३५ प्रति १) . " जैन " भावनगरानी अन्दर काव्यमां शीलनी ६ बाडानुं सारी रीते स्वरूप आपेल छै आदि । Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रावका धर्म दर्पण अर्थात् नारी धर्म निरूषण। यह पुस्तक बडे महत्व की है : यह पुस्तक गुजराती में प्रकाशित कर " जैनाहतच्छु" के विख्यात सम्पादक बाडीलालजी शाहने “जैन समाचार" पत्र के ग्राहकों को भेटदाथी, भाषा एसी सहल है कि हरेक बच्चे के भी समझ में आसकती है, यह पुस्तक स्त्रीयों के विशेष उपयोगी है इस में छोटे २ वाक्यों में स्त्री धर्म वर्णन किया गया है इसका प्रत्यक वाक्य स्त्रीयों के कंठ करने योग्य है मूल्य केवल १ प्रति ॥ १० प्रति १) हरेक स्त्री पुरुष के बांचने योग्य उत्तम ग्रन्थ. भावनाशतक (मूल संस्कृत भावर्थ विवेचन हिन्दी में ) लेखक-शतावधानी पंडित मुनि श्री रत्नचन्द्रमी महाराज. इस पुस्तक में शास्त्र में कही हुई बारह भावनाओं का स्वरूप मूल संस्कृत में हरेक भावना आठ आठ श्लोक में वर्णन की गई है जिसका गुजराती भावार्थ विवेचन सरल भाषा में दाखल दलील पूर्वक दर्शाया गया है भावनाओं का व्यवहार स्वरूप समझ कर ज्ञान प्राप्त कर दुःख मय संसार को सर्वग रूप बनाना होवे तो भावना शतक अवश्य पढ़िये, अति उत्तमता से मुग्ध होकर हमारा विचार हिन्दी में छपाने का हुवा है. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शील रक्षा द्वितीय भाग। अर्थात् सुदर्शन सेठ चरित्र ( काव्य) ( दीप कवि रचित) क्या आप ने शील शिरोमणी सुदर्शन सेठ का नाम नहीं सुना? लीजिये उनहीं का यह चरित्र हैं। सुदर्शन सेठ एक वीर शिरोमाण होने से दोनों उपसर्गों में शील को कायम रक्खा, तो शूली का कष्ट भी सिंहासन के रूप में परिवर्तित हो गया। साथ में उनकी पत्नी ने ऐसे कष्ट में भी धैर्य रख कर परमेष्टी मंत्र का जाप किया है। यह खास विचाय है मनुष्य मात्र को पढ़कर लाभ उठाना चाहिये, छपाई व टाइटल पेंज उत्तम मूल्य केवल १ प्रति और ११ प्रति १) मात्र, "जैन" भावनगर-श्रामा सुदर्शन सेठनुं शील वर्णन घणीज सारी रीते बांचनारने रस पडे तेवा काव्यमां रचबामां आवेल छे आदि। . (१) स्तवन तरङ्गिणी प्रथम भाग) द्वितीय भाग) (२) शालोपयोगी जैन प्रश्नोत्तर भाग १-२ मूल्य ) (३) सौतिया डाह-एक बहुत ही रोचक उपन्यास मातादीनजी मिश्र द्वारा अनुवादित । मूल्य १ प्रति Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शीघ्र छपेगा ! प्रत्येक स्त्री पुरुषों का मनन करने योग्य अपूर्व ग्रंथ [हिन्दी में ] रत्न गद्य मालिका भाग १ - २० लेखक शतावधानी पंडित मुनि श्री रत्नचन्द्रजी महाराज. शीघ्र छपेगा !! 1 इस पुस्तक के प्रथम भाग मैं मुनि श्री रत्नचन्द्रजी महाराज श्री के जाहिर पत्रों और मासिकों में दिये हुबे लेखों का संग्रह है । और द्वित्य भाग में मुनि श्री के जाहिर सभा में फरमाये हुवे ८ भाषणों का संग्रह किया गया है धर्म का व्यवहार स्वरूप जो समझना होवे, और ज्ञान प्राप्त कर दुःख मय संसार को सर्वग रूप बनाना होवे और संघ तथा धर्म की तथा आत्मा की उन्नति करने की इच्छा हो, और जैन धर्म का उत्तम ज्ञान समझने की उतकण्ठा होवे तो रत्नगद्र्यमालिका के भाग १-२ अवश्य पढ़िये । मूल्य हरेक भाग का लगभग ।) होगा, २५ प्रति के अगाऊ ग्राहकों का शुभ नाम पुस्तक में अगाऊ ग्राहकों की श्रेणी में दर्ज किया जावेगा, इस लिये शीघ्रता कीजिये और इस सुनहरी अवसर को हाथ से न जाने दीजिये | Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निवेदन। श्री जैन धार्मिक ज्ञान वर्द्धनी सभा ब्यावर के पुस्तकें विभाग द्वारा जैन धर्म सम्बन्धी नाना प्रकार की पुस्तकें प्रकाशित होती रहती हैं । १-इसके लिये जो सज्जन पुस्तकें लिख कर या अनुवाद कर कर भेजेंगे, उनका यह विभाग बहुत ही कृतज्ञ होगा। २-जो दानी अपने व्यय से किसी पुस्तक को प्रकाशित करा देंगे, उस पुस्तक का मूल्य उनकी इच्छानुसार रक्खा जावेगा।३-पुस्तक प्रकाशन में अधिक सहायता देने वाले या किसी प्रकार की विशेष सहायता देने वाले सज्जनों के शुभ नाम धन्यवाद सहित उसी पुस्तक में प्रकाशित करा दिये जाया करेंगे । ४-प्रत्येक पुस्तक का कुछ न कुछ मूल्य अवश्य रक्खा जावेगा, क्योंकि बिना मूल्य की पुस्तक की यथार्थ कदर नहीं होती। ५-पुस्तकों का बिक्री का जो द्रव्य प्राप्त होगा, वह पुस्तक प्रकाशन के कार्य में ही लगाया जावेगा। -साहिबचन्द्र जैन उपमन्त्री पुस्तक विभाग श्री जैन धार्मिक ज्ञान वर्द्धिनी सभा ब्यावर. सर्व पुस्तक मिलने के पतेः-[१] मुन्शी केशरीमल मोतीलाल रांका अर्जीनवीस न्यावर. [२] श्रीमान् पद्मसिंहजी जैन मानपाडा आगरा Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ॐनमः सिद्धम् ॥ * श्री वीतरागाय नमः * ॥ श्री जम्बु गुण रत्नमाला॥ ॥ दोहा ॥ सासण पत वृद्धमाननो, भजनपूरपञ्चाण । अघवैरी नासे सही, तम तिम ऊगा भाण ॥१॥ गणधर मुधर्म स्वामीजी, पाटोधर गण गेह । जंबू पाटवी. तास, शिष्य, ज्येष्ठ कहायो तेह ॥ २॥ जंबू तंबू कर्म को, तोड तणा सनेह, कंदर्प चोब उखाल के, बाहिर निकन्यो तेह ॥३॥ वरद्यो घरणा स्वामिनी, महिर करी मुझ माय । वरणूं जंबू कथन हूं। प्रणमी सद् गुरु पाय ॥ ४ ॥ श्रवण करो श्रोता तुमे, छांड सकल परमाद । एक चित्त रस पीवतां, पांत सुधा गुण स्वाद ॥५॥ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ju माला ढाल॥१ली चौपाईनी। जंबू द्वीप लख जोयण जान, मझा नगा द्वीप ऊर्द्धए मान । दिखणाढ़ खेत्र, भरत विस्तार। सादा पचीस देश आरज सार ॥१॥ राजग्रहे नाम नगरेसर । भू भामिनी मुख सोहे नकवंशर । राजवी श्रेणक नाम महाराज । सजन प्रजनरा सारे काज ॥२॥ न्याय नीत प्रति पाल गंभीर । शूरवीर गुण ग्राहक धीर । वेरी गंजन सयण कृपाल । तेज पुंज हरि रूप स्शाल ॥ ३॥ चेलणा देवी पाटवी नार । रूप अनूप सची अनुहार । श्रमण उपासक शील विख्यात । पति रंजन भंजन मिध्यात ॥४॥ तनुज मंत्री अभयकुमार । नंदा अंगज प्रिये दीदार । चारूं बुद्धि निधान प्रसिद्ध । राज धुरा डाहो बहु विद्ध ॥॥ चित्त दयाल धर्म में रक्त । गुणोदधि पिताजीरो भक्त । बचन वदे मृदु जैसे कीर । न्याय मुराल ज्युं कर पयनीर ॥ ६॥ रइत तणी रक्षा करे जेम । पिस्ता विदाम रीठंडी तेम । पुन्यवंत नर बहु लाज से । शाल कवर सा सुखिया वसे ॥ ७॥ तिण काले तिण समय मझार सासण पत विचरे सुखक र । गुण शील नाम मनोहर बाग। वीर पधारीया भवियां भाग ॥८॥ वन पालक नृप डोदी आय । दीधी बधाई हरख्यो राय । पहिरय। सो दिया गहणा वस्त्र । राज चिन्ह वरजीने शस्त्र ॥६॥ महीपति ताम अलंकृत थाय । चतुरंगणी सेना सजप्राय । मभु पद पंकज वंदण काज, चल आया श्रेणक महाराज ॥१०॥ पांच अभिगम सांचवि पैदा, वंदण कर प्रभु आगल बेठा । नगर लोक बहु त्रिगडा मे आया। दरसण करने आनंद पाया ॥ ११॥ जग गुरु तब उपदेश || भगतां । श्रोता एकाग्रह चित्त सुणतां । पुदगल रचना अथिरही जाणी । राचो मत तुम भवियण प्राणी ॥१२॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबु गुण माल पृ. ३ चार अनंतीए सुख पोम्या । चार बीश इंडक में भ्राम्या दान, शील, तप भावना भावो । कर कर्ररणी कर्म का उडावो || १३ || अजर अमर पद तुमही पास्यो । दया भाव दिल में जो लास्यो । भिन्न २ संबेग रचावे । उरण विन इमो कुण मार्ग बतावे ॥ १४ ॥ हलुकर्मी जिन मुख साम्हो न्हाले । वीतराग तुम धन्य हो कृपाले तो विन कवण निकासन हारो । जगत फंद दुर्गति दातारो ॥ १५ ॥ केई व्रतले केई वेरागे । लटिक २ जिन चरणा लागे । मगधाधिप कहे प्रफुल्लित हृदे । तारण तिरण तुम साचो वृदे ॥ १६ ॥ सभा सकल मन रंजत थाई | वंदना करके शीस नमाई । आया जिण ही दिस कुं जाई । ढाल ए प्रथम चौपाईनी गाई || १७|| ॥ दोहा ॥ ति अवसर एक देवता प्रभु समपि प्रकटत । चरण कमल विच शीस धरे । परसन एम करंत ॥ १ ॥ मुझ सुर ाउ केतलो । भाषो जगदाधार । सात दिवस बाकी हिवे । दाख्यो श्री करतार ॥२॥ अमर हुवो अदरस जदा, श्रेणक इम पूछतं । किहां यह त्रिदश उपजसे फुरमावो भगवंत ॥ ३॥ ए इह ही उपजसी, सुरण श्रेक राजिन्द । पुनरपि पूछै नरपति, वंदि पद अरविन्द ॥ ४ ॥ इहा उपजसे जहां लगे, प्रभु भव पांच श्रख्यात । कृपानाथ कृपा करे, ते सुखजो साख्यांत || ५ || || ढाल दूसरी ॥ रामजी पधारिया ब्राह्मण केरे गेह ॥ ए देशी || श्रेणक पूछया अंतरे, भाषे दीन दयाल | सावधानं थई सांभलो, एह संबंध रसाल ॥ १ ॥ भविक जन चेतजो. सुरण कर यह अधिकार । इा हीज जंबू द्वीप में, पुरेनामे सुग्राम 1 far भिखारी तिहां, बसे रावड पामर नाम । भ० ॥ २ ॥ तंस पतनी पर कंदरा, उपना, नंदन, दोय । नाम ढाल २ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्न प्र. ४ ..| दियो भव देवजी । दूजो भाव देवहो । भ० ॥३॥ अटन करी अन मांग के, लाचे भिक्षा कराय। रेवती माता | तदा भोजन देवे वणाय म० ॥ ४ ॥ इण विध करे दिन पूरणा । दुःखे २ गमे कोल | एकदा पुन्य अकुरथी, मिल गया साधु दयाल । मे० ॥ ५। दरसण कर भवदेवजी, अर्जी कीधी एम । हुं दुःखियारो अत माला घणो। मुझ सुख होवे केम । भ० ॥ ६॥ संत कहे भव्य सौभलो, चरित लियां सुख होय.। संसार में फसि यांथकां भव २ माहे रोय। भ०॥७॥अल्प कमी के आई पासता, लीनो संयम भार । जप, तप, खष, करणी करी, रंगियो धर्म मझारभ० ॥८॥ एक दा चिन्ते माहरो, लघु भाई दुःख पाय। परम प्रीत उण सुंहूती, काहुँ हिवे समझाय ।। भ• ॥६॥ गुरु सुंमागी आज्ञा, फिर आया सुग्राम । लघु बंधव बंदण भणी, चाली. आव्यो ॥भ० १०॥नि कहे भाइ सांभलो, क्यों भोगो जग देःक्ख । निकलो तुम संसारथी, ज्यु मिले अवि चल सुक्ख भ० ॥११॥ भाव देव कहे भाइजी, म्हारो हिवडा व्याह । नागला नामा नार सुं, होरह्यो सोई उच्छाह ॥ भ० ॥१२॥ पुनरपि बोले ऋषि वरु. हुवा अनंती वार। व्याह से गर्न सरे नहीं, तुम प्रावो हम लार ॥ भ० ॥ १३ ॥ लज़ना कर नटना सक्यो, भ्राता सरम अपार । दिक्षा ले लारे हुवो, विनय वंत आचार । भ० ॥१४॥ अध परणी गृहणी तजी, विचरथा बंधव संग । नेह तां तूं तूठो, नहीं धृग पड़ोरे अनंग। ॥ भ० ॥ १५॥ पंच महा व्रत पालतां, बीतो कितनो ही काल ।सुरगति लही भव देव जी, आतम ने उजवाल भ.॥१६॥ भाव देव लार रह्या, अंकुश बिन गजराज । समरी चित्त में नागला, चाल मिलू हिव आज ।। ढाल Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लंबु शृण रक्ष माला हृ. ५ म० १७ ।। इम चिंती तिहां आवियो, उतरचो जख मकान । नागला सुखी साधु आवीया, भल उगीयौ आजभान ॥ भ० ॥ १८ ॥ पद पंकज वंदना, भरणी ते तिहां आई चाल । मुनि ने भारत देखने, चिंते यो काई हृदयाल | भं० ॥ १६ ॥ वंदना की घी जगत सुं लुल २ शीस नमाय । छकाया रा तातज़ी धन २ तुप ऋषिराय || भ० ।। २० ।। विनय करी ने बीनवे चित किहां छै मुनिराज । मुनि कहे श्रावका सांभलो, एक करो हम काज ॥ भ० २१ ।। फुरमावे कृपा करी, जिम छै तिम सुणाय । नागला ने जाणेय छै, तो ल्याई हां बुलाय ॥ भ० ||२२|| चतुरा चिमकी चित्त में, धृग् २ कर्म कठोर । निवै माहरो नाहलो, आयो इहां उदै जोर ॥ भ० ॥ २३ ॥ द्वितीय ढाल इम वर्ण बी, मोह कर्म विरतंत । भवियण आगल सांभलो । दृढ किम करें सती संत ॥ भ० ॥ २४ ॥ दोहा ॥ किण सुकाम कुण नागला, कवण चरित की रीत । कहो कथा सब मुझ भणी, किम बगड़ी तुम नीत ॥ १ ॥ नव जोबनडी तजी, बंधव केरी लाज । आयो कुं इस अवसर, दंपत सुखरे काज ॥ २ ॥ ढाल तीजी ॥ वीर नृपत अन्य दास में देशी ॥ सती कहे संता सांभलो, चारित सुंमत चूक । मुनि श्री पावती का सती ग्रहो कहूंछू पाडी कूक ॥ मु० ॥ स० ॥ १ ॥ दुक्कर मानव भव घरणो, अि दुक्कर पाम्यो धर्म | मु० सहिजे ही नहीं खोइये, राखी कुलरी शर्म । मु० । स० ॥ २ ॥ मेवा मिठाई छांडके, करे हलाहल आहार | मु१ साल दुसाला तज करी, घोडे दाट गंवार | ० सा० ॥ ३ ॥ गेंद सवारी मूंक के, चढ़ बैठे लंबो कर्ण, सु तिम स्त्री सुख तुम चहो, बम कर उत्तम वर्ण । मु० स० ॥ ४ ॥ मारी क्यारी डाल Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज अफीमरी दें।से सुंदर गात, मु० फल रस भोगळयायका, कटुक करे जीव घात । मु० स० ॥ ५॥ तन छोजे। गुण ॥ अरु धन घटे, रहे नित बात ध्यान । मु० तेली का सा वृखभ, ज्यं भ्रमत सदा अज्ञान | TOस॥६॥। | ए भव इम विपता पडै, पर भव नरक नीगोद । मु० ॥ कनक जीब कर्म मेलकू, ज्ञान सुवागे सोद ।मु० । माल स० ॥७॥ इत्यादि उपदेशियो, ऋषजी विषे में राच । मु०। कहे मुझ कुं कुछ गम नहीं, जागो मोह पिशाच । मु० । स० ॥८॥ गौरी उ गुणन की चातुरी रूप अनूप । श्राविका कर झाली । छिटकाई दई कीधो यह विरूप । श्रा० । अंतर वारता सांभल। ॥६॥ चात्रक खात। बूंद ज्यू, चाहती थी वा मोय | श्रा० । हिवडा माहरा वियोग सुं दिन भरती होसी रोय । श्रा० अं०॥१०॥ अधबिच अबला वज गयो, कधी अतही तिरास । श्रा० । तुम उपकार किया थक्रां, सफल करूं हिव आस । श्रा० । अं ॥ ११ ॥ आस करे इक धर्मरी, रोवे उणरी बलाय । मु० । जाणे विषे विष सारिखो, थे क्युं रया ललचाय । मु० । स० ॥१२॥ इम तोहुं मानूं महीं, दीग विण परतीत । श्रा० । ज्यो हूं तुमने मेलऊ, करवी नाहीं कुरीत । मु० । स०॥३३॥ जिम तूं कहि तिम दसे से, तो तुम हमएवाच । श्रा० । जद.बोली हूंई नागला, मान मुनि ये साच । मु. ! || द.स स० ॥१४॥ त्रट की बोल्यो ऋषि वरु, साधा सुं करे हास । श्रा० मत छेड़ तुं मुझ भणी, जाजे इहां थी नास। श्रा० अं० ॥१५॥ पथिक पूछे पद्मण भणी बोलीक रूपा एम। श्री० भरम धरे लोक माहरो, तू पिण दाख्यो || तेम । श्रा० । अंक ॥१६॥ तुझ बिना नागला, कुस हुवे रूपे रूड़ी चंपेल | श्र{ । तन अंगाल सोहे रह्यो ।' Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जवु माला प्रत्यख दीसे चुडेल । श्रा० अं० ॥१७॥ गुप्त वात दाखी तदा, चमक्यो चित्त निग्रंथ । मु । मौवन प्यारी | भल मिली, तूं नारी हुं कंथ । श्रा० । अं० ॥१८॥ कुण नारी कुणनाहलो, अकल ठिकाणे लाय, । मु. । हूं छू श्रमण उपासिम, तुम छो हम गुरुराय । मु० स०॥ १९ ॥ बे नाता संसारना, हुवा अनंती बार । मु० । निश्चल नातो एह छ, भोगां सुं होवे झार । मु० । स० ॥२०॥ त्रितीया दाखी ढाल ए, सती दियो उपदेश । मु० । दृढ धरमीजे थाय से, टलसी सकल कलेस । मु० । सः ॥ २१ ॥ दीहा- तुम वो मोकू तज मया, मिल्या सुगुरु मुझ भाग । आतम सरूप जणावियो लग्यो धर्म से राग ॥१॥ शील व्रत सुद्ध राखियो, रंक तणी पर रत्न । करणी कर तन सोखियो । ज्ञान तणो कर यत्न । ॥ २॥ नीट नीठ धन जोडियो, करी तुच्छ व्यापार । लाखां रा व्योहार कर, थे स्यू काढ्यो सार ॥३॥ पर्व दिवस पोषा करूं, देवू सुपातर दान । छट न आमल पारणो, द्वे प्रहरा अनुमान ॥४॥ विषय भोग मन नहीं रुचे, करूं निजातम काम । थिर थापो परिणाम तुम । चित कुंल्याको ठाम ॥ ५ ॥ ॥ ढाल चोथी ॥ देशी चौकरी इन्द्र प्रभु जग जीवन अंतर यामी । ए देशी ॥ मुनि चित्त मांहे चमार्कयो, सती सीख चाबुक दियो । कुपंथे हुँ प्रवृतियो निज कुल दाग लगावियो । दृढ चित्त भयो, ज्ञान बाग सुं । मन हय फेरी लीनो । शिवराह गयो चिहुं गत चोक में, भ्रमण करणथी व्हीनो ।। १ ।। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क। सती शिरोमण जग जांची, भोग में रंक्क नराची, मेतो बात करी काची। उपकारण तुंबै सांची । ० ॥ १ ॥ रहनेमनै, राज मती । धीर करसी उपदेश जती, पासे ने पंचम गति । ज्युं उधारयो तुं सेती ॥ ६० || २ || बारे बरन संजम पाल्यो स्नेह दोष रंचन टाल्यो । नागला सांमी फिर नाल्यो. चरित खोक में नहीं चल्यो | ० || ३ || गुरु चिन्ता मणि कर दीनो. गेरी कांकर ले लीनो । इमपछताको बहुकीनो । 2. मान्यो गुण निज स्त्री नो । दृ ॥ ४ ॥ संजम सुद्ध फिर आदस्यो । अत ही दुष्करतप करयो । कर्म रूप रिंपु सुं डरो। तर दोष से उधरयो । दृ० ।। ५ ।। नागला बाला ब्रह्मचारी | पाली श्रावक व्रत भारी । स्वर्ग गई कार सारी । होगई एका अवतारी ॥ ० ॥ ६ ॥ भाव देव भव भय हरतो । श्रातम निंदा बहु करतो । उत्तम करणी अनुसरतो । निरतिचार पाले चरतो ० ॥ ७ ॥ अंत समे ऋण सण कीधो, आराधन अमृत पीधो । सप्त सागर सुरपद लीधो । मार्ग बता दियो सती मीधो । ० ॥ ८ ॥ गीत नृत्य मंगल तूरा | मकव्या सुकृत अंकूरा । विलसी सुर सुख हिल्लूरा । आऊभव तिथ भया पूरा । दृ० ॥ ६ ॥ घवि के महा विदेह आया । वीत सोगा नगरी राया । पद्म रथ सुत कहवाया । माता वन माला जाया । ६० ||१०|| आनंद रंग विनोद भयो । जाचक नो दलिदर गयो । नरपत कुल दीपक थयो । शिव कुंवर जी नाम दियो । ० ॥। ११ ॥ वधता जैसे निशामणी । धवरावे पांचे जणी ! अष्ट वर्ष वय सुत तणी । कला महोत्तर सुध भणी । ह० ॥ १२ ॥ भोगां समर्थ जाणियां । परात्री भल राजिया | पांच सह परमाणीया परतिखते इंद्राणियां । ० ཞཱ སྠཽ ཝཿ ལྦ ྂ, गुण टाक १ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ||॥ १३ ॥ दील चौथी इमें गाई । चोकतणी देशी थाई । पुन्य जोग प्रभुत्तापाई । सुणजी थे रणव भाई।। १०॥१४॥ गुण दोहा ॥ रतन जटित मंदिर भैला गोष श्रेण सरूप । मुक्ताफल री जालिका केतुकल शत अनूप. ॥१॥ माला विछी विछायत मुखमली गीदादिक बहु भांति । सेज्या सिंहासन मणि रचित | पैशै शिव मन खांति ॥२॥ जैसे सुररु सुरांगना भोगे भोग उदार । शशि वना रा रमणं ज्युं ज्योतिष चक्रे विचार ॥ ३ ॥ बैठ झरोरो निरखता इतनृत्य उत बाजार । नित प्रति सुख भीना रहे भामिनी से भरतार ॥ ४ ॥ ढाल पांचमी-वीरजी जी बखाणी मुनीश्वर करणी प्रापरी । ए देशी ॥ एक दांगाखे हो भवि अन बैठो मोजसुं, जोता नगरी भार॥सुणो तुमे श्रोता हो, हलुकर्मी होता हो, भ० शिवकुंवर जिसा, नयशी दीठा हो । भ० आता दूर सुं । तप मूरत अंणगार । सु०॥ १॥ तन पर सेवी हो भ. धूप पडे घणीं । दाजे पग सुखमाल । सु० । शीश उघाडे हो । भ० । सूरज तप रह्यो । चाले गज गंतं चाल। सु०॥२॥ | ढाल हाथ में झोली हो भ० । मेला कापडा । मुखपती सौभे मुख । सु० शिव मन चिंते हो । १० । दीसे सुख णा । क्यु सेहे इतनो दु:ख । सु०॥३॥ एम विषारी हो । भ० । जाय पूछू एहने । जदि छेदवे शंश । | सु० । महिसारे हेटे हो । भः । तुत ही उतरथा । नाम शिर से अवतंस । सु०॥ ४ ॥ बंदणा कीधी हो । || Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबु | जपणा सुगत सुं । बूझे बे कर जोड । सुण तुम सामी हो | गुणरा धामी हो । ऋषीश्वर इतो दुःख क्युं सः | हो । वदन तुमारो हो । ऋ० कमधन सारिखो । किम निकस्या घर छोड । सु० ॥ ५ ॥ पूछां थी बोन्या हो भ० वचन सुधासमा । सांभल शिवही कुमार ॥ मुण तुं भाई । अति सुखदाईरे भ० जोगारम हूंजियो । विषय विटंबण हो। भ० मीठी खाज ज्यु । रस चूां दुःखकार सु० तू०॥ ६ ॥ डंडक चोवीसे हो । भर । चहुं गत में नम्यो । भोग्या भोग अनंत । सु. तृप्त न थायो हो । भ० । जीव अनाद सुं इम भाख्यो भगवंत । मु. तू ॥७॥ सेंदो सो दीसे हो भ० मुनि नो रूप ए । सैदोए उपदेश । सु० श्रो० । एम ई हापो हो भ० हियडे लगावतां । जाती मुमरथ येश । सु. श्रो० ॥८॥पूर्व भवे देख्यो हो । भ० । हस्तां बल परे । खुल गया अंतर नेण । मु० । श्री० । माता ने वप्ता हो । भ० । बधंव ते बधू जाण्या स्वार्थी सेण । सु० श्रो० ॥६॥ चरित मुहायो हो । गुरांजी । लुभायो लेणकुं । अर्ज करी तत खेव । सु० श्रो०। पाछा ही अज्ञा हो भ· । मागण आगन्या । जननी जणायो भेव।। सु० श्री० ॥ १०॥ भणे मात तात हो । बालुडोरे वछस्युं कहे । समझने काढो बात ॥ सुण तूं अंगज हो । रंग्यो धर्म रंगज हो। बालुडा अम - || ढाल धार, कासो साधुनी वृति हो । बा० । दुष्कर छ घणी । किम पालेस्यो जात । सु० अं० ॥११ ॥ वाईस 4 रीसा हो बा० सहणा दोहिला। कोमल तन सुख माल । सु० अं० इहां सुख भीनो हो। बा० निस दिन तू रहे । जातो न जाणे काल । सु० अं० ॥१२॥ मोह छक नरने हो पिता जी मुसकिल पालको। ज्ञाता मे Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण सुख अपार ।। मुणो माता ते ही निज गुण बाते हो पि० अनुमति दीजिये । फल किं पाक हो । पि० विषय | . सुख सारिखा । रस प्रण मन दुख कार । मु० मा० ॥ १३ ॥ उत्तर प्रत्युत्तर हो भ० । हुवा अति घणा । कुंवर न पमो मोह जाल । मुं० श्री० तिर उतरे होही हो । भ० माता पिता तदा । श्रावक तेड्यो तत्काल। माला सु० श्रो० ॥ १४ ॥ जिण दास आव्यो हो । भ० नृप पतलावियो । अमृत बचन निदान । || मुण तू प्यारा हो। कर काज म्हारा हो । श्रावक । उपकारी तुमें । पूत हमारा हो श्रा० राख्यो ज्यो रहे । मानस्युं बहुत आसान । सु० प्या० ॥ १५ ॥ इष्ट क्रांत कारी हो । श्रा० मुझ कुल दीवलो । भंड करंड ज्यूं चाय । सु० प्या० । रंक ज्युं रत्ने हो । श्रा० एक तनुभ मिल्यो । क्षण भर विरह न खमाय । सु० प्या० ॥ १६॥ नृप कहणे पायो हो । भ. श्रावक जी तदा। कुंवर जी के पास । सु० श्री० । साधर्म हो भ० ततक्षण ऊठीयो । न मन कियो उल्सास । सु० श्रो० ॥१७॥ संबेग राच्यो हो भ०। निज़ श्रुप ओलख्यो । धन २ इन्द्र ए जीत । मुणो तुमे कंवरा हो । धर्मकज भवरां हो । भ० । वातो माहरी । कुटुम्ब तुम्हारो हो । भ० । कुरले छे कामिनी । जननी जनक एही रीत । सु० कं० । १८ ॥ ज्यो मन भाव हो ! भ० सुहावे आपने । घर रही परम पुनीत । सु० कां० श्रावक वृत्ति हो । भ० । निश्चल पाली ये गुरु जन | केरा वनित । सु० कां०॥१९॥ मन में आलोची हो भ०। सोची बहु परे । भोगावली ने नीठाय मु० श्रो० । || दीय दिन पीछे हो भ० अवसर देख स्युं । मानी संसारयां री बाय । मु० । भो० ॥ २० ॥ पंचमी दाले हो। । | ढाल Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || भ० दाखी इण विधे । तृतीय भव विस्तार । मु० श्रो० । श्रवण करतां ही भ० कथन सुहामणा । नित ही | | मंगलचार । सु० श्रो० ॥ २१ ॥ दोहा-न्याती लाधा मे घणा विषय भोग सनेह । निपुण पारखू चतुर जन किम गर्भित हुवे तेह ॥ । माक्षा ॥ १॥ जप तप व्रत करिके भरी । निज पुंजीरी खेव । संजम न्यो भल घर रहो वृत्ति कवल अलेप ॥ २ ॥ पोषध प्रतिक्रमणा करे, ब्रत पाले निर्दोष । छठ२ श्रामिल पारणे लगी सुरत इक मोष ॥ ३ ॥ इत्यादिक कर. णी करी वर्ष द्वादश पर्यंत । दुर्बल देह मुमाल अब जाएयो नहीं निकसंत ॥ ४ ॥ कर अणसण अराधना. काल समे करि काल । प्रथम कल्प सुर ऊपना, पाम्या भोग रसाल ॥ ५॥ मुरियाभ जिम ऋद्धि लही वि. जुन माली देव । आतम रख देवागणा सहसा गम करे सेव ॥ ६॥ वो सुर राजन एद्द छै, कह्यो तुझ से विस्तार । इणहीज नगरे उपज से जंवू नाम कुंवार ॥ ७ ॥ श्रेणक नृप हरष्यों बहु हृदे प्रफुल्लित थाय । त. इत वचन वंदणा करी आयो जिण दिस जाय॥ ८ ॥ अब जन्मादिक वारता. कहूं अछु सुखकार । भवियण भावे सभिलो. मन भावन अधिकार ॥ ६॥ ढाल छही ॥ खबर करी तत खेय पदम सीखर भणी ललना ए देशी । सेठ ऋषभदत्त नाम. बसे तिहां धन धणी । ललना । घणा सेठ तस हेठ, लक्षी तेह ने अति घणी । ल. धारणी नार उदारक शील | . Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंयु गुण रख माला पृ.१३ शिरोमाण । ल । रूप सरूप अपारक । दुति दामन तणी। ल.॥१॥ अवर घणो परिवारक दास शशी कह्या । ल० दानतदार व्योपार बाणोत्तर कर रह्या ।। लः ॥२॥ मंदिर मनोज्ञदुकान मकानात फूटरी । ल । रथ गाज गजराज । कतारां ऊंटरी । ऋद्ध समृद्ध अगंज शगैर आरोगता ॥ ल:॥ ३ ॥ शीतल सोम दीदार । घणा मुख चोगता । ल । पति प्रमदा गतिकाम । जिसा सुख भोगता ॥ ल०॥४॥ गरम धरै तिणवार । जकड पुन जोगता ॥ ५ ॥ जम्बु सुदर्शन वृष । निरख सुपना विषै । ल• । सेठाणी सेठ पास। हरष आवी तिसे ॥ ल०॥६ कह्यो सकल विरतंत । कंत सुण गह गह्यो । ल । होसी पुत्र रत्न सोहण भल तम लह्यो ।। ल.॥७॥ उपजे डोहला मुष्ट । सामायिक कीजिये । ल । दान चतुग्दश भांति । उत्तम पात्र दीजिये ॥ ल० ॥८॥ करे गर्भ प्रतिपाल । दोषण सहु टालवे । ल । डाहवी चतुर सुजाण । शास्त्र रीत चालवे ॥ ल० ॥ ९॥ नव मासे सप्त रात साढी सुखे बीतिया । ल । भलो नक्षत्र मेल्यो जोग । कंवर जी जनमीया । ल० १०॥ हई बधाई गेह । सजन जन हराखिया। ल०। ग्रहपति आनंद पाय | अंगज गुण निरखिया । ल. ॥ ११ ॥ गोरड्यां गावे गीत । मंगलाचार हो रह्या । ल । ढोल दमामा नाद । जाचक जन जस कह्या ॥ ल.॥ १२ ॥ गीत नृत्य वाजंत्र । नादे अंवर गाजियो । ल । खर्च अमामा माल । महोत्सव बहु साजीयो ॥ ल.॥ १३ ॥ कलश लेई २ हाथ । मुहागण गोरडी । ल । गाव धवल अनूप । मानु बोले मोरडी ल० ॥ १४ ॥ सहासणी संतोष । कुकंम रंग घोलिया । ल०। वांधी बांदरवाल । मनोहर पोलिया।। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबु गुण रक्ष माला पृ. १४ ल० ॥ १५ ॥ बट्टी रात जगाय । सूरज दिखलाविया । ल० । सुपन अर्थ थी । जंबू नाम घराविया ॥ ० ॥ १६ ॥ धात्री पांच पहिली धाय । दूध धवरावती । ल० । कला सिखाय न्हावय । श्रृंगार करावती ॥ ल ०. १७ ॥ गौर वर्ण कज्जल नैन । भाल शशी मोहता । नेत्र अधर नख अरुण । चरण कर सोहता ॥ ल० ।। १८ ।। वस्त्र अमोलक धार | रत्नरा भूषणा । ल० । मणिमई घूघर हाथ । मनोगम रूसणा || ल० ।। १६ ।। ठमक २ की चाल । माता लारे आवही । ल० ॥ जैसे मराली संग बचासो भावई ॥ २० ॥ अष्टवर्ष अनुमान । हुवा कुँवर तदा । ल० । कला आचारज गेह । म्हेल्या भगवा जदा ॥ ल० ॥ २१ ॥ कला बहुतर मांहि । निपुण हुवा तुरंतही | ल० । चारूं बुद्ध निधान । बलि न सके धुर्त ही ॥ ल० ॥ २२ ॥ निकसे हवेली बाहर | नगर जन जोवता । ल० । कामरूप प्रत्यक्ष कामण मन मोहता ॥ ल० ॥ २३ ॥ सांडस वर्ष हुवा ताम इंद्रिया जाग्रत भई । ल० । यौवन बँत कुमार । पिता जाण्यो सही ॥ ल० ॥ २४ ॥ इभ से सम तुल्य मनोहर कन्नका | ० | किया सगारथ आठ के । धाया धन्न का ॥ छ० ॥ २५ ॥ आठों ही माँग अनूप । रूप अप सर जेसी | ० | लावण्यवंत सधीर । हिरणसी मुख शशी ।। ल० २६ ॥ सष्टी ढाळ रसाल | कही इस पर भली । ल० । गणधर आगम हरद सुणा आगम वली ॥ ल० ॥ २७॥ ॥ ॥ दोहा -तिन काळे तिण अवसरे गणधर सुधर्म स्वाम | मुनि पांच से लार तस विचरे पुरवर ग्राम ॥ १ ॥ पचावण भविगण मुक्त सांचा सारत बाय । गत आगत कंतारथी, घाल शित्र पुर राह || २ || राज ढाल ६ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.१५/ || ग्रह उद्यान में समोसरया महाभाग । खबर हुई राजन प्रतें । ऊपनो हर्ष अथाग ॥ ३ ॥ चतुरंगी सेना सजी।। . साथ सफल परिवार । कोणक आयो शीघ्र ही करवा मुनि दीदार ॥४॥षात विस्तरी शहर में चोहटे चोक बजार । प्रकटी वंदण भावना जंबू हृदय मझार ॥५॥ आव्या तिहां सतावही बंदी श्री गणधार । सनमुख माला जोता नैन भर । बैठा हर्ष अपार ॥ ६॥ चहुं तीर्थ पिच विराजता तारा बिच निश इंद । धर्म कथा मंडाण सूं । दाखे मार्नु मुनिंद ॥७॥ ढाल सातमी ॥ रे रंगीला सूड़ा। ए देशी। अमृत बचन मुनि बोले । भवियारा श्रुत पट खोले । मिण धरम रे को नही तोले । रे रंगावो ज्ञाने ॥१॥ पुदगल गिरधी जीवा ज्यारेज ज्ञान समगीत दीचा । भ्रम भोग्या दुख अति वारे ॥२॥ काल अनंतो भ्रमता । चहुं गत माहे रमता। मिटी मिथ्यात ममसारे ॥२०॥३॥ नरक वेदना भारी । तिरु उष्ण आहारी। जम कहे मारु मारी रे ॥२०॥४॥ वैतरणी में डारे । कुंभी घाल प्रमारे | कुंड सांवली हेठ वैसा रेरे । ॥५॥ पृथ्वी अपते उवायो । प्रत्येक साधारण कायो । जहां अनंत वार हे आयो रे ॥ ६॥ तिहुं विकलेंद्रोरे माई । तिर्यंच पंचेन्द्रीथाई । गिणती पिण जिण की नाईरे । ९० ॥ ७ ॥ शुभ जोग देव गति पाई । दुनारी अधिकाई । देखि झूरणो पड़ियो भाईरे। रं. ॥८॥ वीतो भव देव सरूपनो। पृथ्वी पाणी वणशी ऊपनो । ते सुख है गयो सुपनो रे ॥ २० ॥९॥ नखागत में श्रायो । रुद्ग शुक्रनो आहार करायो । जनता उर माहिर आयो रे । २० ॥१०॥बागल । ढाल Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबु गुण रन माला पृ. १६ सुत ॥ स्वार्थी या सब कोई कनक कामिनी तकीयो नी परे मूल्यो । छूट कहुवां फूल्यो । पूरब दुख सब भुल्योरे । २० ॥ ११ ॥ दीर्घायु पुन्य जोगे । मिल्यो शरीर नोरोगे । साथ साघवी यांरी जोगेरे । २० ।। १२ ।। पायो जे दुर्लभ पावो । अजु धर्म पंथ नहीं आवो । तो पडली घणो पछतावारे । रे० ॥ १३ चपलानो चमकारो । चल दल चपल श्रदा । ज्युं मान बनो अवतारोरे रं० ॥ १४ ॥ डाभ अणी जळ बिंदु | चलत लहर ज्युं सिंधु ॥ चल्या जात मुसल हिंदु रे । रं० ॥ १५ ॥ मात पिता नारी । करता प्रीति अपारी । पिण मुतलव करी यारीरे ॥ २० ॥ १६ घेवर चोर कँदोई । ए हेतु तन्यो जोईरे । २० ॥ १७ ॥ मोह मदिरा में छकीयां । गुरु संग नहीं कर सकीयो से || २० ॥ १८ ॥ जन्म जरा अरु मरणो । भवि जन इन से डरणो । ले ल्यो श्री जिन सरणो रे | र् ं० ।। १९ ॥ करो व्रत शक्ति सारू । कर्म रोगरी दारू । अब जोग मिल्या छै वारू रे ॥ ६० ॥ २० ।। इम विविध भांति समझाया । उत्तम जन मन भाया । मानु सुधा मेघ वरसायारे रं० ॥ २१ ॥ साधु श्रावक धर्म दोई। शिवपुर मार्ग होई । ज्यों ग्रह पापे सोहोरे ॥ रं० ॥ २२ ॥ दान शील तप भावो । अघ अकतूल उडावो | ज्युं अमरा पद पावोरे । रं० || २३ || सभा जन पन आणंदा । धन २ धर्म दिणंदा इस गुण बोले गुरां इंदारार ॥ ० ॥ २४ ॥ केइ लेबे चरता । केई द्वादश बरता । केई समकित सनुसरतारे । २० ।। २५ ।। इम लाभ उपार्जी भारी करी नमस्कार वंदणारे । गया निजघर नर नारीरे ॥। २० ।। २६ ।। ढाल सप्तमी भाषी ऋषिराज देशना दाखी । हुन कुंवर चरित्र अभिलाषीरे । रं० ॥ २७ ॥ दास्त 6 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोहा ॥ भाव अपूर्व सांभली जंबू वो खुस्याल । वलिहारी गुरुदेव की कीधो मोय निहाल ॥ १ ॥ इस दिन सूतो हुंतो हूं मोह निद्रा मोय । शिक्षा शब्द सजाय के शीघ्र दियो जगाव || २ || महां व्रत अनुपति । लं साम समीप | अब गुण डूबे जग जलधि | सद गुरु मिलिया दीप || ३ || अहो तुम देवाप्रिये, प्रतिबंध कराय । यथा सुख तुमने हुवे. सोही करी उपाय || ४ || आयो मुनि वेण सुण पद पंकज पण मंत । पाछा आवे शहर में किम बीते वितत ॥ ५ ॥ पृ. १७ जंबु गुणा रस माला ॥ ढाल अष्टमी । वीरमती ए बोर च्यारे ए देशी ॥ पादा भाता शहर में रे मझ नगर के द्वार | सुगड जिनसां भलों कोई कारण प्रियोग सूं रे । छूटी तोप तिवार | सु० ॥ १ ॥ कोट कांगरो फूट नेरे । तस भख पहिया और । सु० । बेहुं पगारे बीच मेरे बहीनो जंबू कुमार | सु० || २ || हा हा अनरथ होवतो रे कीधान व्रत पचखाण | सु० । मरण उपसर्ग ऊप नोरे । जाण रहु वो अमाण सु० || ३ || खाली हिव आगे जाय वोरे | सही रेन ही छे मोय । सु० | बारावरतपाछो चाल नरे । आदरूं से व्रती होय || सु० ॥४॥ इम चिंती तिहां चालियारे | बीतो व्रतंत सुणाय । सु० । दीन दयाल कृपाकरी मे । श्रावक व्रत कराय | सु०॥२॥ करुणा नाथ कृपा करी ने, व्रत करांचे सार । समगतनी आराधनारे । पहिलो व्रत विचार सु० | ॥ ६ ॥ जणी पीठी आकुटी नेरे । त्रस जीव हणून लीगार सु० । अपराधी मुझदेह नारे | पीडा कारी भागार । सु० डाल = Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबु शु रत्न झाला 2.15 || ७ || कन्या गउ भौमा दिकेरे । बोलु ने मृषावाद । सु० थापल राख नहूं नहीरे | करी दुजारी मर्याद। सु ॥ ८ ॥ हा युं न काहूं गांठंडीरे । ताला पड कुंची खोल । सु० । इत्यादि चोरी नहीं करूं । कूडा मापा तोल । सु० ॥ ९ ॥ मैथुन चोथो व्रत कह्योरे | पंचम परिग्रह जान | सु० उधं अधो तिछीं दिशतणारे । कह्यो अत्रसर देख प्रमाण ! सु० ॥ १० ॥ सप्तम छावीस बोल नीरे। करी मर्यादा जेह । सु० पनरा कर्मा दान कुंरे सर्वथा त्याग्या तेह | सु० ॥ ११ ॥ अथ दंडा विषरे । आतप ने नहीं रंच । सु० | नवमा समायिक करूंरे समता भावे संच ॥ सु० ॥ १२ ॥ चउदा नेम फुटकर बहुरे । दे शावगामी व्रत ॥ सु० । प्रति पूरण पोषो करूंरे । निर्दोषण देउं दत्त | ० || १३ ॥ यथा शक्ति हूं टालस्यूंरे || निशाणचे अतिचार | सु० जाव जीव • लग पालस्यूरै लीधा ज्यूं व्रत वार ॥ सु ॥ १४ ॥ सफल मनोरथ कर लियेोरे, विनो सांच पोतो गेह । सु० । यो मात पिता करे | हर्ष नयन अवलेह | सु० || १५ | आज जाया तूं दीसतोरे । हस्तव दन अणपार । सु० | धन्य पुन्याई ताहरीरे । भेट्या पंचम गणधार | सु० || १६ || चिन्तामण धर्म पामीयोरे । तिल संचित आनंद | सु० । उपसर्ग आज ही ऊपनोरे । दाख्यो सकळ संबंध | सु० ।। १७ । ए-सुण थर हर कंपतारे । हिवढे चांपे घर राग-1 मोटो उपद्रबटलगयोरे । गुरुजन केरे भाग | मु० ॥ १८ ॥ दीक्षा लेवण मन ऊपन्यो मेरे आज्ञा दीजे मोय । सु० वज्र पात सम लागीयोरे || धरणी ढलीया सोय । सु १९ ॥ सात्र चेत क्षण अंतरे - रे । दुबा शतिल उपचार । सु० रेषछ इसडी न कीजियेरे ॥ अमने करण आधार | सु० ॥ २० ॥ संजम नहीं ढाल म Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण रख छै सोहि लारे ॥ खड्ग धारारी चाल । सु० ॥ बाबीसपरिषह आकरारे । किम सहस्यो सुखमाल ॥ सु० ॥२१ दोहेला जिणने जाणी येरे । जाण्यो नरक निगोद । सु । हूं शिव सुखरो लोभीयोरे । माहरे एह प्रमोद । सी०॥ २२ ॥ आम्ममण अपछर जसीरे, मांगी छै तुझ काज । सु० । अध परणी तजतां थकारे । तोहे न आवे लाज ॥ सु० ॥ २३ ॥ मांग मूकता आपणारे । होसे जगत हंसाय । सु । मार्ग ऐसो लीजियेरे बेहुं लोक सुदराय । सु० ॥२४ ॥ पहिली परणो पदमणीरे । पाछे अवर विचार | सु० । अण बोल्या कंवर रहारे । हरिष्या सहुं परिवार । सु० ॥२५॥ सेवक जन बोलाय केरे । म्हेल्यासमध्यां पास । सु० । व्याह मंडावो वेग सुंरे । दाख्यों सकल प्रयास । सु० २६ अष्टमी दाल मनो हरूंरे । उत्सव व्याह उमंग 1 सु० किण विध परणे सुंदरीरे । ते सुण जो मन रंग । सु० ॥ २७॥ ॥ दाहा।। आज्ञाकारी सुण हुकम, चाल्या तिहां सताबाच्याही व्याह रचाइये, दीजे जल्दी जवाब ॥१॥ अंतर दिव शरु जामनी किम मानी जे वात । भोग भोगवा व्याहीये । वैरागी जामात ॥ २॥ ग्रहे वास में रहण की, करे कबूल कुमार । तो तुरंत व्याहे द्यां सुता नहीं तो अवर विचार ॥ ३ ॥ जाण कूप में कुण पडे, थेईज सोचो मन्न । सर्व अलुगुं पति विना वृथा धन जोबन्न ॥ ४ ॥ ॥ढाल नवमी मुख से बोली देख जसोदा काहा कहं तोसे नंदरानी। एदेसी ॥ लावणी। कीभेद लही ने मन में सोची। निज २. गृहे आटू तरुणी । मात पिता सुं इण पर बोले । हम अस्त्री जंबू वरनी | Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंषु गुण रख माला प.२० अवर पुरुष सब तात भात । सम इसी सलाह कबहू न करनी । हमरे एक उनकी चाहा । ज्युं चात्र करे जल धरनी । इकतारी पुत्र्यांनी देखी । मानी वात समधि नरनी । इनके मन जो याही भाई । तो परवा नहीं इस मरनी । वात कबूल हुई कन्या की । सुण बोली अमृत झरनी । आश्चर्य कथा रसाल थकी तुम । श्रोता श्रोतेन्द्री भरनी ॥१॥ थई बधाई नउं घर में सरू हुवा मंगल चारा । ढोल नगारा वाज्या झंगल । सरनाई बाजे द्वारा । बनडो बनड्यां बाने बैठे उवटण मंजन शृंगारा । स्त्री मुहागण सोह लगावे । कोकिल पकिया सहकारा। धन माल खर्चे बहुतेरा मेघ परे वर्षे धारा कुटुम्ब कबीला न्याती मंत्री। बोलाव्या व्यासा। मोहनी मूरत निरखी हथे। कंवरयां अरवले कँवरनी। प्रा०॥२॥ काना कुंडल नं कनक बेसर । चूडा मण चीरे चलके। नोसर सत सर तीन सरादिक । मुक्ता हार हिये हलके। कंचन बर्ण करार माही । रत्र जड़ित चूडच्यां खलके । वाजू बंध बोरखा कंकण । कटि में काटि में खल झलके। पग नूपर माण में चोराशी । साट पोलरी कडा रल के । इत्यादिक भूषण बहु पहरयां । गति छवि दामन झलके, काहांलू रुप बखानू मानू सोभे गण गोरा हरनी॥ आ॥शा कल्प तरु ज्युं सांभे दुलहा करी पोसाका केसारयां। केसरीयांही | जानी सनिया । जान चढी शहरां दरिया । गेंद अश्व रथ पालखी जिश । मंगल तूर हरप भरिया । उडु गण बीच तारापति ओये । ज्यु जंबू जी संचरिया तोरण काज करी चंवरी विच । दुलहन स फरा-कारया। नब २ क्रोड सो नैया दीधा । सुसरा कर मोचन विरिया। क्रोट अष्ट दश तात आपिया। नव क्रोड गोशाला ढाल Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबु गुण रक्ष माला पृ०२१ धरनी ॥ ० ॥ ४ ॥ व्याव करीने भाव चारितीया । चढिया मंदिर संग धरणी । वैठ पर्थक मन में चित्तं । ए मुझ आतम सुख हरनी । आहूं ही पद्मण अर्ज करे यूं । हाथ जोड चंपक वरणी । योगीश्वर ज्युं ध्यान मावा । तो तुम हमकुं क्युं परणी । प्रीतम पाछो जवाब न आये । घण ऊभी आगल धरणी । हुकम दियां विन क्युं करवेशां, सलाह करे अब क्या करणी । प्रीउजी मुखडे नहीं बोलतो । अनुकूल गत आदरनी । आ० ।। ५ ।। नृत्य करावे लंक लचावे । लुल २ जावे रंगराती । घूघर घमकावे अंग दिखावे । नेन भ्रमावे मृदु गाती । वा जंत्र वजावे ताल लगावे । धन दरसावे मुसकाती । भृकुटी चढावे भाव बतावे । मन ललचावे राती । मदन दीपावे देह धुजावे । प्रेम रचावे मोहमाती । विन बतलावे कोप जणावे । धडकावे हमरी छाती | चूक विन तजस्यो मोरे मीतम । हंससे दुनियां नगरनी || आ० ॥ ६ ॥ भौंह कमान बात नेनुदे तकि बाहे भालम सामे । ज्ञान खड्ग से अध विच छेदे । जोरन कुछ चलता तामे । चित्र लेख ज्युं आप उभये हो । बात कहा हिरदा में भूल चूक ज्यो हम मे होवे । कहि बतलाको चवडा में । विन बोल्वां सरसे नहीं कंता । समझ लीजिये इतना में। नवमी ढाल पति से प्रमदा । कुमियन राखी कहवा मे । निश्चल मन जम्बू का । जैसे । चूल का कंचन गिरी वरनी ॥ ० ॥ ७ ॥ 1 ॥ दोहा ॥ तिण वेला पल्ली पती प्रभवो तेहनो नाम । सात व्यसन रो साहिवो करें चोरनो काम ॥ १ ॥ रायनोडो करो । कुलं छनपर ताप । इाडे चालण लग्यो । करतो जाडा पाप ||५|| तस्क रपांचसे ढाल ह Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पू०२२ जंबु लारले थाहा पाडे जोर । जोर तण वशना वही विया बोलियो चोर ॥ ३ ॥ वात विस्त्री शहर में सेठ ऋषभ गुण दत्त गेह । क्रोड़ निनाणू सोनिया एह पिण मुणियो तेह ॥ ४॥ धन लेवण इच्छाकारी । आपस में संकेत। रख भलन करम दसे छकी अाव्या चोरी हेत ॥ ५ ॥ माक्षा __ढाल दशमी राघव आवियो हो । सुभट सघला शूर । ए देशी ॥ प्रभवो आवियो हो होयने हुशियार | कृतांत सागे दीस तोरे केंहें म रूं मार । म० ॥१॥ विविध शस्त्रर विविधवक्तर । विविध टोप सुचंग । विविध जोरा विविध तोरा । विविध तस्कर संग । प्र० ॥२॥ पूर्व रजनी शहर वाहिर । रह्या तेपर छन । अर्ध राते चालियाते सर्व रो इक मन्न ॥ ॥ ३ ॥ कपाट ताला लागियातिण । देखिया पुर द्वार । मंत्र वारी छांट तांही । खुल पड्या तिहवार । प्र० ॥४॥ अवस्था पनि विद्या पढतां सकल जन सोबत। निडर कूदत जाय चलिया कोई नहीं रोकत । प्र. ॥ ५ ॥ हाथ भाला चक्र वरछी खड्ग विज्जल सार । कटार कमठागदातेगा। झल हले झपकार । प्र॥६॥ फास फरसी कस कुदाला | माथ पाटागोह । देखना तस गात कंपे । नेत्र भरिया छोह । प्र७॥७॥ बाजार विचे होय आया। कियो तिम ही तंत्र । निद्रा आई ज, वरजी । तुरत खलिया जंत्र । प्र०॥ ८॥ मांहि पेठा देख चिहुदिस । सो नियना दंग । गांठ बांध ॥ धरि मस्तक । आण मन उमंग ॥ प्र०॥ ॥ कंवर मन में देख चितें । नही माहरे चाह । पिण लोग कहस्ये ढाल Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबु गुण रन माला पृ.२३ निकस्यो । लग्या धनरे। दाह । प्र० ॥ १० ॥ एम से ची समरी योते । मंत्र श्री नवकार । माल जुत सब चोर हुवा रूप तिवार | प्र० १९ ॥ चोर पति कहे चलो भाई । निशावीती जाय । केम चाला चिप गयाए । धरण सुं हम पाय ॥ प्र० १२ ॥ यह आश्चर्य देख धूज्यो । पामियो अति त्रास उर्द्ध जोना महल दीठो । काम कांता पास । १३ नष्ट शक्ति थेई मेरी चल्यो नही मुझ जोर। पुण्य पुजए पुरुष विद्य । रहन अही जिहां मोर । प्र० । १४ ।। सोपान चढ सांगे तटतीहां जाय ऊभो बार हस्त जोडी बरी लटको । कहत एह विचार । प्र० ।। १५ ।। दोय वो एक देवो मंत्र मोटो एह । आजथी है करूं नाहीं तस्करी तुम गेह ॥ प्र० ॥ १६ ॥ अरे प्रभवा जादू टोणा । सर्व री दुख हेतु । विषय पडित हुवो आंधी । नाही तुझने चेत प्र० ॥ १७ ॥ मंत्र राज कोई न इण सम । परमेष्टी नवकार । हरे दलदर अनंत भवरा । अटल मुख दातार ।। प्र० १८ ॥ प्रात गुरु देव चरणरी शरण ग्रहस्यूं । थाय सुं अणगार ॥ प्र० १९ ॥ वा साहबी एह पर हरण की केम पूरव कह वाय ॥ प्र० ॥ २० ॥ प्रत्यसर्व सुख ही मिल्या पूरण फल्या पुन्य अंकूर ॥ प्र० २१ ॥ एह भुकां थोडो घणो समझी । कर कवूल घर रहण || प्र० २२ ।। कनें रह स्युं सेव कर स्युं । डरा जिन सो पुत्र । ढाल दशमी कही हिवड़ा कंबर देवे उन । प्र० ॥ २३ ॥ | एह ऋद्ध त्याग स्युं । छांड स्युं परवार क्य राह श्रवण मुरगकर घर मन भाय क्षरं भाखडी रमडी | लक्ष्मी भर पूर । प्रभुजी तुम मत तज़ो हम कहरण । ढाल १० Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जब दोहा-रे विपही विषिया गृधी, विषिया दे उपदेश । पिण विषया विष से बुरा भव २ मरण लहेश ॥१॥ कर्दमक लीयो थको रह्यो अज्ञान अछाद । क्रांत किसी दिन यरतणी । उल्लडूं नहिं याद ॥२॥ डाभ रख | अणी जल विंदवो एता हूं सुख नाहिं । दधि अगाध जग दुख भरयो। परमन एह लहाहि ॥३॥ सेत विंदुरो माला लोलपी कूद पड़यो गहि रूढ । मान्यो नहिं खेचर बचन इसो नहीं हूं मूढ ॥४॥ किम सीमा मधु विंदवो पृ.२४ किम मूवो पड कूप । किम कहणी मानी नहीं भाषो सयल सरूप ॥५॥ ढालग्यारवी ॥देव वनिता एमपं भाणो वस्त्र संप सनररे।। ए देशी॥ कंवर जंबू कहे प्रभवा । सांभलो मुझ हेतरे।अर्थ एह नो भाव समझी। थाय जो सावचेतरे । कं०। ॥१॥ मगर मोटो हुँतो तिहा, वसे सारथ वाहरे । विणज अर्थ गमन करवा, हुवो तयार इक साहरे । कं० । ॥ २ ॥ घोसणा करी सहर माहे | चालीए पर दीपरे । साथ थावो करूं रक्षा जेम मुक्ता सीपरे । कं०।॥ ३ ॥ साथ संगले भले मुहुरत । किया ता परे। ग्रायने अनग्राम हींडत । पुरुष एक अयाणरे । कं०॥४॥ पडाव कीधो अरण वीचे । करण सिरावण भोगे प्रसाद ने वस जाय सूतो । तेह अल्हादे ठौर रे । ६०॥५॥ षट कर्म से नीव्रत थाई । करयो कच । सब साथरे । ते तिहाई निद्रा माहिं । आधम्यो दिवे नाथरे । कं०। ॥ ६ ॥ नींद भागी व्हीनो जागी । भयंकार देखायर । पवन चाले पत्र हाले । तिमर चिहुं दिस छायरे । कं०। ॥ ७ ॥ फिरत स्वापद पड पड पद Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयु गुण रख माला पृ. २५ रमत करता रोलरे । रुप एहवो देख धूज्यो मुख न निकसे बोलरे ॥ कं० ८ ॥ हाय हाय मुझ साथ छूटो । करूं कियूँ हिव कामरे । रोवत पीटत रात बीती फज़र हुवो ताम रे ।। कं० ६ ॥ महर मनाही मार्ग सेती । फिरत इत उत जहरे | काल रूप विक्राल आवत हस्ती देख्यो तेहरे ॥ कं० १० ।। अतही त्रास्यो जाय नास्यो छिपण कुं नहिं जागरे कूप माहे डाक पड़ियो फूल्यो साखा लागरे ॥ ॐ० ११ ॥ हल्यो बट मूहाल उ डियो देत डंक शरीर रे । डाहल करडे ऊंदरावे । चार अजगर नीररे ॥ कं० १२ ॥ बेस जाने भिया नभचर किहांडी तव जातरे । कूप मानव देख दुखियो । कं सुं बतलातरे || कं० १३ ।। पति एहनो मेट संकट वि वद्याधर मुग्ध एवै । मानशी न लिगाररे ।। कं ० १४ ॥ एता दुख में सुख कि छै । रहसी तासुं लुभायंर । त्रिया प्रेरयो हेठे द्यावी । वोलतो इम वायर । कं० १५ ।। आव भाई मेरे केडे पोवा हुं निज गेहरे | सेत बिंदु सुखे महारे । जावायो एहरे || कं० १६ ।। खड़यो खेचर पड़यो टपको । मान मुझ अब वायरे । आवे दूजो एह देखो जिव्हा बस ललचायरे ।। कं० १७ ।। समझास कीधी बहु भांते नहीं मानी एकरे | हुई आखतो गयो पाछो । तजी नहीं ते टेकरे ।। कं० १८ ॥ द्रव्य इम अव भाव समजो । संसार है कंताररे । सार्थवाह जिनराज जानो । साथ तीरथ चाररे || कं० १६ ॥ जवि मूरख बसे निगोदे । छूटियो जिन संगरे । मोह निद्रा तभी मिथ्या । कर्म वनचर ढंगरे || कं० २० ॥ भ्रमी: भव में लह्यो नर भव । राहा न शिव को जानरे । काल करी से त्रास पडीयो । कुगुरू कूप पिछ नरे ॥ कं २१ ॥ चार अहिगत कुटुम्ब माख । ढाल ११ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रल जंबु | काज चटका जोइरे । आयु साखा मूसा काटे । शुक्र कृष्ण पक्ष दोइरे । कं । ॥ २२ ॥ काम भाग हे सतं गुण | बिन्दू । मूराछियो गिंवाररे । "सुर्धम स्वामी व्योमगामी । थाय सूं हूं लारे ॥ कं २३ ॥ विमान धर्म रे | बैठ सुं मैं । रुचि इणारी कहणरे । पौंच सुं निज गृहे मुक्ति । तिहं अविचल रहणरे ॥ कं २४ ॥ एह दृष्टात माला चतुर समझे। अल्प कर्मी होयरे । ममें मूर्ख नाहिं पावे। वृथा नर भव खोयरे ॥ कं २५ ॥ रंजियो मन प्रभोमणि के । कथा अचरच काजरे। धन्य प्रज्ञा एहनी कहीए । प्रत्यक्षए अवताररे ॥ कं २६ ॥ ढाल ग्यारमी कही इण पर उत्तम जन अहनाणरे एक उन हिये नहीं जानी सबही चेतो सुजाणरे कं ।। २७॥ दोहा-नाणी जोड़ प्रभवो कहे गिरवा बुद्धि निधान । सजन सम्बन्धी मंत्रवी । तजिये नांहिं निधा न ॥१॥ न्याती गोती बहुतते । प्रेमातुर तुझ साथ । निस दिन मुख जोता रहे । ते किम छांडो नाथ ॥२॥ जीव अनंता जगत में । न्याती सबही जान । किण २ सू लवधो रहुं । प्रीत करे हेरान ॥ ३ ॥ अष्टादश एकही भवे । नाता कीधा तेह । नगर नायकारी कथा । सांभल जेम स्नेह ॥ ४ ॥ करुणा निधि कृपा करी भाषो एह विरतंत । प्रभवो अर्जी इम करे । सुण स्युं धर मन खंत ॥ ५ ॥ ढाल बारमी-चतुर नर चेतज्यो नीको नर भव पायोरे ॥ ए देशी ॥ मथुरा नगरी सुहामणीरे । वरनन करवा जोग । धनवंता बहु लाव सेरे । भोगी भंवरा लोग । पल्ली पति चेतज्यो । लख जगतरी रच दरल Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबु । नारे ॥ आंकड़ी ॥ १॥ वेशाना पाडा विषेरे । कुमेन्सेना नाम । काम दिपावण कंचनीरे । रूप कला अभिराम ॥ प० २ ॥ हाव भाव भ्रिम करीरे। धन योवन ले लूट । कामी मनुष्य पतंगीयारे । रप सिखा ॥ ३॥ विषय विकार प्रयोग सुरे। जनम्या बालक दोय । पुत्र कुमेरदत पुत्रिकारे । कुमरदत्ता माला| हाय ।। प० ४ ॥ भोग पालणा नवी बणेरे । हुई पारखती जाम । पेई सुवाण वुहावियोरे । जमुना जल में ताम ॥ ५० ५॥ मंजूस बहती आवतीरे । सोरी पुररे घाट । द्वे विवहारी देखनेरे । कूद पड़या मध्य पाट पृ.२७, ॥५० ६ ॥ काढ पेटी बतलावियारे । लेस्यां अर्धो अर्घ । खोल कपाट निहालतां। मिट गयो अंतर दर्द ॥५० ७॥ कन्या चाही कन्यकारे । पुत्र चाही लियो पूत । आनंदी त्यांची चल्यारे । निज मकान पहंत ॥ ५० ८ ॥ अपणी २ स्त्री नेरे। न्यावी खूपया बाल । जन्मोत्सव हरषी करेरे । जाया ज्यूं प्रतिपाल ॥ १० ॥ तरुण तनवय व्यापतारे। तेहीज दिया परणाय माता भगिनी भोगवेरे । जाकी खबरन काय ॥५॥१०॥ घोख बैठा एकदारे । रमता पाशा सार । नामां कृत की मूनडी रे। निजर पडी तिणवार ।। प० ११ ॥ सहोदरसा दीशतारे । नाम सरीसा जेम । जनिता जनक ने पूछियोरे। भाषो जिम छै तेम ॥१० १२॥ मर्म लहीने कंपियारे । लाज्जित बेहूं होय । दोऊ लोक विगोवियारे । बिपया ना फल जोय ॥ ए० १३ ॥ | मुख दिखलाऊं किरप विधरे । लोक हंसे इण प्राम। कुमर दत्त इम चितवीरे। मथुरा पोतो ताम ।। १० ॥ १४ ॥ कुमेर दत्ता तव कंपतीरे । गेरत ल्यावे अपार । कियो अकारज मोटकोरे । किम होसी निस्तार ढाल Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । गुण रत माला पृ.२८ ॥५० १५ ॥ तिम अवसर पधारियारे । ज्ञानवंत झुनिराज । प्रसन करे तिहां अाय केरे। किम विगड्ये मुज काज ॥१० १६ ॥ संत कहे देवाणु पियेरे। अशुभ कर्म प्रयोग । निंदणीक कामो बणेरे । करवो हर्ष न सोग ॥१० १७॥ केम कुमाया पाप मैंरे । कृपा करी कहो नाथ । धणी धणियाणी थे ग्रह्योरे। शील व्रत बेहूं साथ ॥ ५० १८॥ कामा तुरपा डोस णीरे । कामर चायो तोय । त्याग भंजाया पापणीरे । पूर्व भव इम जोय ॥ प०१६॥ प्यारी बाहेली ताहरीरे । मरि कर गणिका थ य । तसु कूखे तूं ऊपनीर । ई घाल बूहाय ॥ प० २० ॥ कर्म चरी सुण थर हरी रे । रोमाञ्चि थई काय । हूरे अधन्य अभागणी रे। रोवे नैण भराय ॥ ५० २१॥ दे विश्वास ऋपी सरूरे । एहै अनादी रीत । सुण दृष्टांत आगे हुवारे । तातरू तनुजा फजीत ॥प० २२ ॥ गर्भवती स्त्री छोड नेरे । कंथ गयो परदेश । प्रसवी पाछे पुत्रि कारे । रूपवती सुविशेष ॥प० २३ ॥ यौवन वंत कुमारि कारे। जाणी पत्र लिखाय । वरजोगी वाई थइरे। परणावो इहां आय ॥ ५० २४ ॥ प्रति उत्तर तद लिख दियारे । हमने पुरसत नाय । आपां तुल्य घर देख नेरे । दीज्यो थे परणाय । प० २५ ॥ अाछो सगारथ देख नेरे । कियो अनेरे ग्राम । सावो सुझाई तुर्त हीरे । फेकर दिया ताम ॥ ५० २६ ॥ शक्ति सारूं दे डायनो रे । विदा कियो जापात । घरणी ले घर आवि यारे । अागल अचरज वात ॥ प०२७॥ पिता प्रदेश सं चालियोरे । कामसु निव्रत थाय । तिमही नगर में उतरचोरे । सगपण खबर न पाय ॥ प० २८ ॥ समधी मकान रे पाखतीरे. । हुती एक सराय । २ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माला रात विश्रामो त्यां लह्योरे । सूतो छत पे जाय । प० ॥ २९ ॥ अर्द्ध निशारे अवसरेरे । दिवलो लेई हाथ ।। लघु करण सुता न सरी रे । देखी घाली बाथ ॥ ५० ३० ॥ हार गलारो पापीद्योरे। तो हूं बां तोय । काम अंध खोली दियोरे । भ्रष्ट हुवा ते दोय ।। प० ३१ ॥ प्रात हुवांथी संचरीरे । निजपुर आयो साह । सयण संबंधी भार्यारे । मिलियां ऊपनो उच्छाह ॥ प० ३२ ॥ तुरत तेडी अंग जारे। आवी सताची चाल । बाप बेटी मिलिया तदा । गल में बैया घाल ॥ ५० ३३ ॥ बैठा आपस में जोवतारे हार पे निजर पडाय । संभारी पूर्व वारतारें । मनमें घशा पछताय ॥प० ३४ ॥ लेई फांसी पुत्री मरीरे । बाप विगोनो जमार । पहिली कुसील ज्यो त्यागतारे । क्चुं होता ते खबार ॥ प०३५ ॥ एह स्वरूप संसार नोरे। बाई कुवेरा निहाल । संतोपाणी थिर थईरे । द्वादशमी ए ढाल ॥ ५० ३६ ॥ ॥दोहा ॥ करम चरी सुण चिनवे धृग पड्या संसार । करणी कर हिव ऊतरू जगते जलधि के पार ॥ १॥ उत्तम सतीयां पाखती । लीनो संजम भार । दुष्कर तप प्रारंभियो । पातक जार नहार ॥२॥ क्षण २ निंद आतमा, ध्यावे उज्जल ध्यान । अशुभ कर्म झाटिक लह्यो । निरमल अवधिजु ज्ञान ॥ ३ ॥ ढाल भ्रात मात सुंदेखियो काम भोग विलसात । बिमष बाट विपिया तणी। धन जे जन लंघात ॥४। ल्याऊ एहने दाऊं निज रूप । गुरुणी से अनुमति लही त्यां आई धर चूंप ॥ ५॥ ॥ ढाल तेरमी । नवल चंदनी होके साजन | ए देशी ।। मथुरा अावी साधवी होके चतुरा वेश्या Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ! पाडा मांय । कुटुम्बनी सूं वत लावती होकै चतुरा। रहवाने ठाम बताय ॥ १ ॥ सुगणा मानी होके । अज्जा | केरी जोवो किरत । अांकडी। आपे उत्तर कुटम्बनी होके ॥ १० ॥ हम तुम भिन्न प्राचार। पूर्व पश्चिम पंथ रन ज्यू होके । च० । यांथी वेग सिधार । सु० ॥ २ ॥ सांची तुम निरवारता होके । च० । कोइक कारणं प्रयोग माला आई जगा जांचवा होके । च० । करस्यूं तोय निरोग । मु० ॥३॥ हुलराव मुझ न्हानडो होके चतुरा । तोतु । सुख रहाय अवसर पे जाणी जसी होके । च। माना जाणी वाय । सु० ॥ ४ ॥ चित्रशाला रे पाखती होके चतुरा । कोटडी एक' बताय । रही साहुणी कारण सु होके । च० । अातो देख्यो भाय । सु०॥ ५ ॥ पेठो मंदिर माहने होके चतुरा । दोसत लेइ घुलाय । तिण बेलाते बालुडी होके च०। रोवण राग लगाय। सु० ॥ ६॥ हा कोई कहे प्रार्जका होके । च । रखो कानही बाल । गुझ हालरो देवती होके । च० । सा वोली तत्काल । सु०॥७॥ वंधव तूं रोवे मती होके । च । तुम हम एकही मात । देवरीयां तुं माहरा हाके । च० ।कंथनो छोटो भात । सु०॥८॥ नंदन एक हिसाब थी होके । च०। सोक तुम्हारी माय । भुवा भतीजा ताहरो होके । च० । तात हमारो भाय । सु०॥ ॥ हुँदादी तूं पोतरो होके | च० म्हारा पूत को नंद। ढाल तूं काको हुँ भतीज हूं एक । च० । तात लघु आनंद ॥ सु०॥ १० ॥ दोहा-श्रवण करी सोढमे चमक्यो चित्त मझार । बाहेर आवी यों कहे इम किम बके गंवार ॥१॥ सहोदरु सुसताव तूं समझर बोलो भित । षट नासा तोसे लगे सुणो एकाग्रचित्त ॥२॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण व भाई बहन आपण छो होके । च० । एक कूख अवतार । जनक हमारा जाणीये होके । च० । मात पती || अवधार ।। सु० ११ ॥ सोरी पुर परणाविया होके । च । अहो व्हाला भरतार | च०। शोक उदर उत्पन्न भयो होके च पुत्र तूंएह विचार । सु०१५। बाबाबाजी एकण नते होक। च काकाजीरा बाप । सासुजी माला | रा साहवा होके । च० सुसराजी छो आप । सु० १३.॥ दोहा-भगतण भडकी रे कुटिल किसुं करे पाखंड । यहां मत र हजापरी नीतर करस्युं भंड ॥१॥ करे ससुर का जगत में एकही तणी अनेक । छनाती ग्रह आवतां। कठुक वदे अविवेक ॥ २ ॥ माताजी त्रटको मती हेक च० जन्मरी देवण हार । भावज हूं नणदल अछू हेक । च० । मुझ बंधु की नार ॥ १४ ॥ दादी एकण राहसं हेक । च० । वप्रानी तूं माय । सासुजी बहु ताहरे हेक । च० । खाविंद मात कहवाय ॥ १५ ॥ बंध हमारी लाजीए हेक । च० पुत्र प्रिया प्रत्यक्ष । सोकडली एक नाहलो हेक । च०। दोन्यानो इक लक्ष ॥१६॥ दोहा- कहया अठारा नातरा एक हमारे संग । अधिक विगो विकलता उदय मोहने ढंग ॥१॥ वी घर देजो धरण हमतो पहिठा हीव माही। मुख दिखलावण जोग जग रहथा रंच नाही ॥२॥ गरज नहीं घबराइयां होके। चआरत कर निवार । थिर थापी परिणामने होके। च०। आसम कारज हाल Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबु गुण रख माला पृ०३२ सार ॥ सु० १७ ॥ करम ए विविध मचावता हेक । च० । न ट किया ज़िम नाच । प्रति बोध्या संजम लियो हेक । च० । श्री जिण धर्म में राच ॥ सु० १८ ॥ एकही भव एक जीव सुं हेक । प्रभवा । इस विश्व नाता अठार । मुतलब सब भूरणा हेक ॥ प्र० || स्वार्थी यो संसार ॥। १६ ।। सुगणा मानवी होक जंबू केगे जोवो रे विज्ञान || आकडी ॥ मात पिता सुत बंधवा हेक । प्र० । बहिन भाणेजा जोय । हुवे असाता जब उदे रेक | ० | रोकर द्रा होय ।। सु० २० ।। काली सिंचाणो झपटतो रेक । प्र । जीव चिडाने आय | धरी रहे सब साहबी रेक । प्र० । आडो कोयन थाय ॥ सु० २१ ॥ धन जोवन, ठकुराइयां रेक ॥ प्र० ॥ जेह वो रंग पतंग बिगड़त वारन लागडी रेक || प्र० || होत छिनक में भंग ।। सु० २२ ॥ त्रयोदशमी ए ढाल में रेक । प्र० । चमत्कार प्रस्ताव । प्रभवो सुण रंजित थयो रेक ॥ च० ॥ फिर बोले चित चाव ॥ सु० २३ ॥ ॥ दोहा ॥ कही अपूर वारता, अहो ज्ञान भंडार | कहां लगे गुण वर्णनन करूं मनुष रूप अवतार ॥ १ ॥ तन, धन, जोवन. कारमो । इण में संदेह नीहि । जिम भाष्यो तिम हीज छै रुचि हृदारे माय ॥ २ ॥ अर्ज एक पिमाहरी सुत बिन सुगत न होय । वेद बरका इस परे । ए संसय छै मांय ॥ ३ ॥ भंवर एक जन्मया पछै । लीजो संजय भार । मान बचन प्रभु माहिरा । हूं पिण यासूं लार ॥ ४ ॥ ॥ ढाल चवदमी ॥ राजे सर ह्यो मानी यये । एदेशी ॥ जंबु कहे ए डी बातां गुरू केरा डाल ૧૪ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..|| भर्म । कोइन मारे कोइन तारे भुक्ते बांध्या कर्म ॥ १॥ मिथ्या मत छोडे क्युंन अयाण ।आंकडी । कुग्रंथारो । भोलवियोरे । जाण पितारी भक्त । सज्जन मास्ये पुरजन ठास्यो मिथ्या मोह निरक्त ॥ मि. २ । केम वृतांच एहवीता सामी । भाषोजि मछतेम । कहं कथा ए सांची प्रभवा-। सांभलजे धर प्रेम ॥ मि०३॥ जंबू द्वीपवी माला जेपुर माहे । व्यावहारी वसे एक । मही सर ते नो नाम कहावे । सरल स्वभावी विशेक ॥ मि०॥ ४॥बापते पृ.३३ हनो दुर्गति गामी । डोसो मरती वार । इमबेटा नेशिक्षा दिवी । कीजे एह प्रकार ॥ मि . ५ ॥ करे सराध दागरे दिवसे । गाढी लेजेधार । एक मैपरी घात करीने । जीम्हा जे परवार । मि० ॥ ६ ॥इसो अकारज केम करीज । सोचे मन धरधीर । मुझ कहणीज्यो नही करसे । तो थासे द्रावणगीर ॥मि०७॥जिम कहिस्यो हंति मही जकरस्यु । राखो चित्त समाध । काल के अवसर काल करीने । भैसारी गत लाध ॥ मि०८॥माता मर स्वाननी निजही घर रेपास । धन गिर धीरी एगत थावे । पुदगलमोटी फांस | मि.ह॥ महीसरदत्तरी कुटिला सत्री। चाकर साथ लुभाय । कामभोग सेवतां देखी। लंपट सीस छेदाय ॥ मि०१०॥ मरती विरिया असो चिंत्यो कीधा राफल लीध । तिणकर तिणारे उदर ऊपनो । पुत्र थयो पर सिद्ध ॥ मि० ११ ॥ विनय करीने भामिनी भाषे । अब न करूं ये काम तुम प्रीतम अल वेशर गिरवा । राखी माहरी माम ॥ मि० १२॥ कालं तर दिन आयो कनागत । तात कथन करी याद । तेहीपाडो मोल खरीदी। मार कियो अपराध ।। मि १३॥ चारू आहार निपानी नोत्या । स्वाता दिक बहू लोग । तब कुतरी मुह दे वण दोडी । आक्षे कारा जोग Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंतु रत्र मि०१४ ॥ कूट वाधरी कीथी तेहने । काढी चोका बार। लाड लडोव गोदी लेई । सो तिरियारो यार ॥ गुण मि० १५॥ भाग्य जोग मुनिराज पधास्या। जिणही पाडा मझार भैसा सरदत पाये लागो । धामे चहु विध आहार ॥ मि ० १६ ॥ अहो अकजं २ मुखसे राम वदंत । किसी प्रकारज इहां दीठो । फुरमा वे। भंग वंत माला ॥ मि० १७ ॥ बाप मार भोजन निपजाव्यो। मा काढी दुद कार। रिपुजी बरा करे चोचला । माठो तुम आचार ॥मि ०१८॥ऋषे ऋषीश्वर लिंक चवता । हम लाधो भेद । असतन वाला किमए सांची । संसय दीजे छेद ॥मि० १६॥ हिंसामत रोस्यो पापी। दियः तुझ उपदेश जनक तिहारो झोढे वेढो। सोफल एह लहेश ॥मि०२२॥ अम्बा सुनी तुम प्रमदारे । व्यभिचारी एवाल । किम पतियाजे चिहुंवतावो । जीवन पद् प्रतिपाल ॥ मि० ॥ २१ ॥ निधान वतासी एही कुत्ती। सें दोल खविरतंत । पूर्व जाति सुमरण हुई । चाली लारतुरंत ॥ मि० २२ ॥ दिना रारी चरीगाठीथी । पग मुंखो दवताय । गुझरू आगम बात मिलता । महीसर अचरजयाय । मि०२३॥ प्रति बोधाणो मुनिपदवंद्या । आदरीया व्रतजह । कूतरी अणसण कर सुभजोग । पामी सद्गत तेह मि०॥२४॥ तारक तारे भाव उधारे। इम विध प्रभवा जाण कगुरु डुबोवे भव २ रोवे । पामे नहीं निर्वाण मि० ॥ २५ ॥ एक मूर्ख घर आंव लगाई । पोतो गंगा जाय । माहिं बैठो उदक उछाले । लोगां पूछयो आय ॥ मि०२६।। माहरे घर पोलाऊं वाग । आयो रोप सहकार । इम किम पहुंचे जोग पयंपे । रेग् मूर्ख गंवार ॥ मि० २७ ॥ एम बडेरा ने नाहिं पूगे । पाछल कीधा कर्म । सुकृत दुकृत निज कृत भोगे । अवर छै झूटा भर्म ॥ मि० २८ | ढाल Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माला .|| धनरा लोभी भाचारी। सावध राचिया ग्रंथ। इंद्रिया वस विषयारा तिरस्या। चले चलावे कुपंथ ॥ भि०२६॥ । गुण || मृग लो डरतो खत साटिका । पडतो पासमें आय । अन्य तीथांग सू बहकाया सुगूरु समीपेन जाय ॥ मि० ३० ॥ ढाल चतृदशमी जंबूजी मोह अंधर मिटाय । ज्ञान भानु उदयांथी प्रभवो । शीश धरयो बिच पाय ॥ मि० ॥दोहा ॥ ते मेव जिर संकियं । तुम मुख हंदा वाय । श्रद्धा अरू प्रती तिया । रुच्या हृदेरे माय । पृ.३२ ॥ १ ॥ हीनाचारी कुटिल हूं । हूंतो लोहनो दाम । तुझ पारस प्रसंग थी। मुवर्ण थासुं साम ॥ २ ॥ बलि हारी उपगारिया। भली विचारनाथ । जिम सुख ऊपजे तिम करो। हूं पिण थांरी साथ ॥३॥ नींव गई खुलिया चरण सावधान सहाय । किम बोले हिव पदमणी । सुणे प्रमाद मुकाय ॥४॥ समुद्र सिरी नारी प्रथम । बोले बटकी बैन । रेत सकर किसु उपादसे । पर छ ती दुख दैन ॥ ५ ॥ काढ पराया कालजा । पोषे निज परिवार । शिर जोरदुं निश दिन रहे । तूं ले पंचाचार ॥६॥ बाईजी नहि खीजिये । मिटत न लिखिया लेख । किम राखो छो नाहलो । म्हे पिण लेसां देख ॥ ७॥ कर मुझरोआगल खडी। पीऊ भणी बतलाय । ए संपत ए साहवीं । तुमसे छांडी जाय ॥ ८॥ गोद.पूत कू छांड के । करत पेटनी आस । बग कर शाघर लोभ थी। हुई हाण अरु हास.॥६॥ ॥ढाल पनरमी ।। प्रेमलावरणी । ए देशी ॥ जंबू द्वीप मरु स्थल देशे । सुवरी नामा ग्रामे । बग नामा करसण तिहां वसतो करे खेतीरो काम | स्वामी सुण जे पुन्य क्षेत्रफल लुणजे ॥ स्वा० ॥ आंकडी॥ ढाल ५ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबु गुण रत नाला पृ.३६ मोठ वाजरी वाही खेतड । सासियर सिधावे । सासु सुसरा साला साली। भोजन भक्त करावे.॥ स्वा० पुडला मीठा कदीयन दीठा । त्यार करी पुरसावे । स्वाद अपूरव मन रंजाणो । सारा का सारा गटकावे ॥ ॥ स्वा० २॥ मूरख जाणे वे बेई दाखे । दोय २ लागो खावा । मर कटनी पर गाल फुलाया । लागो लोग हंसावा ॥ स्वा०३॥ चार दिवस पाहुणडो रहीने । विदा होत तिणवारो । शेलडी निपजण विध महू पूछी लेई चाल्यो ईखु भारो ॥ स्वा० ४ ॥ पोच्यो निजपुर खेत में जाई । फलियो धान जड काटे । घरका कहे आई शाख निपातन । करो छो थे स्यांमाटे । स्वा० ५ ॥ सांठा वोहस्यूं ए सब खोस्यूं । लाभ घणो नहीं घाटो । समझ समझावे सुण तुं भोला । एक रशायां तो लाटो ॥ स्वा०६ ॥ एक न माने इसडो अज्ञाने । टेक बिगाडे कामे । खेत उजाडी कूख खिणावे। जल नहीं निकस्यो जामे ॥ स्वा० ७॥ गहणो सबाब बेच दियो सगलो । दाम खाट फिर खिणियो । दुजबी वारी वारी नहीं निकल्यो। दोस रामरो गिणियो॥स्वा० साख सोई धन खायो घरको। रोवे ऊंचा सादे । लोग कहेरे रे तुं मरख । लाधा ए फल वादे ॥ स्वा० ९॥ धुरकाग दे घरका जिणने । रे पपी सबने बोरा । चित्त साले साले दुरवयणा । गरज सरे नहीं रोयां ॥ स्वा० १०॥ भावारथ समको अलवसर। पाप हठीला बग जेहा। मीठा पुडला मोक्ष बतायो। गुरुवर सासर गेहा । स्वा० ११ । किरिया पूछी इहां पधारया । मोठ बाजरी दम फलिया । छना छोडो अछता सुख वंछो । काम करो नहीं सलिया ॥ स्वा० १२ । कोमल देही धरण खारडी । तपस्या कूप खुदावो। |ढाल १५ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माला || निर जरा जल कब हूं नहि निकसे । मुसकिल शिव फल पावो ॥ स्वा० १३॥ वृथा पुन्यरी पूंजी खोवो । । पाछल ही सीदास्यो ! सयण प्रजनरो कहण कबूलो । म्हाने दो विश्वासो ॥ स्वा० १४॥ उर्वशी रूपे उरवगुण शी हियनी । उरवशी आछु बहिनी । कारन लोपा हुकम उठावां, मानो नाथ हम कहनी ॥ स्वा० १५॥ रढ़िया लघरठ इतनो न कीजे । हमरठ लागी तुम से पालवा जली जाण ने दैस्यां जोर न चलसी हमसे । स्वा० १६॥ आप चतुर विज्ञान शिरोमण । थोडा में बहु जाणो । काज न सुधरे अति ताण्याथी । तासु अति मति ताणो ॥ स्वा० १७ ॥ पलक उठाई निजर में लावो । ज्युसबने मुख थावे । करुणा व्याप्त भई घट में, तो हम पे क्यूं नहि आवे ॥ स्वा०१८॥ अछो सयाणा नही अयाणा । करसण ज्यु नहीं करजे । ढाल पनरमी प्रिया परचावे । विनतडी चित धरजे ॥ स्वा० १६ ॥ ॥दोहा ॥ कंत कहे कामल प्रते । भलो कह्यो तुम हेत । रस लंपट योही करे । फलीयो खोवे खेत ॥ १ ॥ खेत फल्यो दश बोलरो । इण में संदेह नाहि । चउ विध फल वि लूण स्यूं । भांगां की नहि चाहि ॥ २॥ राग फाश विच डारती । थे छो बधिक समान | मन हिरणा पडसे नही । एह निश्चय विध जान ॥ ३॥ जिव्हा वश पड कर मूवो । काग एक मति हीण । एवंडो मूरख हूं न छु, समझो प्रिया प्रवीण ॥४॥ किम हुई एह वार्ता महर करी फुरमाय । हिव हूं दाखू भामिनी । सुणज्यो चित लगाय ॥ ५॥ ॥ ढाल स्रोलभी ॥ जिदं सरण थकी भय संपजे ॥ एदशी ॥ इण ही जंबू द्वीप में बहती नर्मदा दाल Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृ.३८ नीर | कामरण क्षुद्रा तेहने पाखती, अटवी गहन गंभीर ॥ १ ॥ कामण समझो चित्रा विचार के। आकडी । मृत्यक हस्ती तिण वने, ख़ाल में पडीयो एक । का० मूवो कलेवर देखने । आव्या पंखी अनेक | का० स० ॥ २ ॥ • जण ढीच कांबला । काग चिडा अणपार । का० । आमिष चूंटी खत्वतां । वायस एक गिंवार | का० स० ३ || आवो जावो नित प्रते । कुण करे इतना श्रम ( महनत ) | का० । इम चिंती पेठा पेट में। मांस भखे ते नर्म ॥ स० ४ ॥ सम्बन्धी खेचर कहे । सांझ भई चल भ्रात । का० । सो कहे हूं मानूं नही । इहां रहस्यूँ दिन . रात ॥ का० स० ५ ॥ बंधण पंड दुःख भोगसे । माने नही सठ रंच । का० । परमादी गिरथ्यो रसे । विकल विवेक तिर्यच ॥ का० स० ६ ॥ इम करतां ग्रीषम ऋतु । तप्यो तेज दिन कार । का० । चामडो सूख्यो तेहनो | मुंद गयो तत्र अधो द्वार || का० स० ७ || वाहिर निकस्यो जावे नही । माहि रह्यो माने चैन । का० चिते सुखियो जगत में, हम सरीसों कोऊ हैन || का० स०८ ॥ श्रावण भाद्रमासमें । घन गरजी वरसाय का० । जल पूरित भरी खाल तदा । नालरु खाल वहाय ॥ का० स० ६ ॥ वहतो जलरा वेगं तटनी में ते गयो चर्म । का० । सरिता से समुद्र में । नाच नचावे कर्म ॥ का० स० १० ।। तोयसुं गीलो होय ने । खुलीयो मुख अध वीच | का० । फदकी वाहिर निकलीयो ऊपर बैठो नीच ॥ का० स० १२ ॥ च दिस नयन पसारतां दीठो ते दरियाव । का० । उड देख्यो दूरा लगे । किहां न लाग्यो दाव || का० स० १२ ।। याको फिर तिहां बैठियो । जोवे उदधि किल्लोल । का० । कुर्ममीन ने गाछला मगरमच्छ उल्लोल || का० स० १३ जंबू गुण रत माल ढाल १६ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माला बरण सामग्री लख थयो । मन में अति भय भ्रंत । का० । रुधिरं लागो मुख जेहने, भावे कुछ नही मंत ॥ का० स० ॥ १४ ॥ जहाज एक ति अवसरे । आावी सुकृत जोग । का० । नियमक तिण ऊपर बैठो विचक्षण लोग ॥ का० स० १५ ॥ हाक दई काक आविया । सोच्यो चित्त मझार । का० स्वाद इसो वांछे नही । मानाही लिगार || का० स० १६ ॥ प्रोहरण तो चलतो रह्यो । पाछे निकस्यो मच्छ । का० । देही करी नीले प्र. ३३ घुस्यो । उडतां टूटा पं ॥ का० स० १७ ॥ विश्रामो दीसे नही, हार पड्यो विच नीर । का० । जलचर भखियो तेहने । प|म्यो नही जेतीर ॥ का० स० १८ ॥ अर्थ अभ्यंतर सांभलो । चहुं गत ए कंतार । का० । काग समाणो जीव छै । मृत्यु कलेघर नार ॥ का० स० १६ ॥ भोग आमिष रसियो थको । सेवे स्त्री नित्त | का० । गुरु जन कहे मुर्छा मती । सहि दुख पास्यो मित्त ।। का० स० २० ॥ मानी नही सठ सीख ए । गिरध्यो विषय विकार । का० । उदय सुर्य तपियां थकां मुंद गयो संवर द्वार | का० स० २१ ॥ कर्म दृष्टि बरसी घणी, भरगयो पापरो खाल । का० । संसार उदधि में वहि चल्यो । दीसे नहीं किहां पाल ॥ का० स० २२ ॥ जलचर नो भय ऊपनो । रोग रु सोग वियोग । का० । अंतराय दुख देवती । भय भूल भीनो भोग ॥ का० स्र० २३ ॥ धर्म जान ले श्राविया सुधर्म गणीं निर्याम । का० । ज्ञान दर्शन दुरवीण दे । पो छाडे शिव ठाम || का० स० २४ ॥ एहवो लोलपी हूं न छूं । ज्यो मानूं नही आज । का० । काल मच्छ ग्रहे संपदा - निकस जावे जहाज || का० स० २५ ।। मरणो पडे जग जलधि में । जाणी इबे कोण | का० । नाफिल मत रहो जंबु गुण रख ढाल १६ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंद गुण नाला पृ.५००/ | इस समे। मिले मुसकिल एह रोण ॥ का० स० २६ ॥ ढाल पोडशमी इम कही समुद श्री पहिली नार । का० । हस्त जोड ने वीनवे | धन २ तुम भार । स्वामिन् बलिहारी तुम ज्ञान नी ॥ २७ ॥ रत्र दोहा ॥ रंगाणी संवेग सुं मोहनी छाक निवार ।निर झूठा बहे चुपही । समझी मनही मझार ॥१॥ पद्म सिरी दूजी त्रिया । आगल ऊभी आय । कर मुजरो इम वीनवे | बिन बोल्यां अंकुलाय ॥ २॥ __ ढाल सतरमी ॥ नींदडली हो नाथ निवारिये । ए देशी ॥ अति हठ मति करो साहिबा । तुम मानो हो नणदलरा वीर के। म्हांका कंपे कालजा | मुख बोलो हो मिठडा निमकीर । वीनतडी हो नाथ अवधारिये ॥ आंकडी ॥१॥ सर्व अलूणो तुम विना । आहिलो जासे हो योवनने रुप के। विन बोल्यां सरसे नहीं । काही झाली हो प्राणेसर चुप के ॥बा० २ ॥ अव गुणी हमने विन गुणे । स्वामी इसडो हो न वि कीजै अन्याय के । करतार भरतार सारिखा । न्याये निपुणा हो आदर चितलाय॥ वी० ३॥ लोभ अति नही कीजिये । दुष्कृतता ते हो जग जन्न कहाय के। बंदर एक हुचो लालची। दुख भोग्या हो घणो | | ढाल बिल लाय ॥ वी०४॥ कहो सुंदर ए बार्ता | कंथा सुण जे हो एक मन धरधीर के। वन नंदन वन जे हवो। हुतो एक जहो मोटो गहन गंभीर ॥ वी०५॥ कुवा बापी मन हरूं । फल फूले हो भारे वृच्छन माय के । । पशु पक्षी उद्यान में | करता मोजा हो कपि जोटा रहाय ॥ वी०६॥ डाके कूहे ऊछले | ऊंचा चढके Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण रख || हो बैठी हरपंत के। मधुर स्वादरी रसवती । भोगी दिल में हो । अहला दयावंत ॥वी०७॥ हुई अचा णक गगन में । देवबाणी हो दिव्य आश्चर्य कारक । पुष्करणी में इण समें । पड होसी ते नर अवतार । वी० ८॥ जोडाथी कूदी पाया । तत्क्षण हुई हो देवांसी देह के। नग्न मूरत नर बोलियो । फिर पामीहो ऋद्ध नही माला संदेह ॥ वी ९॥मेंदी कहे नहिं कूदीये। वहु तृष्णा हो अछे पापरो मूल के । कदेही नपडसी पाधरी । नि. श्चय जाणो हो था से प्रतिकूल ॥ वा० १०॥रे मूर्खा समझे किसुं । देख थाऊ होऊ प्रत्यक्ष देवीस कहीं पडियो डाक के । हुवो वंदर हो पांवरो तत खेव ॥ वी० ११ ॥ खाज खुजातो नीसरयो । कही तूं ही हो। पड इण रे माय के । साक ही हूं अहमक नहीं । भूरे मरकट हो, बेहु हाथ घसाय । वी० १२॥ अश्व चढी ने महिपती आया अहिडो हो खेलण तिणवार के । जंगल वीच पुरंदरी । देखी पूछे हो एहै कवण विचार ॥ बी०१३ ॥ पहली आपो साटिका । पाछे कहि मुंहो हूं सयल सरूप के। पट देई सुण वारता ले चाल्यो हो साथे तम भूप ॥ वी०१४॥ जोरन चल सक्यो रंच ही । जोवत ही हो रहे गयो लंगर के। पकड कलंदर लेगयो परवश पडियो हो । निज कृत बे सहूर ॥ वी० १५॥ भूखो तिरसो राखियो यहि कंबा हो न्हानी मारे मार के । सीखवी बहु विध कला। नाचण रूमण हो झूक करवो लुहार ॥ वी. ॥१६॥ करां कटोरो लेइन भिक्षा मांगे हो जन जनरे पास के। करत आजीविका पुर पुरे । फिरतो फि नचावी तास ॥ बी०१७॥ तिण हीज मगरे आवीयो । करले डहरूम्हो रचायो ख्याल के । राखी । ढाल Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबु गुण रख माला ८०४२ T देख झरोख में । घूमरण लाग्यो हो । जाणे काढयो व्याल || बो० १८ ॥ कौतक करवो भूलीयो । पैठो बंदर हो सोग सागर माहिं के। कपि पत लाठ्यां कूटियो । पिख तिरा ने हो। कछु गम रही नाहि ॥ वी० १६ ॥ नर पति देवी देखने। पिछाण्यो हो मुझ सागे कंत के । माल देवी छोडावियो । शिक्षा मानी हो नहीं तू तिरयंच ॥ वी २० ।। इम प्रभु हृदय सोचिये । वन जग जाणो हो फल शुभ पुद् गल्ल के | ज्यांनवरां ज्यूं जीवडा मिलवो भोग जहो छै घणो मुसकल्ल ॥ वी २१ ॥ गुरु देववाणी वापी क्रिया आपां डाक्या हो हूंवा नर अवतार के सूर शिव सुखरी लालसा फेरूं कूदण हो धया आप तयार ॥ बी०२२ ॥ रहो जी रहो थे वाला नही । नही थाजे हो बंदर री रीत के । ढाल सतरमी इम कही । पद्म श्री हो दूजी सुविनीत ॥ वी० २३ ॥ ॥ दोहा ॥ सुरा बोल्या जंबू कंवर कनक कामिनी काज || लोभ करयां इस पर हुवे । तृष्णा सिंधु पाज ॥ १ ॥ सोतो हूं सब पर हरूं । केम मिले दृष्टंत । श्रंगालक दुखियो थयो हेतु एह मिलंब ॥२॥ किम श्रम तिने ऊपनो केम मिल्यो वह हेत । कहुं हुं सुण इण अवसरे चेत सके तो चेत ॥ ३ ॥ पाणी केरा बुदबुदा संज्या वान समान चलितमान सुख पुदगली कुंजर ना ज्यूं कान ॥ ४ ॥ ॥ ढाल अठारमी ॥ देशी । विण जारानी ॥ जी चांच० || पद्मनि चेतरे | देखी जगत सरूप | दुःख घणो सुख कुछ नहीं । प० अविचल अटल अनूप । मुक्त में साता जिन कही ॥ प० ॥ १५० ॥ इण पर ढाल १८ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लीज्यो जोया कुंहिवे वारता । प० । प० । पुरुष दलिद्री कोय । कोयला कृत वन जारता ॥ प० ॥ २ ॥ ५० ॥ दुष्कर पेट भराय | शप उदय करे पापही । प० । प० । रोही माहे जाय । सहतो भारी आता पछी. ॥ प० ॥ ३ ॥ प० ॥ वारी मसक भराय । तिही कष्ट भेलो कियो । प० । प० । अग्नि दीवी लगाय । आला का दग्धया || प० || ४ || प० ॥ दिन श्राव्यो मध्यान । भान तपे अति आकरो । प० | १० | गरम पू. ४३ गमायो स्यान । भीमावे जिमवा करो ॥ पत्र ॥ ५ ॥ प० ॥ व्यापी तृषा अपार । भाथडीरो जल पी गयो । प० प० । प्यासन मिटत तिवार । आज जाणी मुझ जी गयो ॥ प० ॥६॥ प० ॥ तरवर हेठे आय । दुखियारो सूतो जदा । प० । प० । चाली किंचित वाय । निद्रा वसहू वोतदा ॥ प० ॥ ७॥ प० ॥ सोहण में दरसाव । तोय पीवो कूवा तालरो । प० । प० । कुंड नदी दरियाव । सायर सिंधु अपालरो ॥ प० ॥ ८ ॥ प० ॥ तोहिम fia मिटावे | हलक २ करे कालजो । प० । प० । मुखडे बोल्यो न जाय । कौण करे तेह नो माल जो ॥ प० ।। ९ ।। ५० ।। चऊ दिश जोवे जाग । दूरां सुं निजरे पड्यो । प० । प० । जल स्थान करो लाग । श्रावी तिहां ते माहे पड्यो ॥ ५० ॥ १० ॥ ५० ॥ खुचियो कादई कीच । अंबू लग पोहोंच्यो नही । प० । प० । तृण तोड सर बीच | टपकावे मुंह में सही ॥ प० ॥। ११ ॥ प० ॥ दाह न रंच ही जाय । तन खरड्यो ठंडी गार स्रं । प० । प० ॥ हरष्यो मने माय । तिण शीतल उपचार सूं ।। ५० ।। १२ ।। ५० ।। क्षणिक देर रे अंत। देह फाटी गारो सूकियो | १० | प० । प्रगव्यो परिषद अनंत हाय २ करि कूकीयो ॥ प० ॥ १३ ॥ प० ॥ एक पुरुष तब ུ ཙྪཱ ལྒ བྷྲ ྂ, भाल ढाख 15 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण माखा आय कदम लेप धोई दिया। पाप० । गंधोदक तसू पाय । उपगारी सुखिया किंया ॥१०॥१४॥ प.॥ तत्व पिरयोजन जोय । जीव अंगालक सांचहि । पं० । प० । दुष्ट किसब यह होय । कर्मा दान दश पांचही ॥ १०॥१५॥५०॥ तप्यो उदय अंतराय । अशुभ कर्म झाला देही । प० । प० । विषिया प्यास लगाय। भोग चारी नहीं मिले कहीं ॥१०॥ १६ ॥५०॥ पुन्य जोग सुरसार । काम भोग जल पिया घणा-। प०। प० । जाग्यो नर अवतार । तेह सुख हुवा सुपना तणा ॥ ५० ॥१७॥५०॥ धनरा मामी वाण | देखी आव्यो चल आतुरी । प० । प० । कांठो अलप ऋद्ध जाण खुच भूल्यो सब चातुरी ॥५०॥१८॥१०॥ सुकृत तोड अंकर । बूंद विषे टपकावतो । प० । । अतृप्ततिरखा भूर । दुकृत पंकले पावतो ॥५० ॥ १६ ॥ ५० ॥रस विपाक समताप । प्रगम्या पडसी झूरणो । कृपा उदक धोए पाप । अवि चल सुख गुर पूरणो ॥५०॥ २०॥ प०॥ तोड सकल मोह जाल । सरण ग्रहो सुधमे तणो । प० । प० । अष्टादशमी ढाल | समझो तज मुग्धा पणो ॥ ५० ॥२१॥ ॥दोहा ॥ अण बोली दूजी पिया । रही निरुत्तर होय । बैठी अलगी जाय के भव भ्रमणो भय 'जोय ॥ १॥ पद्म सेणा तृतीया त्रिया मन मेल्या इग रूर । नमन भाव कर तक्षणे। ऊभी प्राव अदूर ॥२॥ ॥ ढाल उगणीसमी ॥ उमियादे भटियाणीरी ॥ ए देशी ॥ सुणिये अंबू स्वामी हो । शिव गामी मोरी बीनती। कोई इम किम तोडो नेह । गिरवा प्रभु सोभागी हो। नीरागी काहीं हो रहा । कां। यो उछा ढाल Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माला ..| न्यू छह ॥ सु० १॥ आलो २ वंछी हो । पर हरिया पूर्वला ग्रहया । कां० नृप देवी सब खोय। बारम हूं। वरजूं हो । सोचीजे दिल में नाहला । कां० एहवा प्रस्तावो जोय ॥ सु० २ ॥ कथा कहो निरशंका हो । मन माहे जेही ऊपजी। कां. बाकी मत राखो कोय। कहण लगी प्राऊ हुकमे हो । साजुक्त केलवी चातुरी कां० लोभे इण विध होय ॥ सु०३ ॥राज ग्रह में वसतो हो । आमूषण घडतो फूटरा । कां. बूढो सोवनकार । तनुज तरुण इक नेहने हो । निज स्त्री केरो किंकरु । कां० । व्यभिचारण तमु नार ॥ सु० ४ ॥ अन्य पुरुषसुं रमती हो । सुसराजी देखी एकदा । कां. लगी कटुक यह बात । सहु विरतंत सुणायो हो। पिण पुत्र न माने एकही। कां. उलटो त्रास्यो तात ॥ सु. ५ ॥ उपन भारी सोचे हो । अालो वे चित्त मांही डोकरो । कां० मोह अंध मुझ पूत । प्रत्यक्ष नयन देखालू हो। मानेगो जद ए वारता । का० त्रिया मिली इने धूत ॥ सु. ६ ॥ लंपट नर संग सोती हो । मुख सिझावे सुंदरी । कां० दीठी पश्चिम रात। सहि. नाणी रे काजे हो । पग नेवर खीधा खोल के। कां० देखास्यं हुं प्रात ॥ सु०७॥ क्षणिक देर रे अंतर हो । थई सावचेत मयणातुरी । कां० । जाण्यो गई छलाय । चरित रचे चिरताली हो । हिवे खोट ढांकवे आपणो । ढाल कांसांचने झूठ कराय ॥ सु०८॥ ज.र जगाव। भज्यो हो । निज पतीरी आवी पाखती । कां० बोले मृदु सहेज । व्हाले स्वर निंद निवारो हो । मुझ श्राप विना नहीं आलगे । चलो हमारी सेज ।। सु०६॥ जाग्रत थई सतावी हो। बेहु आया तिण हिज स्थान के । कां. लेट्या पट कुं ताण । घडी एक वीतां पाछे हो।। १६ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण माल। चमकीने ऊठी चंचला । कां. अलीक बंदती वाण ॥ सु० १०॥ बाप तुमारो आयो हो । इह लेगयो नूपर खोल के । कां । राखो मोसू लाग । तुमरे चित्त नहीं आवे हो । एह छेड करे ? माहरी । कां० समझयो थारो राग ॥ सु० ११ ॥ मैं कपट न समझु भोली हो । वे दोली मोरी फिरे रहया । का० अब जीवो धिकार । मांग्या मुहरा तुम साहो । कर्म अशुभ हमारा प्रगट्या | कां० मिल्या भोदू भार ॥ मु० १२ ॥ एतो क्रोधन कीजे हो । छीजली तुमची देहडी । कां० तू मुझ प्राण आधार । शिक्षा देस्यु प्रात हो । सब दुःख मेट सूं ताहरो । कांई जीवन कोप निवार ॥ सु० १३ ।। प्रभाते उठ बोल्यो हो । निश क्यूं तुम आया तात जी । कां० पद भूषण दिखलाय । रे रे जरडी डोसा हो। तुम अक्कल विणठी मूलथी। कां० मोने ही बहकाय ॥ सु० १४ हूं ही तिहां मूलो हो । अचक्षु तूं समज्यो नहीं । का० । देत अछत्तोपाल । वा पतिभक्त सुशीला हो । रोवे छै थारा जीवने । कां किसं लग्यो जंजाल ॥ सु० १५ ॥ नारी ने परचावे हो । मन भावे नाही एकही । कां० हूंतो धीज लहाय । आलसहित घर रहिवो हो । सतियां ने जुक्तो छै नहीं। कां० जख कर देशी न्याय ॥ सु० १६ ॥ इम कही शीघ्र उठी हो । कर मंजन भूषण पहिरने । कां | करी समस्या जार । ढाल मध्य बजार चलती हो । तब गहिलो हे कर आवियो। कां० । भिड भज गयो तिवार. ॥ सु०१७ ॥ हवो अकारज मोटो हो। हिवे मुझे दिवानो छी गयो । कां। कीजे कवण उपाय । इम पछितावो करत हो । तिहां तत्क्षण श्राई चालके । कां०। पेठी मंदिर मांव । मु० १८ ॥ गहिलो पहिलो टाली हो । पल्लोबी लामो | Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रन मासा होयतो । कां० । सजादे मुझ देव । इम कही चरणा बीचे हो । वे तुर्त ही बाहिर नीकली। कां० । यक्ष छल्यो तत खव ॥ स०१४॥ धन २ लोग कहावे हो । निंदाचे बुढाने बहु । कां० । भेड चाल संसार । तिरियाने बहकावे हो । अति डाहा वाके सो ऊवरे । कां० । मूर्ख हे रह्या झार ।। सु०२० ॥हाल पयंपी वारु हो हित. कारु एह उगणीसमी । कां। आगे कथा रसाल।प्राणनाथ सुणिए हो अवगुणी ए नाही विन गुनहे। कां। न्याय नीत प्रतिपाल ॥ सु० २१॥ ॥दोहा॥ कनक का रतन तडफडे । कुलटा प्रगट्यो साच । सत्व गयो जख देवमो । करयो काच कू पाच ॥ १॥ शोक समुद पठो थको । ध्यावे भारत ध्यान । भूख तृषा निद्र गई । विगड गयो तसू झान ॥२॥ ॥ढाल बीसमी ॥ कररो कंकण तोड दूजे दिन ह लीयो । प्रीतमजी । एदेशी ॥ सारी रजनी तेह। सदा रहे जागतो। प्रीतमजी चोकायत चोकी काज । फिरे नित हाक तो ॥ प्री. १॥ उणही रस्ते प्रात। फिर २ डोलतो । प्री० । जवही देवे अावाज । तेही तब बोलतो ॥ पी०२॥ पहरायत नपपास । आयने इम कहे | मी० । इहां एक सुनार । नींद कबहुन लहे ॥ पी० ३ ॥ राय आदेश बालाय । तिणे हाजिर कियो । पी0अप्रमादी जाण । त्रिया ड्योढी राखीयो ॥ पी०४॥ गहण। वस्त्र बणाय । शोभे देवी सची जेसी । मी० । हाव भाव विभ्रम करत पति मन वशी ।। पी० ५॥ सोनी पहिली रात । बमासो जो टाक्ष Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तंबू रत्न गुण माल पृ. ४८ वतो । मी० । सुख सिज्जा ए राय । राणी संग सोवतो || श्री० ६ ॥ निद्रा वश भरतार । थयां ऊठी जोख सुं । मी० | आवी म्हावत पास । तेड्यो करी गोख सु || मी० ७ ॥ हस्ती सूंडा डंड । ऊचो कियो तब ति । मी० । तसु ऊपर धर पांव । उतरीया ततखिणें । मी० ८ ॥ आक्रोश करी वान । अवेला आवही । मी० । व्हाला करिये माफ | जागे जरढी सही ।। मी० ९ ॥ विलशी भोग उदार । मंदिर फिर आप गई। मी० | हलवेसी सूती जाय पाश पतिरे जई || प्री० १० ॥ कंचन कार वृत्त | देखी अचरज थयो । प्री० । घर २ ओही सांग | सोग सगलो गयो । प्री० ११ ।। इसणा वरणी ताम । घेरयो अति तेहने । मी० । सूर्य च ढ्यो एक जाम | भूपत पूछे जेहने || प्री० १२ ॥ कांई प्रमाद । येदी ऊठ वेगं । प्री० । स्वामी आप प्रीताप | छूटो हूं उद्वेग सूं ॥ मी० १३ || किम सुख उपज्यो तोय | कहो सांची बातडी । प्री० । देख्यो चरित्र विचित्र | आजरी रातडी ॥ मी० १४ ॥ किम यावे प्रतीत । तुम्हारे वेणसुं । प्री० । दूजी निशा वाही रीत । बतादीव नेण सुं ॥ प्री० १५ ॥ कोपातुर महापाल । हुकम इसडो करे । मी० । फलिवान गज नार । गेरो चढ गिरवरे || मी० १६ ॥ तिहुं ने लेई लार । अनुचर तिहां गया । प्री० । भेला हुवा पुर लोग | कौतक सहू जोय रह्या ॥ प्री० १७ ॥ धीज दिखाले गेंद | खडो पग एक सूं । प्री० । विन तकसीर नमार | विचारो विवेक सूं प्री० १८ ॥ जिणे कियो आधीन । कह्यो तिणरो कियो । प्री० । मही पत मानी सांच | अठ्ठारा बंधावीयो || प्री० १६ ।। देश भद्र किया ताम । राणी करीपालने । मी० । एक ॥ ढाल २० Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माना gal नगर रे बाहिर । आया बेहुं चालन ॥ प्री० २० ॥ देवल में विश्राम । लियो तिण अवसरे । प्री०।।। चोरी करके चोर । आया बाहस डरे ॥ प्री० २१ ॥ योवनवंत स्वरूप । पे खीलो भावही । प्री० । वाचा लेइत लार | म्हावत पकडावहीं ॥ पी. २२ ॥ पुर पतरे आदेश । दियो सूली जायने । प्री० । श्री नवकार सुणाय । श्रावक जी आयने। प्रीतम जी ॥ २३ ॥ हुबो सुर शुभ परणाम । तारयो जिण दासने ॥ प्री० । तकर दुशीला चाल | आया नदी आसने । पी० ॥ २४ बोल्यो दे असबाब । म्हेल्याऊं तीर पे पी० । पाछेले जास्यां तोय । ऐसी दीवी धीरपे प्री० ॥ २५ ॥ विषय वावली माल । दियो सब खोलके । प्री० । थारा किया तूंही भोग । चाल्यो यूं बोलके । प्री० ॥ २६ ॥ होय नीराशी आक्रंद । करे अति प्राकारा । प्री० । कुण विश्वासे तेह । भोगे कृत आपरा । पी० ॥ २७॥ ते सुर जंबुकं थाय । श्रामिष मुख लेइके पी० । धर धरीणी मछ काज । झपटो देइके । प्री० ॥ २८ ॥ पिछतावे बाहिर आय । मांस लियो बाजने । पी० । राणी हंसी कही मूर्ख । बिगाड्यो काजने । पी० ॥ २६ ॥ लालचीयां दुःख होय । विचारो आपही । यो परकं उपदेश । करो पश्चत्तापही। प्री० ॥ ३० ॥ कर छोड्यां तूं तीनमें तो | हाला दोई खोइया । पी० । चिमक कहे तुम कोण । प्रकट देव होइयो । पी० ॥ ३१ ॥ विपत पडी मुझ हेत । तिणसूं हूं आवियो । पी। जैन धर्मरो मर्म । सकल समझावियो । पी० ॥ ३२ ॥ उद्वारी निज स्थान । गयो तत्कालही । पी० कथा कही तीजी नार । वीसमी ढालही । पी० ३३ ॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * ॥दोहा ॥ इम मभु तुम पिछतावस्यो । दुःख देवो दुःख दाय । प्रेम वचन वरसाय के । मंटो विररख । हा लाय ॥ १ ॥ सत्य हेतु दाख्यो सुभग । विषयातुर दुखपाए । धर्मथी बेहुं ऊधरया । हुयो तुम म्हुडे गुण नाए ॥२॥ माला ॥ ढाल इकासमी ॥। नर भव पामीरे सफल करो तुम प्राणी । एदेशी ॥ कंवर कहे सुण पृ.५० भामिन भोली । तुं नहीं समझे काई। पूर्व जाणो पश्चिम चाले । आकाई चतुराई । नर भव पामीरे । सफल करो तुम नर नारी । तप जप कीजेरे । समता उर धारी ॥ १॥ अांकडी। सुख अभिलाषी दुखरी करणी। करत न पामो खो। खाय हलाहल अमर होन• । तुमबी करती तेमे ॥ न० २॥ बहकायो बहकूला नाहीं। निश्चय करके जाणो। विप्र पुत्र करणी से चूको । तिमहूं नहीं अयाणा ।। न०३॥ कही संबंध प्रभुजी हमने । सुणस्यां धर कर प्रेमे । पूछयांथी वोल्या अलवेसर । चालत मान थयो ऐमे ॥ न० ४॥ जंबू द्वीपरा क्षेत्र भरत में । कोष्टग नामा ग्रामे । बसे मेघरथ विद्युन्माली । माहण सुत द्वेजा में ।। न०५ ॥ विद्यार्थे पुर वाहिर चाल्या । खेचर मिलियो तेहगें । प्रार्थना करीयां थी भाये । साधन दुकर जेहन ॥ न०६॥ जिम कहस्यो तिमही हम करस्यां, महिर करीने दोजे । चुहुडानी पुत्री परणीने । वीज मंत्र समरीजे ॥ न० ७ ॥ होय नगन | मातंगी सामे । रहो अणमेल्या नेणा । जाप जपो निश्चल मन राखी। रखे डीगो मुद् वेणा ॥ न.८॥ ज्यो कदापि शाल से चूका । विगत जासे काजे। शुद्ध आराध्या छै.महीना में । निश्चय पास्यो राजे ॥ न. ९॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीजाी शीखी बे भाई । तेहिज कीधी रीते । देव जोगसो वाग कन्या । करे त्रिया चेष्टा प्रीते ॥ न० १०॥ नाचे गावे नैन मिलावे । मुस्काई ललचावे । यो ऋतु दान कामातुरी । तुम हम जी सुखपावे ॥ न० ११ ॥ गुण व्याप्यो मदन हुयो तन व्याकुल । विद्युनन्माली जबही । भ्रष्ट भयो तसु साथे मूर्ख । हुयो वावलो तबही ।। न० माला ॥ न० १२ ॥ रह्यो अडोल मेर ज्यं घनरथ धरचो ध्यान तहे मन्ने । देवी प्रकट थई कहे दं। ज्यो मांगे ज्यो तंने ॥ न० १३ ॥ मांग्पा राज दियो अति मोटो । सीधा वंछित सारा । मिलिया सुख अमामा तेहने । धन भरिया भंडारा॥ न० १४ ॥ चतुरा सम जो इण प्रस्तावे । विष तनुज जगजंतु । निर्बुद्धि विपिया रस रसिया विद्या प्रेम रे तंतू । न० १५ ॥ सत गुरु जिन विद्याधर मिलिया मंत्र परमेष्टी भाष्यो। साधन सतरा भेद बतायो। राज मुगतरो दाख्यो । न० १६ ॥ खाख रोज तनुजा सम नारी । देत परीसा भारी । अचल रहे सो पावे शिव पद । डिगीया कुगत तयारी॥ न० १७॥ ढाल भणीए इक वीशमी । परम वेद उपकारी । राज रोगरो औषध कीनो । जंबूनी बलिहारी ॥ न० १८ ॥ ॥दोहा ॥ कंचन सेना चतुरथी। बोले करी सलाम । जीव लहरीयां जातुहे। राखो नाथ कलाम ॥१॥ || सरणे राखी पालटो । एह नहीं पुरुषां रीत । नीत शास्त्र सासुरा जाण तुम । करो चोगणी प्रीत ॥२॥ महंत पुरुष बहुलावा । पहिली भोग्या भोग । ग्रहे भार सुत सोंप के पाछे लीधो जोग ॥ ३ ॥ हठ कर ज्यो नही मानस्वो, खेतडनी पर होय । तुम भी कहो जे उपजी । वाकिम राखो कोय ॥ ४ ॥ ढाल Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्र माल जंबू ॥ ढाल वावीसमी ॥ इण सरवरीयारी पाल हिंडोलो घालस्यां म्हां का राज ॥ एदेशी॥इण जंबू । गुण || द्वीप मझार । ग्राम एक सुरपुरे म्हांका राज । ग्रां० । खेती करे कल्मी नाम । पेटरी प्रातरे म्हापे॥१॥ || वेसे माले जाइ रूखा लण धान कुँ । म्हां० रु० ॥ श्रावे चिडियां कपोत । पखेरू खान • । म्हां ॥ पं० २॥ हुयों उडत उडत । अतीते आखतो । म्हां० अ० । कोई कवाय उपाय । कीजे पक्को जाबतो ॥ म्हा० ३ ॥ पृ.५२ बुध उपजावी तिवार । संख बजावता | म्हा० सं०। पंखी सुण कर शब्द । त्रास बहु पावता ॥ म्हां त्रा० ४ ॥ राम येम करे नित मेव । बह्यो चिरकाल ही । म्हां० ब०। एक दाध न लेई चोर आया तिहां चाल ही ॥ म्हां. आया० ५॥ बेठा तर वर हेठ । पात्यां करे जू जूई । म्हां पां। करसणरो उपचार | मुणी चिंता हुई म्हां ॥ मु. ६ ॥ जाण्यो आई वाहर । पामी भय भागीया । म्हां० प० । म्हाल म्हेल तिण स्थान । उवट पंथ लागीसा ॥ म्हा० उ० ७॥ उत्तर मचाणथी जेह । हर्ष चित्त होइया । म्हा० ह. । हेम रतन दीनार । भूषण ढिग जोइया । म्हा. भू. ८॥ भाग्य खुलो मुझ अाज । झोली भरी तेहमुं । म्हा० । झो० । सो पीस्त्री ने आय । बोली सानेह V ॥ म्हा० बो० ॥ सुखसुं करो गुजरान । आफत सब छोडने । म्हां० श्रा । अब कुमीर हीन हीकाय । कहुं कर जोडने ॥ म्हां. क १० ॥ जेण उपाव एलच्छ । सोही किम छडिए । म्हा० सो० । एक न माने गिंवार । करत ऐफंडिए । म्हा० क० ११ ॥ लेय दधी सुत हाथ । फिरि २ फ़कियो । म्हां० फि० । चोर चिंते आपां वित्त विनासोच्या कियो । म्हावि० १२॥ गया हुंता थोडी दूर।। |ढाश Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण रत्र माला पाछा फिरि विरि आविया । म्हा० भू० देखी खेतड ने ताम। क्रोध उपजा विया ॥ म्हा० क्रो० १३॥ नीचो । गेर छानी मार । देईने कूटियो । म्हा० दे० ॥ हुई लोही झर देह । शीष तब फूटियो । म्हा० शी० १४॥ द्रव्य लियो सब लूट । पूर्व लोबी संचियो। म्हा० पु० । लोक कहे प्रत्यक्ष । दखि तिरयचियो।म्हा० दी० १६॥ त्रासे सब परिवार । लोभे सहु खोइयो । म्हा० लो४ । साले वेदन कटु वेण । दुखी बहु होइयो । म्हा०० ॥ १६ ॥ ढाल वाबीसमी माहि । जुगत अत मेलवी । म्हा. जु० । कनक सेण चोथी नार । चातुरी के वली ॥ म्ह ० चा० १७॥ दोहा-जंबु कंबू धर्म को । वार २ मत फूंक । अति लोभे जास्यो तुमे । छता सुखांमुचूक ॥१॥ भली कही तुम भामिनी । लोभ पापरो मूल । एही समझ कर देत हूं इणरे माथे धूल ॥२॥ घायल मरकट मृत्य का ले पाणी निज देहं । ठंडक सुख मानी क्षणिक पाम्यो दुख अछेह ॥ ३ ॥ किम स्वामी एह वार्ता, कहो गरी निवाज । सुभ कांता मनखां तथी । मदन बिगाडे काज ॥ ४ ॥ ॥ ढाल तेवीशमी ॥ धर्म पावे तो कोई पुन्यवंत पावे ॥ ए देशी । इम पीऊ पतनी ने परचाये । कर्म विपाक बतावेजी । तिमर मंदिर हदये रो नसावे । ज्ञान दीपक देखावेजी ॥ इ० १॥ एक आराम हवो | अति नको । मोटो गहन गंभीरोजी पंकज फूल्या होद बावडियां । निर्मल तेहनो नीरोजी ॥ इ०२॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृ.५४ कदली दाड्यां दाख नारंगी । नीबू बीजोरा करणाजी । तूत फालसा श्रादू जामू । पक्या आम मन हरणाजी गुण | ॥ इ० ३ ॥ ताड तमाल खिजूर सिरीफल । सिरूं मिसल सिर सोहेजी । रायवेल अरु अमरवेल फुन । नागर | वल्ली मोहेजी ॥ इ. ४ ॥ गुल महिंदी दाऊदी हजारा। केतकी विडला म्हकाईजी। आशिक पेचा चंपा चपली । लट्टी गुल फूलाईजी ॥ इ० ५ ॥ इत्यादिक द्रुम फलिया फूल्या । बिच मनोहर परसादेजी। नंदन वन समते तिहां रहिता । कपि बधु फल आस्वादेजी ॥ इ० ६ ॥ सर्व भांत सुं सुख मानंता । सुखे २ दिन नाइजी । तरुण बांदरो बांदरी अर्थे । वुढा सु माडी लडाईजी ॥ इ० ७ ॥ बाथां भर २ दांता खादा । नखे बिलरी कायोजी। लोही लुहा लह वो बलहीणो। भाग्यो वृद्ध हरायाजी। इ०८॥ दुरे जातां तिरपा व्यापी घावां पूरे शरीरोजी । नदी निवाण जोतां इक पायो । डावर गुधलो नीराजी ॥ इ०६॥ महेि पइठो रोल मचाई । सोभी सूको वारीजी रह्यो कर्दम अब किमु मैं पीऊं। जल विन तडफे भारीजी ॥ इ० १० ॥ पंक लेपियो अंग आपरे । उपजी शीतलताईजी परम अहलाद पामी मन चित्ते हम समसुख न किहांईजी ॥इ०११॥ काईक गर्मी देहीनी सु । काईक सूर्य प्रभावजी गारो सूको तन सहू फाटो । वेदन सहिय न जावेजी ढाल ॥ इ० १२ ॥ उछल उछल पडतो गिरतो । माथो पटके जीवारोजी। अल्प देररा मुख रे कारण पायो दुःख अपारोजी ।। इ०१३ ॥ समझो सुंदर इण प्रस्तावे । सोहेला अघ फल बंधताजी । भोगवंता श्रा जाणो । मिले जोग अणगमताजी ॥ इ०१४॥ अशुभ कर्म उदय जदि आवे । कोइयन आडो थावे जी ।। Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबू गुण रख माला पृ० xx रोयां सुं नहीं गर्ज सरावे । विण भुगत्यां न छुटावेजी ॥ ई० १५ ॥ खड्ग धारा पे सेतरो विन्दु । चाटत मीठो लांगेजी । फाटत जिव्हा रुधिर झरतो । क्षण सुख दुख अथागेजी ॥ इ० १६ ।। ढाल भरणी यह तीन वीसमी विष विषिया नोऊ तारयो जी । काम अही उपदेश मंत्र थी । जंबु खील भय टाल्योजी ॥ इ० १७ ॥ ॥ दोहा ॥ हिव बोले पंचमी प्रिया । सुणो नाथ मुझ बात | पहिली तुम विश्वास दे । पाछे करता घात ॥ १ ॥ विरं फुरमावो हम तणे । दया रुचि छे चित्त । करतब करतां एहवा । अधिक बधिक से मित्त ॥ २ ॥ कहण जोग तो थी नहीं । पिण दाखी अकुलाय । दरदी ने सुध ना रहे । मत बहाला दुख पाय ॥ ३ ॥ लोभ अत्यंत वधारतां । सिद्धी बहु पछताय । तिमही तुम करता प्रभू । कहूं कथा सुखदाय ॥ ४ ॥ ॥ ढाल चोवीसमी || || पदम सिरी तिहां नयणे दीठी । ए देशी । नभसेखा कहे पंचमी नारी मानोनी अरज हमारीरे लो। हमरे एक तुम से इकतारी । मत मूको निराधारीरे लो || न० १ अति तृष्णा प्रीतम दुखदाई । तजोन प्रभुता पाईरे लो । लालच कर सिद्धी पिताई । सुखो देत चित लाईरे लो || न० २ ॥ भरत क्षेत्र वसंतपुर ग्रामे ! वसती ते तिण ठामीरे लो । सिद्धि बुद्धि एहवे नामे । करे मजूरीरो कामेरे लो || न० ३ || आती इंधण चुगवा काजे । पुर वाहिर पग दाजेरे लो। धूप पडे उष्ण वायू चाले । आय बैठी सर पाजेरे लो || न० ४ ॥ तिण वेलां एक सारथ वाहे आव्यो । चालतो राहरे लो । उतरथो जाणी ठंडी t ढाल २४ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण माला छोहे । पुन्य पुंज तेह साहरे लो ॥ न० ५ ॥ डेरा तंबू मेख सखाना । राग मनोहर गानारे लो । सेठ सेठाणी ।। अंबु || सुणता काना । सुकृत फल प्रकटानारे लो ॥ न०६॥ खाता नाना विध पकवाना । नागर वेलरा पानारे लो । खुशबो हीरा अंतर दाना । मोजां. करता नानारे लो ॥ न० ७॥ विवहारी बहु तेहनी लारे । अवर । घणो परवारेरे लो । हाथी करहा औरतो खारे । रथ पालकी विस्तारेरे लो ॥ न० ८॥ आंख्या देखे ऊभी दूरे। प्राध्या पुन्य अकूरेरे लो। पाप किया आपां भरपूरे । इम मन माहे भूरेरे लो॥ न०६॥ जब पंडित एक पृ.५६|| | चाल्यो आई। जोवालो थे काइरे लो । देखांछां निजक्रत कमाई । दलिह हमारो किम जाइरे लो ॥ न. १० ॥ एक उपाव वताऊं तुमने । सेवो गणपत तन मनरे लो । तूंठा कहिन्यो वरद्यो हमने । कीज़्यो प्रमाण हुकम नेरे लो। न०११॥ तहत बचन पंडितानो करियो । मंदिर जाय ध्यान धरियोरे लो । एकागर चित जख समरियो । प्रगटी दीधो वरयोरे लो ।। न० १२ ॥ एक २ दीनारराजीना । म्हु माग्या तमु दीनारे लो सफल मनोरथ तिणरा कीना । दुख गया दोई सखीनारे लो ॥ न० १३ ॥ आनंद में दिन दोन्यारा जाता। सुख २ काल गमातारे लो । लोभ करेछै हिव उत्पाता। ते सुण प्रीउडाजी बातारे लो ॥ न० १४ ॥ सहि यर सरखी सुर सेव्यो जदकी हिवे हूं थाऊं अधीर लो । लोग कहे जदी मोने हदकी। सिद्धि विचारयो भरी मदकीरे लो॥ न० १५ ॥ जब वितर फिर २ जाय ध्यायो । समरयां सुं तत्क्षण आयोरे लो । कह तं । क्यूं मुझ ने बोलायो । बुद्धि सु विमणो देवायोरे ला॥ न० १७ ॥ तुझ बहिनी सुं दूणोपाशे । इम कहि गयो ढात Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ '' आकाशरे लो । या घर अपणे आई उल्हाशे । जाण्यो घणो सुखु थाशेरे लो ॥ न० १८ ॥ श्रथ वधंती बुद्धि जा । लवे. कुबुद्ध अयाणीरे लो । तिण देवत सुं बोले वाणी । कर देवो माने काणीरे लो ॥ न० १६ ॥ इम कहेतां एक आंख गमाई । दूजी आंधी थाईरे लो । देवे प्रलंभो तिणरे जाई । कीधी कि तेवाईरे लो ॥ न० २० || सुझ थी अधिको तूं सुख चायो । भोगवो हिवडा लहायोरे लो । अब क्यूं आरत ध्यान धरायो | कीधांरो फल पायोरे लो ।। न० २१ ॥ इमद्दिज समझो अंतरजामी । कहुं कर जोडी शिर नामीरे लो । पुन्य देव तूठा ऋद्धपामी । लोभ बधावो सांमीरे लो || न७ २२ ॥ जो नहीं मानी तो दुख पास्यो । सिद्धि ज्यूं पितास्योरे लो । भोग जोग दान्यों ने गमास्यो । अधिर आत्मा थास्योरे लो || न० २३ ।। चार बीसमी ढाल ए दाखी । व्योमसेन इम भाषीरे लो । समझावा में कुमियन राखी । पति राखण अभिलाषीरे लो । न० २४ ॥ पृ. ५७ जंबु गुरा रत्न माला ॥ दोहा ॥ हंस बोल्या जंबू जदा । समजो मर्म सुजाण । पुदगलरी बांधा बुरी | तुमचा वचन प्रमाण || १ || उदय भावरा जोर से । विषम अर्थ समझाय । पिण मानूं नही एकही हुं जाएं सम न्याय ॥ २ ॥ मुझ हृदय दरसावियो । गुरुवर सत्य स्वरूप | अलग कियो मिथ्यात्वता । ज्यं कण कंकरसूप || ३ | न्याय पंथं कूं नहीं ज्यूं नृपरो । नोंखार । भले भाव से भामनि । सांभल एह अधिकार ॥ ४ ॥ || ढाल पचीसमी || आज निहे जोरे दीशे नहेलो । एदेशी || जंबू द्वीपरा भरत क्षेत्र में । पूर्व सं ढाल २५. Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | त ए नाम । जित शत्रु तिहां राज जिन मती। राज करे अभिराम ॥ १ ॥ हेतु मनोहर सुंदर सांभलो । U. । कड़ी। अश्व रत्न एक तेहने सुलक्षणो लंबोदर लघुकान । वाल रु भौंरी अशुभ एको नहीं । ऊंचो खंध प्रधान गुण | हे० ॥ २॥ जिनदत्त नामा श्रमण उपासक । वसतो तिणही शहर । सकल कला में निपुण दयानीलो । रा. माला जनरी पिण महर ॥ हे ० ३ ॥ ततूरी तेहने महिपत सूंपीयो । करि ये सार संभाल । पगल्यां हेठे जीव मरे नहीं एहवी सिखावो चाल ॥ हे० ४ ॥ हुकम प्रमाणां जुकर घर आवियो । लेई ने केकाण । दियो आदेश नफर बोलायने । बांधो आछे ठाण ॥ हे० ५ ॥ माठे मार्ग हयते खडे नहीं धरतो हलवा पाव । जिनदत्त जिणने सीखवी एह गति । अवर भी केई दाव ॥ हे० ६ ॥ करी तयार जु ड्याडी आयके । वान वियो भूपाल । हाजरी लीजे भूपत गोख ए । आव चढ्यो ततकाल ॥ हे० ७ ॥ फेराव्यो ते तत्क्षण घोडलो । हण हणा तो होट । कावा कूदत कदम विछातये । पडियो नाहि शलोट ॥ हे० ८ ॥ रंज्यो राजा चातुरी देखने । कही सावास साबस ॥ कुर्व वधारयो दोन्यारो अति घणो । किया विसर्जन तास ॥ हे० ९ ॥ महिमा फेली जेहनी चिहु दिसे | श्रास अनोपम रत्न । सुण अरिरायै मन ललचावियो । ज्यु कर कोइकज रत्न । हे० । जूद्ध क- | ढाल रणरी शक्ति न माहरी । मंगवाऊं घ्रवाय । पडहो वजाया काम करे जिका में मांग्यो धन पाय ॥हे. १० | २५ एक चोरटो कुबुद्ध शिरोमणि । आवी कीध सलाम । हुकम दीजिये प्रभुजी मो भणी । करूं सताबी काम ॥ हे. ११ ॥ जा तूं जलदी विमल करे मती । देसू बहला दाम । शीघ्र चलंतो तिण पुर आवियो तेहीज सबले Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण रख । माला प ताम ।। हे०१२ साहिस असंदो देखी पूछीयो कि मनोरथ भाष । नोकरी करवा पेटरे कारणे शेर अन्न। अभिलाष । हे० १३ ॥ रहो मित्र थे हमरे पाखती । गाजीरी लीद उठाय । धणी हमारो अधिक उदार छ । इण घर कमियन काय ॥ हे०१४ ॥ करस्युं इमही होसे माहरो । तुम प्रसाद गुदगन । इम कहिवा लागो निश दिने । कपट तणो मंडान ॥ हे० १५ कितना ही वासर इण परे वोह लिया। उपजी पूरी प्रीतीत । सर्व रुखाला धंधइ लागिया । इणरे भरोसे न चीत ॥ हे० १६ ॥ छेद हुवा गाछिद्र तकी तदा । करीयो पीठ पलाण । कर असवारी चालण अवसरे । वाजी न तजे वाण ॥ हे०१७ ॥ कुपंथ कदापि पांव घरे नहीं सहन करे बहु मार । खबर हुवांथी सेठजी आविया । भागो चोर जिवार ॥ हे०१८ ॥रीझया महि पति देख शीलता। हवो अतही खुस्य ल । प्राण समाना करतो जाबता । जीवे तेहने निहाल । हे०१६॥ मुतलव एह वोहि वे तुम अोलखो । दिल थिरता में ल्याय । जित शत्रु सम श्री जिणराज जी हय मुझ जीव कहाय ॥ हे० २० ॥ सुधर्म स्वामी सेठ ने मूपियो । समगत दिवा शिखाय । मोइ महीपति भेज्यो चोर कू। काम कुबुद्धि थाय ॥ हे० २१ ॥ मिष्ट वचन तुम देती ताना । मैं सहुं छं सम भाव । विषय कुमार्ग निश्चे जाणियो । देवू नहीं | । हुँपाव ॥ हे० २२ ॥ प्रभुजी रोझयां करसी आपसा । संदेह नाहि लिगार । करो कलाप जु क्यूं तुम कामिनी । म्हारो एह विचार ॥ ६० २३ कथा अपूर्व इण पर वर्णवी । पांच वीसमी दाल । जंबू सोना सालमा ज्यू तावे ज्यूं लाल ॥ हे० २४ ॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबु गुण रक्ष नाला पृ. ६० ॥ दोहा ॥ सोन सिरी तिरिया षष्टी । बोली करत सलीम । जिम भाषा तिम हीज लै रहिवो नाहि कदीम || १ || पि मानो हमची कहण । प्रथम भोगबो भोग। तृपत थईने पालस्यां । थिर परणमे जोग ॥ २ ॥ ऐसा जो निःसनेह था क्यों कीधो गृह वास । पाछे गोता देवता । पहिली दे विश्वास ॥ ३ ॥ यां श्रलंभो कहां लगे सुणियो प्रीतम राय । आश अलूधी दाखती । मुखं आवे ज्युं दाय ॥ ४ ॥ ॥ ढाल छावीसमी ॥ आई देवा ओलंडो सासुजी । एदेशी। जांणी थांरी प्रीतडी प्रीतमजी । करुणा नाणो रंच हो हठ भीना नवल मत केवलो । प्रीतमजी । गुनहगार तो छां नहीं । प्री० । एती न कीजे खंच हो | रढियाला पलक तो मेळवो || प्री० १ ॥ सुण बियोगरी वातडी । मी० । जीव लहरियां जाय हो ह० भागवनी जिम वदली । मी० | नयणा नीर झराय हो । २० मी० २ || छांड हटीला टेक | मी० म्हानो म्हारी बात हो | ह० ब्राह्मण केरो डीकरो। मी० 1 खर की खाई लात हो || २० मी० ३ ॥ कहूं वारता आपने । मी० । श्रवण करो चितलाय हो । ६० एहीज जंबू द्वीप में । मी० । क्षेत्र भरत सुखदाय हो । २० भी ० | ४ || सुत्र ग्राम वासियो । मी वित्र तणो एक नंद हो । ह० निगुण रूपसे फूटरो । मी० । मूर्ख मतिनो मंद हो । २० प्र० ५ ॥ पढ बेटा माता कहे । प्री । सो कहे मुझ नही आत हो । इ० सीखने विद्या टेक सुं । मी कहूं नहीं विसरान हो || २० मी०६ ।। रामचन्द्र सीता कहीं । प्र० । पांडव लीधो राजहो | ६० डाल २६ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ I हरचंद बोहनी संपदा । प्री० | गाढ पदार्थ आज हो । २० प्र० ७ ॥ इम परचाची पुत्र ने भगवा ताम हो । ह० । चाल गयो बाजार में । प्री० । जोसी ने जावे जाम हो । । प्री० । भेज्यो जंबु गुण रत्न माला २० प्री० ८ ॥ गर्दभ मि लियो भूखतो । प्री० | जाएयो मुझते डाय हो । इ० | एम विचारी दोड के । ह० । पूंछ पकड ले जाय हो ॥ र० प्र० ९ ॥ खावे दुलातां मुखपें । मी० । छांडे नही ते मूढ हो । ह० । लोग कहेरे लोभिया । प्री० । पृ. ६१ किं ग्रही थे रूढ हो । २० मी० १० ॥ छांडूं नहीं हूं सर्वथा । प्री० । इमही को मुझ माय हो | ह० । वडकां केरी सीखड। | मी० । कहो कैसे लोपाय हो । २० मी० ११ ॥ समझायो समझे नही । प्री० । खबर ही अम्मा आय हो । ह० | कहरे मुग्ध शिरोमणि प्रो० । क्युं खोपर में खाय हो । र० प्रा० १२ ॥ तेंही को हो मुझ भणी | ० | पकड छोड जे नाहि हो । ह० । फूटा भाग इम कहीने । प्री० । ले गई ग्रही ने बांहि हो || २० प्री० १३ इम दुख पाम्यो नाहला । प्री० । छठ करतां ते भूर हो । इ० । एती कठिन कही वातणो | प्री० | म्हारो नहि मगदूर हो ॥ २० प्री० १४ ॥ पिण दुख भीनी में कह्यो । प्री० । आ शंगायत होय हो । इ० | क्षपावंत बहु जाण हो । प्री० | गुन्हो बगस जे मोय हो । २० मी० १५ ॥ गुणवंता नो गुण ग्रहे । प्री० । अवगुण न गहे कोय हो । ह० । विळख वदन सब होरही । प्री० । पीड हमारी खोय हो ॥ २० प्री० १६ ॥ ढाल भणी छब्बीसमी । प्री० । चतुरा चटक लगाय हो । ६० । नर मगर में सघली कही। मी० । विग पति के नावे दाय हो । २० प्री० १७ ॥ । ॥ ढाल २६ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥दोहा॥बको वावले वेण तुम । लागो मोह पिशाच । जंबू कहे तुम कहण थी । काचन थावे पाच || गुण | ॥ १॥ शेढल वाहण कुगुरु है भोप मुख मिथ्यात । अधर्म पूंछ गही जीवडा । दुःख दुलांतो खात ॥२॥ रत्न || समो अर्थ इम कीजिये । अंतर नैन निहाल । घर धीरज धर्म धारिये । छांड सकल जंजाल ॥ ३ ॥ ग्रह वासर माला हितां थकां बंधे बेर दुखदाय । तहिन भय कारण कह्यो । श्रीमुख श्रीनिणराय ॥४॥ इक घोडीरी खांण पृ. ६२|| गी की । चोरी चरवादार । दूजे भव बदलो दियो । सुणोसुभग अधिकार ॥५॥ ॥ढाल सतावीसमी ॥ सुगण साधूनी हो मुनि थारा मनने पाछो घर ॥ ए देशी॥ जंबू द्वीपरा भरत में होक । भामिनी । कुस्थल ग्राम उदार । महिपति तेहनो गुण निलो होक । भामिनी । घोडारो रिझबार ॥ १॥ चतुरा चेतियो होक । जोवन विद्युत नो चमत्कार ए । आंकड़ी। वल्लभ नृपरे अश्वनी होक । भा० । तानी तेज हशील । असवारी तिण पर करे होक। भा। तनकर आछा फील ॥च०२॥ विविध भांति रक्षा कर होक । भा० । ताजा माल चराव । परवारा काढी दिया होक । भा० । खाणगी शीगे गांव | | ढाल ॥च० ३ ॥ चाकर तिणरो तसकरू होक । भा० । दोलत करे खराब । खातो चोर खुराक में होक । भा० । पोतो नप्ता सराव ।। च० ४॥ दुर्बल हो घोडी मुई होक । भा० । भद्रक भाव जामा । वेश्यानी पुत्री थई ]ोक । भा० । रूमला अभिराम ।। च० ५॥ साहि समर ब्राह्मण घरे होक । भा• । पुत्र पण उत्पन्न दुर Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जबु रम भीगी असुहामणो होक । भा० । भूडो कालो तन ॥ च० ६ ॥ गणकानी सा कन्यका होक । भा० । रू. | पपुंज दीदार | नव यौवन कामातुरी होक । भा० । कामी मोहन हार । च०७॥ विप्र दलिद्रि नो डीकरो होकभाकाय निकस्यो तिण गेह । नगर नायका देखने होक । भा० । मुछागत थयो जेह ।। च०८॥ माला धन लोभणब नही होक । भा०। काढ धका दिराय । सो कहे हूं जाऊं नहीं होक। भा० । पग ग्रही हाका खायच०९॥ काम करे सुंताहरो होक । भा० । रहस्यु थारे द्वार । इसो कबल पारि के रह्यो होक। पृ.६३ भा० । कंदर्प करतो झार ॥ च० १०॥ छेल भंवर रसिया घणा होक । भा० । भांगे आवी भोग । यो देखी झूरे बहु होक । भा० । अशुभ कर्मरा जोग ॥ च० ११ ॥ पूर्व भव इण पापिए होक । भा० । खाया माल टुंगाय । अब भगतण सुख भोगवे होक । भा० । यो टुंगे पिछताय ॥ च० १२॥ आता जासा नर सह होक । भा० । ठुकरावे तमु शीश। मुघल देखी थूकवे होक। भा० । दुख भोगे निश दीश ॥चे. १३ ॥ तुरी समाणी कामनी होक । भा० । समता शील खुराक । भा० । दीनी प्रभुजी भूपति होक । भा० । कामी चोर चलाक ॥च०१४ ।। होय कलंदर तरसता होक । भा० । निर बंछे संसार । शरीर मानसीटे विधे होक। भा०। ठाक रहे दुख कार ॥च०१॥ इण पेंडे चालू नही होक । भा०। पालूं जिणवर आण । निज घर केरी मालकी होक । भा० । होसी मुझ निर्वाण ॥ च०१६॥ हराम खोर दुखिया हुवे होके । भा० । दुर्गत धक्का खाय । इण प्रस्ताने जोयज्यो होक । भा०। धर्म करो चित्तलाय ॥ च० १७॥ सत्ताबीसमी ढाल में होक । । भा०। हेम सिरी गुण हेत । पुष्ट हुई वैराग्य सुं होक । भा० । मौन भाव अहिलेत ॥ च०१८ ॥ ढाल Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जबु गुण रख माला [॥ रूपसिरी सप्तमी प्रिया बोली मृदु मुसकाय । कृपानाथ बुध आपरा कहां लोवरणी जा य ॥१॥ नेम सरीसा वृक्तता । मानी भावज काण । उण सुं अधिका तुम नहीं इतनी करता ताण ॥२॥ वृद्धमान मा गर्भमयी कियो भिग्रह एह । मात पिता जीव जते संजम व्रत नही लेह ॥ ३ ॥ जिनके पेडे चालवा हुवा आप तैयार । तिन कीतो यह वार्ता सोचो चित्त मझार ॥ ४ ॥ जनक अरु जनता तुमे दूद्वो छो महाराज अम आहूं कूत्रासता सिरे नहीं है काज ॥ ५॥ पृ. ६४ ॥ ढाल अठावीसमी ॥ सकल गुण पूरो एतो साचनो शूरो नृपचंदजी ।। ए देशी ॥ मुलक बोलो बाले सरू । वालिम मोरा । कीजे मोय निहाल हो । करुणा केरा सायरू । वा ०। कर करुणा कृपाल हो ॥ १ ॥ सकल गुण पूरा थे तो मत होवो दूरा । जीवन जंबूनी । अांकडी । हम तल्फां सत्कार । कू० वा० । माछली जिम विण नीर हो । जीले दिलासा नेह सूं । वा० । ओलख हमची पीर हो । स० १॥ सहज मिली तज संपदा । वा० । दुख गई सुख कं चाहात हो । केहरनी जिम डाढरो । बा । मांस सिचाणो खात हो । स० २॥ एही न्याय हिव सांभलो । वा० । साहसवंत सधीर हो । अटवी एक माहे हुँती । वा० गिरी गुफा गंभीर हो । स० ३॥ मृगपति रहितो तिण वने । वा०। हिरणादिक हणखाय हो । निज स्थानक मुख वाहे के । वा० | निद्रावश ते थाय हों। स०४॥ मृवो कलेवर देखने । वा० । पंखी वहु लुभात हो। ढाल Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण रन माला पृ.६५ भक्षण करने सता बसू । वा० । उदर भर उडजात हो ॥ स० ५॥ एक सिंचाणो रस गृद्धियो । वा. सिंह | | मुख मांस लुभाय हो । चूंच दई तिहां जायन । वा० । वरज्यो नही रहाय हो ॥ स०६॥ वन राजा अंग | मोडने । वा० । मेल्या होठ कपाट हो । माहि र ह्या मृत्यु लही । वा० । लोभ्यांरा एह घाट हो ॥ स०७ ।। एम विचारो चित्तमें । वा० । आमिष सम अम जान हो । संजम सिंहरा मुख में । बा० । अमरापद पहिचान हो ॥ स. ८॥ श्राद ही भामण आपरी । वाक रहस्यां दास समान हो । हुकम उठास्यां निस दिने । वा० । राख हमारो मान हो । स०६॥ दिल जानी दिल सोचीये । बा। दिलरा दरद पिछाण हो । अति ताणी तूटे सही। वा० । आप अलोबो हो जाण हो । स० १० ॥ मत धड़कावो कालजो । बा० । रह बाया उनमाद हो । भय उपजावण फल तणो । वा० । जाणीए कटुक सवाद हो ॥ स० ११ ॥ आशा अलुधी त्याग सो। वारा होईने हेरान हो । प्राण थासे हम पाहुणा । वा० जाणो एम निदान हो ।स०१२॥ सरणा गत नीवाजिए । वा० । उत्तम जन आचार हो । महंत पुरुष तुम सारिखा । वा० । अबला कहावे नार हो । स० १३ ॥ ढाल भणी अठावीसमी । वा० । रचिया अनेक फिरंद हो । जंबू मनन ले पावही । | ढाल । बा० । ज्युं जलमें अरविंद हो ॥ स० १४ ॥ ॥ दोहा ॥ तीर्थकर तोरे पिया जाणे आयु प्रमाण । भोग कर्म रोपे चलख । कधिो हुतो निदान - || ॥१॥ खबर नही मोने सही किस दिन होगा कुंच । काम कीच अध वीच ही काहा करूं ईखूच.॥२॥ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . रख | सिंह थकी तो जे डरे । तिन कू प्यारे प्राण । जिन कू भय नहीं होत हो। रखे मुष्ट में जान ॥ ३ ॥ पोच गुण विचारयां विन धस्यो । पायो मृत्यु सिचाण । सोच शक्ति अपणी करे । चढे काज निरवाण ॥४॥ सजम के हर मुख थकी लेऊं शिव सुख स्वाद । हरगिज हूं मानूं नहीं न करूं क्षण परमाद ॥ ५॥ गंचा नही माला तुम रूप सूं जाचां श्री अरिहंत । काचा तुमचा भूरणा । साचा सुधर्म संत ॥ ६॥स्वारथ केरी यारियां। जग जनरी पहिचान करी परीक्षा जुई जुई सुबुद्धि नाम प्रधान ॥ ७ ॥ पृ.६६ ॥ ढाल गुणतीसमी ॥ हे पीउ पंथिडा ॥ एदेशी ॥ हे सुण वनिताजी । उदे हुवे जदि कर्म जो आडो तो नहीं कोई दीसे। श्रावतो रे लो० हे. । एक सखाही धर्म जो । काल बाजथी जीव चिडा छुडावतोरे लो॥१॥ हे ० । सुग्रीव नामा ग्राम जो । जित शत्रु राजा राज करे रलियामणोरे लो। हे० । मंत्री सुबुद्धि नाम जो। चारुं बुद्धि निधान नृपत रिंझावणारे लो ॥२॥ हे० । भायेला तमु तीनजो नित पर्वने तीजो सगपण जुहारनेरे लो। पोषे प्रेम प्रवीणजो । खान पान मनुहार करे । बहु यारनोरे लो ॥३॥ हे । नितयानी एह रीतजो। राखे पाश हुलाश सदा ते सासतो रे लो। हे० | क्षण २ करतो प्रीतजो। शब्द रूप रस स्पर्श सुगंध सुवासतो रेलो ॥ ४ ॥ हे० । परब दिवसरो मित जो बार तिवार । विचार नीत जिमावतो रे लो। हे० । हरतो जिणरी चिंतजो । सार संभाल विशाल करी सुख पावतो रे लो ॥ ५ ॥ हे० । करतो लटक जुहारजो । सहज मिल्यो सुख साता पूछे भावसुं रे लो। हे | त्रिहुं तो एह विचारजो । खोज्यो राजा एक दिन पिशुन बहकावसुंरे लो ढाल Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण माला ॥६॥हे । सरणा करे हेतजो। प्रथम मित्र रे डेरे चाल्यो चुप मुं रे लो । हे० । कीधो ते संकेतजो।। आयो ढुं हूं। हिवडा डरतो भूप सुंरे लो॥७॥ हे । खोल्या नहीं कपाट जो। परोजारे पापी इहां मती रहे रे लो। हे । निहतर मारु भाट जो । तुझ राख्या थी हुवे खालसे मुझ ग्रहे रे लो॥ ८॥ हे । नयण भरायो नीरजो । रे निज सेनही विपत पड्यां इसडी कहे रेलो। हे० । उपनी नहीं तसु पीरजो । क्षण नहीं राखू इहां थकी मार्ग रहे रेलो॥ ॥ हे ० । दूजा दोसत गेह जो। हाक दई तब ते सुण हेठे आवियो रे लो हे । बोल्या मुख स सनेह जो । काम पधारया आज काज फरमावि रेलो ॥ १० ॥ ६० । मांड कही सब बात जो । हे भाई मझ मांही पडी इम आपदा रे लो । हे० । सुण प्यारा जी । गुणो नहीं तिलमातजो । पिण राजेश्वर होवे कच्चा कानदा. रे लो । हे० प्या० ॥ ११ ॥ म्हारी नहीं ए शक्ति जो । राजन अक्षा भंग करी कुण राखचे रे लो । हे० । ब० । एती कोधी भक्त जो । खर्ची दे पोचावी मीठो भाषवे रे लो । हे० । ब० । त्रितिय मिलापी द्वार जो अवी ने दरसाची पूरव वातडी रे लो । हे० । प्या० । मिलियो बांह पसार जो । धन्य भाग मुझ इहां रहो दिन रातडी रे लो ॥ ११ ॥ हे० । ब० जीमाया चिहुं आहार जो । दिवी दिलाशा देख हिवे । मैं काह करुं रे लो । हे० | प्या० । जाईने दरवार जो। साम दाम समझावी । संघलो भए हरूं रे लो। हे० । ब ॥ १२ ॥ सूतो इक पर्यंक जो । खबर हुई रवी ऊगां राय बुलावियो रे लो॥हे. ब० १३ हाजर हुवो निशंकजो । भूपत भेटी जुगत करी बतलावियो रे लो ॥ १४ ॥ हे । ब० ॥ छेचो शीघ्र संदेहजो।। ढाल २६ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के थई मन रंजित तुरत तिणे तडावियो रे लो। हे ० । व० । खातरी कीधी एह जो। काम करो धस धूरी कुरव ।। वधावियो रेलो ॥ १५ ॥ हे० ब० । कियो इसो उपकारजो । दिव रात्री मुख न्यारी। अविचल तिण भणी रे लो । हे० । ब० । समजो गुझ बिचारजो । आश्चर्य कारी भारी सांभल पदमणी रेलो ॥ १६ ॥ हे० ब० । माल काल महिपत जानजो । त्रिहुं लोक में धाक जिनुकी पडे रही रेलो । हे० ब०। जगत जीव परधान जो। देही पर जन साधू । ए त्रिहुं मिते सही रे लो ॥ १७ ॥ हे ० ब० । पुदगल चुगलरे कहेणजो। भ्रांत पडी तब श्राऊ महीपत कोपियो रेलो । हे० । ब० । जरा जोग तन देणजो। हुई उतपत सब काण मुलाजो लोपियो रेलो । हे० ब० ॥ १८ ॥ पहिलो मित्त शरीर जो । किया जतन अति आछा माल खवाविया रे लो । हे० ब० । साल दाल घृत क्षीरजो। पकवानादिक पोषी पाप वधावियो रे लो ॥ १६॥ हे०व०। ऐसो निगुण निठोर जो । सारा पहिली जाब दियो कृतघ्न एहरे लो । हे० । ब० । कांही न चाले जोरजो । थित पूगांथी राखे नही क्षिण तन्न एरे लो ॥ २० हे. व०॥ मात पिता मुत वीरजो । भुवा भाणजा स्त्री आदिक नातियारे लो । हे० ब० । औपे भोजन चीरजो। दुतिए हीतुरी सार करे बहु भांतियारे लो ॥ २१ हे० ब० ॥ तिणरी ए बरदासजो। व० खपयाणे पूंजी पुन्यदिरावतार लो। हे० ब० | जीता दे विश्वासजो। पीछेरो कर मर घट तक पोंचावतारे लो०॥ २२ हे. ब० ॥तीजा संत सुजाणजो । पुरसत पायां जाय कदापि जुहार तोरे लो । हे०प० । वदतो कोमल बाणजो। सुख समाध पूछीने सेवा सारतोरे लो ॥ २३ हे. ब. कष्ट Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंबु | पड्यां दे सरणजो मेट काल की भ्रांत अचल पद अापतारे लो । हे० ब० । जड चेतन भिन वर्णजो । चित्त समाधि उप जाय कियो निर्माप तारे लो ॥ हे० ब० २४ ॥ झूठा मोहना फंदजो । हस्ताम्बल ज्युं जगत् रुप देखीवियोरे लो ॥ हे०व० ॥ मन आणो आनंदजो । साचा सज्जन सेती साता पाबियोरे लो ॥ हे. व० २५ ॥ गुणती समय ढालजो जंबूजी पर चावी सप्तमी पद्मणीरे लो। हे. व० । कथा करी सुरशालजो । अति मुख दायी भविजन मन भणीरेल। ॥ हे ० व० २६ ॥ ॥दोहा ॥ कर जोरी गौरी तदा । अष्टमी कर प्रणाम । वीनती भरतार सुं जीत सिरी अभि राम ॥ १ ॥ इम किम पीऊडा परिहरी । हम लागी तुम साथ । मार्ग वह तीछां नही । लाया छो ग्रहि हाथ ॥ २ ॥ सुख तज दुख • आदरो । किसुं विमास्यो स्वःम । अबला अदविच मूकता । थास्यो जग बदनाम ॥ ३ ॥ लोकोत्तर सुधरे तदा आछो कहे लौकीक । आप सभी विध जाणता । किसी दीजीए सीक ॥४॥ ॥ ढाल तीसमी॥ कांईक ल्योजी हे ल्याजी ३ महावीरस्वामी काईक ल्योजी हेनाजी ३ जंबूजी साहिब तजिये नाजी ॥ आंकडी ॥ सुसराजी घर एक दीवलो। तुम विण तिमिर प्रचूर । वृद्ध अवस्था | छेह दिखलावो । कौण मनोरथ पूरे ।। त० २ ॥ हेत जुगत में लीने दाख्यो । रूढी बुद्ध उत्पाते । ब्राह्मण || ढाल Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत माल पृ.७० पुत्री राम भोलव्यो । जेम वणाची वातें ॥ त० ३ ॥ जंबूद्वीप ना भरत में | श्रीपुर पृथ्वी टीको । काव्य || कथा कविता नो रसीयो । श्रीसार नृप नीको ।। त०४॥ वारो वांधो नगर लोकनो । एम दियो आदेशे। कहो वारता नवली हमने । घरपत आय हमेशे ॥ त० ५॥एक दिन मुग्ध विप्रनो वारो । वात न आवे बारू । तसु कन्या कहे तात न डरिये । हूं जाय भूप जूहारू ॥ त० ६ ॥ एम कहीने डोढी आई । राज सभारे वीचो। करी सन्मान लटक ने बोला अंग नमावी नीचो !! त०७॥ हुकम हुवांथी कहिवा लागी । कल्पित बात बणाई । आम खास विच सुने सकल जन । एकाग्र चित्त लाई ॥ त० ८॥ स्वामी सांभल मात पिता मुझ । देखीने वर जोरी । यौवन वय प्राप्त भई जाणी । करी सगाई मोरी ॥ त०६॥ हुवा बधावा दोय घरा में। आनंद सुं दिन जाई । एक दिवस मुझ वर मुझ देखण | हम घर निकस्यो आई । त० १० ।। होण पदार्थ उण बेला में । अवर नतीजो कोई । पत जीमावा आहर निपावा । कीधी ताम रसोई ॥ त० ११॥ भोजन करके वात करतां । उपनो अंग विकारो । प्रार्थना मोसुं तव कीधी। मानी नहीं जिवारो ॥ त०१२॥ उदर मूल प्रकटयो तिण अवसर । वेदन थई असरालो । तडफडतां क्षिण ए करे । अंतकाल करयो तत्कालो ॥त. १३ ॥ भय पामी मैं खाड खणीने । गाड्यो उवर माई । लीप लीपणो करी बरोबर । तेडयांथी इहां आई ॥ त० १४ ॥ सांच कही किं वारे झूठी । भाषो जिम छे तेम । जाणो एक प्रभु नही जाणता । पहिले दाखो एमे ॥ त० १५ ॥ जाणता तो किम पूछता । आ दलील किण कामे । नवी बात संभलावी स्वामी । ढाल Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबु रत्न दीजे, मोयं इनामे ॥ त० १६ ॥ अाश्चर्य भूत साल जन हूवो । देखीने चतुराई । रंजीपुर पति माल दियो । बहु । वारो माफ करावी ॥ त० १७॥ इण उतपाते राजन् छलियो । तिम तुम हम.सूं करता । पिण | वियोगरी बात सुणतां । नेणां झरणा करता ॥ त०१८॥ अणुकंपा घट रंच न आती । सहुने करत उदासे। माला | भली दया प्रगमी तुम हृदे । द्यां सो सो साबासे ॥ त० १६ ॥ विण अवगुण अवगणता हमने । करता अधिक निराशो । फेटि पकडसां प्राण दिरासो । देखा क्यंकर जाशो ॥ त० २० ॥ अर्द्ध अंगरी मालिक अस्त्री । प्रकट जगत् ओ वखाणो । थारोही करियो किण विध होशे । न्यायरी रीत पिछाणो ॥त० २१ ॥ सुंदर मंदिर सुंदर सुंदर । सुंदर तेज विछाए । सुंदर बोले अमृत तोले । एक न आवे दाए ॥ त० २२ ॥ ढाल तीसमी इण पर दाखी । बाध इने हरि डोरे। पिण जंबूजी सिंघ सलूणा । कमल नु ज्यु तोरे॥त २३० ॥ ॥दोहा॥ श्रवण करी खाविंद कहे। हो मोह अंध अजाण । हेत तणा दे भेद है न्याय अन्याय छाण ॥१॥ तुम को हेत सहु दाखिया । हूं नाख्यो सुध न्याय । निपक्ष दृष्ट अवलोकता । ज्यूंकी सुंदर साय ॥ २ ॥ दुखी होय जदि जीबडो करतो इसा विचार । इस पेंडे फिर नही लगू । ज्यो छूटूं इणवार ॥ ढाल ३॥ व्या उण ही मार्ग चले चलावे जेह । पडतो दुःख खजान में । भोगे कृत निज देह ॥ ४ ॥ विषहि सेठ | रो डीकरो । नाम तसु ललि तंग । पाखाने पड दुख सह्या । कर राणीरो संग ॥५॥ J ॥ ढाल इकतीसमी ॥ जीवे हो जीवे वीरवालहो । एदेशी ॥ चेतो हो चेतो पानी बेगसुंरे । । Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण माला बाहिर होत संसार रे । चलता रे चलता । मुकाम रो वास एहरे । मनुष्य जन्म विणे जाररे ॥ चे०१॥ पुदग लरे पुदगल सुख स्थिर नहीं रहेरे । ज्यु कुंजर रो कानरे । देवलरे देवलके तूनी परेरे । रंग पतंग समान रे। चे०२॥ सेत झरे सेत बिन्दू मीठो सहीरे । लग्यो धारा के पानरे । चाटत रे चाटत फाटन जीभडीरे । पीड करत हेरान रे ॥ चे० ३॥ अल्प झरे अल्प सुख दुख बहु पडेरे । नारी रे पर संग रे ॥गंध रे दुर्गध स्थानक भोगव्योरे। सेठ जनुज ललि तंगरे ॥ चे० ४ ॥ कृपारे कृपाकरी फुर माविये रे । केम थंई यह वातरे । सुणारे सुणतूं भोगोरी बंछकारे । इम जीवडो दुख पातरे ॥ चे. ५॥ जंबुरे जंबु द्वीपरा भरत में रे । पुरव संत इक ग्रामरे । राजा रे राजा सत प्रभ मोमिट कोरे । रूपवती त्रीया नामरे ॥ चे०६॥ राणी रे राणीते कामातुरी रे । गृद्ध भोगारे मायरे । एक दिन रे इक दिन छे बैठी गोखडेरे । कामी जनरी चाहिरे॥ चे० ७॥ तेहिजरे तेहिज सेठरो नंदनोरे । यौवन रूप विशेषरे । अश्वजर अश्वचढी आय नीकस्योरे । सामोही तसु देखरे ॥चे०६॥काछजरेकाछ दृढ हूंता नही।मानीवात ललि तंगरे । गदभरे गदेभ मुख चाढ्यो कुतेरे । किणने भेजिए गंगरे । चे० १०॥ इतले रे इतले धराधिप आगयो रे । भय व्याकुल दोई थायरे । थरहरेरे थरहर कं- ढाल पे देहडीरे । अबकिम प्राण बचायर ॥चे० ११॥ कुबद जरे कुबद केलन्टय अंगनारे । चालहूं तुझ यू छिपारे। झाली रे झाली हाथ अलिंग मेरे । नायो सिंडास रेमायो॥ चे०१२॥ ऊर्द्ध रे ऊर्धज पाव । अरू मुख अधोरे। | लटके बागल जेमरे । दुखितरे दुखित थई इम चिंतवेरे । निकमंतोन करूं प्रेमरे ॥चे०१३॥ नासारे नासा। Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जब डांडी पेद्वे वहेरे। लघु अनेवडी नीतरे। थालझरे थाल ओठना नाखियेरे । सोरस आहारे कुरीतरे॥०१४॥ मास || गुण जरे मास सवा नव त्यां रह्योरे। प्राइ ऋतु वरसातरे। वारिरे वारी जोरे वह नीकस्योरे। आमिष पिंड सोगातरे । रत्र । चे०१५॥ तात जरे तात खबर लही ले गयोरे । रुई पलेट्यो अंगरे। जतन जरे जतन जावता बहु कियारे । नवा माला जन्मरो ढंगरे ॥ चे १६ ॥ साजोरे साजो थयो चिरकालमेंरे । तिम ही फेरे तो खाररे । पुनरपिरे पुनरपि तेडे पटरानीरे । जायक नही कहो नाररे॥चे०१७॥ कंथारे कथा फिर किम जाई येरे। जाय सो मुर्ख कहायरे। इमहि जरे इमाहिज समझो सुंदरीरे धीरज मन में लायरे॥चे०१८ ॥ जीव जरे व कंवर ललि तंग सारे । काल त्रैलोक नो रायर । विषियारे विषिया राणी तेहनीरे । कुमत चेडी भिजवायर ॥ चे० १६ ॥ मंदिररे मंदिर मनुष्य गति मधेरे। बोलाव्यो ललचायरे। आव्योरे आव्यो कृतांत महीपतीरे। कंपण जागी कायरे ॥ चे २०॥ भृष्टारे भृष्टा राम कान मेंरे । पडियो जनिता कुखरे । ऊठज रे ऊंठ माताजीनो रस लियोरे। तेह थी मीठी भूखरे ॥ चे० २१ ॥ प्रांणजरे प्राण डांडी में द्वे वह्योरे। अम्मानो मल मूत्ररे । गर्भज रे गर्भ थिति इम भोगवी रे । पुण्य वृषा थयो पुत्ररे । चे० २२ ॥ गुरुजनरे गुरुजन करी प्रति पालणारे । कीधो मुझ हुसियाररे । | ढाल बहळूरे वह• कदापि हूं नहीरे । एहसु धर्म उपकाररे ॥ चे० २३ काचार काचा सुखारे कारणेरे । मानवनो अवताररे । चिंतारे चिंतामणि किम हारियेरे । सोचो चित मझाररे ॥ चे० २३ ॥ ढालज रे ढाल भणी इकतीसमीरे । जंबु कह्यो दृष्टांतरे । कायलरे कायल जीत सिरी हुईरे । बैदी जाय एकांतरे ॥ चे० २५ ॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जबू गुण रत्र ॥ ॥दोहा ॥ आपस में बाढूं बहन मसलत करती एम । लग्यो उपाय न एक ही अब कहो कीजे केम ॥१॥ अट्ठी मिंजा रंग रही धर्म मजीठी रंग । कोटि कलाप कियां थका ए नहीं करता संग ॥२॥ हिव आपां सब एकठी होय करां समजास । ज्यों मानो तो मानि है नहीं तर जांग्रह वास ॥ ३ ॥ इसडी सल्हाह विचार के ऊभी आय हजूर । जराक झांको नाथजी । ज्यूं विकसे हम नूर ॥ ४ ॥ हम हारी जीता तुम्हें । था पिउडा अनुकूल । चात्रक नीर घररी परे । कीजे अर्ज कबूल ॥ ५॥ ॥ढाल बत्तीसमी ॥ आठ कुना नव वावडी पणिहारी हे । एदेसी। सर्व मिली इम वीन वे । माणे श्वरजी हम लागी तुम लारहा लाजो । किस के भरोसे छोडता | प्राणे० ग्रह मत तजो निराधार ॥ वा० १॥ श्रादर दीजे लीजिये प्राणेश्व० । पकड हाथ पर्यक । वा० । नांतर में तजस्यां सही । प्रा० । मर्यादा निसंक ॥ वा० २ ॥ सुगण सलूणा साहिबा । प्रा० । आप पुरंड समान । वा० हम आठों रंभा जैसी प्रा० । भोग वो भोग प्रधान ॥ वा० ३ ॥ आदूं २ क्या करो मोह मातीए । आठ कर्म दुख दाय कामण जो । आयूँ कर्म खवारी करे । मो० । आठ न नाम सुहाय ॥ का० ४ ॥ विष मिश्रित पकवान रो। मो० । ज्ञाता भेद लहाय || ढाल ३२. । का० । हरमंज सेवन नहीं करे । मो० । मेठाये ललचाय ॥ का० ५॥ मेण दांत लोहो का चिंणा । प्रा०। कैसे कवि ननचाय । वा० । कोमल तनु माखण जिसो । मा० । केम परिसा सहाय ॥ वा० ६ ॥ इहां सुख सेजा पाथरी । प्राः । उहां कंठाली भूम | बा० । इहां खस खाने पोढता । प्रा० | उहां अगन झालसी || Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हम ॥ वा०७॥ इहां सीखं दुशाला ओढता । प्रा० । वहां मेला बोदा चीर । वा० । इहां गम हमा में सोवो जंबु । प्रा० । उहां नदीयानी तीर । ॥ वा०८ ॥ इहां चंदन विलेप वो । प्रा० । उहां मेल प्रसेवो गात । वा० । गुण रख | इहां लहर बरसातरी । प्रा० । उहां मच्छर चटकात ।। वा० ९॥ इहां थाल कचोला रत्र ना । प्रा० । उहां माला तूंबा काष्टना पात्र । वा० । इहां खमा खमा सघला करे । प्रा०। उहां कोय न राखे खात्र ॥ वा. १०॥ इहां वचन मीठा चवे प्राणश्वरजी । उहां गाली तूंकार । वा० । इहां आपणे छदे चालवो प्रा० । उहां पृ. ७ ॥ गुरु आज्ञा धार ॥ वा० ११ ॥ इहां भोजन मन भावता । प्रा० । उहां लूखा सूका टूक । वा०। सो भी मिले वा ना मिले । प्रा० । काढणी जीवणी भूक ।। वा १२ ॥ इहां गज वाजी पालकी । प्रा० । उहां उभराणे पाव । वा० सदा काल तिहां विचरणो । प्रा० । खेद खंत तनु भाय। बा०१३ ॥ बाइस परिषह आकरा पा। सहिवा मुसकिल होय । बा० | कहां लो वरनन कीजिये । प्रा० । फेर उपाय न कोय ॥ वा० १४॥ रेरेभोली भामिनी । मो० । भोग्या दुःख अनंत । का० । नरक निगोदनी वेदना । मो० । फुरमावी भगवंत H॥का० १५॥ कुंभी कुंड ज्युं सांवली । मो० । वेतरणी दुख दाय । का० । शीत उष्ण खुदा तृषा । मो० । || अनंत गुणी कहवाय ॥ का०१६॥ एकण दबके नाडने । मो० । साढी सतरा वार । का० । जन्म अरु मरण निगोदमें । मो० । अनंत काल विस्तार ॥ का० १७॥ रोम२ चांपा करी । मो० । सूई सारही लाय । का। चोहटडे मूके जई । मो० । कोइक सजायो बाल ॥ का० १८ ॥ अष्ट गुणी गर्भा वासमें । मो० । कोर गुणे || ढाल Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबु माला ॥ का ..| जन्मन्त । का० । कोडा कोड मरतां सही । मो० । बेदन जीव भोगत ॥ का० १६ ॥ जन्म जरा मरण तणो || । मो०। कष्ट महा विकराल ! का०। काल अनाद सुं भोगव्यो । मो० । कर्म की दुर्जय चाल ।का० २०॥ संजम सर समता भरथो । मो० । झूलत मोज अपार । का०। शूरा ने सुख दायकू । मो० । कायर ने दुखकार । का० २१ ॥ थोडा जीतब कारणे। मो०। मनुष्य जन्म मत हार । का। टल से सब दुख ताहरा । मो० आजावो हमची लार ॥ का० २२ ॥ नेम नाथरा जल परे । मो०। अबिचल कीजे साथ । का। ओप वधे पृ.७६ बहु लोक में । मो० । निवडै ग्रह्याकी हाथ ॥ का० २३॥ ज्यां साची छै प्रीत जी । मो० । ढील न करो अब रंच । का० । ज्योढ बला मुतलब तणा । मो०। तोहिव में करो खंच ॥ का० २४ ॥ ढाल भी बत्तीसमी। मो० । जंबू तूंबा समान । का० । आप त्तिरे पर तारवे । मो० । मेटया तिमिर ज्यूं भान ॥ का० २५ ॥ ॥दोहा ॥ परम ज्ञान जलधार मं धुप्यो दुरति दुख देन । प्रकटी चेतन शक्तदी खुल्या अभ्यंतर नैन ॥ १ ॥ सब भामिनी मिल इम कहे भली विचारी नाथ । तुम सरीसा खांविद मिल्या ति हाथ ॥ २॥ चरण शीष धर वीनवे धामी विषय उपाध । मोह वावली थायने । खमजे सो अपराध ॥ ३ ॥ धनि है भाग हमारडा। मिल्या आप भरतार। और पति जग डोवडा तुमको तारण हार ॥ ४॥ देरन कीजे लीजिये जल्दी संजम भार। खिदमन में हाजिर अछां । कंथ तिहारी लार ॥ ५ ॥ ॥ ढाल तेतीसवी ॥ देशी रास की अंजणा की चाल ॥ ऐतले दिन माण ऊगियो। नाशियो || Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्न माला .. || तिमिर ने हुयो उजासक । मात पिता उठ प्राविया । कुल वधू कुल दीपक पासक । चित्र लिखित सम | देखिया । ऊपन आश्चर्य मन में विमाशक । आलस अंग निवारिए । स्नान मंजन करो हर्ष हुलास क । गुण भूषण वस्त्र अलंकिए। करो तुम भोजन मीठडा गाशक । चालिये फेर बाजार में | विणज करो जोडिए धन तणी राशक । इम फुरमावियो तातजी ॥१॥ एहवा वचन श्रवणे सुणी। बोलिया तव श्री जंबू ...|| कुमारक । कामन माहरे आथ सू । चालवो नहीं मुझ नेजी बाजारक । जगतना धंधा सब कारमा । कारमो जौवन धनरू परवारक । अविचल धर्म जिणराजनो । सेव्यां सुं होय जावे तुर्त अधारक । स्वार्थना सब को सगा। विण स्वार्थ नहीं कोईकरे सारक । पंछी बैठे हरय। तरु ऊपरे । उडजावे सुका मुं न रहे क्षिण बारक । श्री गुरुदेव चेतावियो। सांच छै इम नही झूठ लिगारक । जाण रइ खोटो किम खाइये । पार खुरो नही एह प्राचारक। कंवरजी उत्तर इम दाखियो॥२॥ श्रवण पुट खुल्या एहवा बाक्य सुण । कुमरयां का मात पिता बुलवायक । अष्टादश मिल मशलत करी । पुत्र पुत्र्यांपते इम समझायक। छांडता । नेकहू लाजन बालुडा अायक । किया वडा कर पालणा । जावोछो आज दिवस छटकायक। उत्तमनी नही रीतडी । क्षणिक वियोग हमसे न खमायक | सुर २ सहू मरजावस्यां। थोडीतो मन अणु कंपावी लायक । आज्ञा बिन किंण जावस्यो । भलाइ देजावो हम छातीपे पांयक ॥ ओप जग में वधारिये । नयणां मांसु अति नीर झरायक । इम कडे तात समायजी ॥३॥ बैरागी बना फिर उपदिशे। तुमतो बंध्या ढाल ३३ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृ.७८ सब मोहने तक । मात पिता जग जीवडा । जेताई हुवा । इम कहयो अरिहंतक । कुण २ ने हित्र रोइये दुखकार कुटुम्बरी प्रति एकंतक । सरण राखण जगको नही । अशुभ उदय आया नयण भरतक । थित पूगां उठ चालणे | रेहजासी सघला ई सयण रोवंतक । गर्ज सरे नही एकसूं । काल केहरी जीव मृगन माला छोडतक । सरण लेस्यूं जिनराजनो । तारसे सही मोने सुधर्म संतक । आपभी एहीज कीजिये ॥ ४ ॥ काल रो चक्र अरहट भमे । साठ घटी जाणो घट तरणी मालक । आउवारीने उलीचतां । चंद्र सूर्य दोय वृषभर सालक । रात दिवस भमता रहे। भव रूप जल खुटजासी तत्कालक । चऊं गत हूडी कुवासमी । एक सुख वे एक माहे फिर डालक । जाण कढाले बैठिया । कर्म कर रह्या मानो गोरख जंजालक । इणने हटाया सुं शिवगती । सिद्धा में नही चाले इण तणी चालक । ख्याल देखे सब लोकरो । जन्म मरण भय दिया सहु टालक | हूंबी उमायो उण ठामकूं । पापस्यू सही पंचमहाव्रत पालक । श्री जिण आण आगधिए ॥ ५ ॥ जसाने भगु पिरोथजी । पुत्रां सुं कीधो तेतो सांचल प्रतिक । तिमी करो सब आपढी । जग माहे होसे थारी चोगणी कीर्तक ॥ सुखिया होस्यो परलोक में । कर्मरी फोज ल्यो जल्दी सुं जीतक । चरण भेटो गण धारना | दुःख हरण जाणो सत गुरु मीतक । और जगत सब मुतलवी । मुतलब सरीयां सुं करत कुरतिक गाफिल रहे सो ठिगाइये । चेतसी सोई नर परम पुनीतक । पापी से कुछही बणे नहीं । करणी करो जामू निर्मल चीतक | मानव भव सफलो करो । पाप पुंज जासे तुर्तही वीतक । अचल गति थेइज पावस्यो ॥ ६॥ 1 अंबु ཟླཝིཊྛཱ , गुण रख ढाल ३३ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबु माला पृ.७१ जनक जनता सब समाझिया । पुत्र जामतूं गुरांतणी ठामक । बलिहारी ताहरी बुद्धिकी। किहांलो वरनन कांजे गुण धामक । तुम बिन रहिकर घर विषे । नाहिं गुमावा हम तणी मांमक । सर्व अलूणो बेटा तुम बिना । तुम विन सबही काम निकामक | हमही उधारस्यां आत्मा । डूबिए किम तुम सा शुभ पामक । लेसां चारित्र सम चूप मुं । एम मतो कर लीधो छै तामक । ढाल एह भणी तेतीसमी । पातक भाजे लेतां । इण तणा नामक । भविजन नित्य गुणं गाइये । पर उपकारी श्री जंबुजी सामक । आज दिवस आगम कहे ॥७॥ ॥दोहा॥ एह रचना प्रभवो लखी । उपज्यो धर्म वैराग । पांच सयासु आयके । भेटयो नृप महा भाग ॥१॥ स्वामी देश तुमारडे । लियो अदत्त हूं दान । शीघ्र संभाली लीजिये। पायो धर्म निधान ॥२॥ कौणके कहे पल्ली पती । किम तूं ज्ञान लहाय । जंबू जीरी वारता दीवी सफल सुणाय ॥ ३ ॥ फिर बोल्यो चंपापति निर्भय रहो हम पास । मिलसे खरच खजानसूं । सुख सुं कीजे वास ॥ ४ ॥ डर नहीं मान्यो तुम तणो आज जगे महाराज । अबडर लागो कालको तिण सुनं सकुं भाज ॥ ५॥ भक्त करूं जिण राजरी । रक्त रहस्यु धर्म मांही । सक्त फोरवस्युं चरित में | जाली जंव बांहि ॥ ६ ॥ बीजराय उजवालियो । जातिवंत || ढाल कुलवंत । धन २ तूं भल चेतियो । भूपत एम भणंत ॥ ७ ॥ इसो कवण या जगत में | अघविच पडियो नाय । पड चेते मानव जिका । ताळू रंग सवाय ॥ ८ बात बिस्तरी शहर में । जंबू जोग लहाय । प्रभ बादिक प्रति बोधिया । लोक बदे इम बाय ॥६॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबू गुण रख माल पृ. ८० ॥ ढाल चोतासमी ॥ धन प्रभु रामजी धन परणामजी । ऐ देशी ।। धन जंबू सामजी । धन पर णामजी । धन संच्या धन वंसवे । धन तुझ तातजी । धन तुझ मातजी । इम लोग करे परसंसवे ॥ ध० १ ॥ हवी महिमां श्रवणे सुरण के । राजन चिंते मन्नवे । एवो जौवन एहवी संपद । छांडे छे ए धन्नवे ॥ ४०२ ॥ इसा पुरुसांरो दरसण कीजे । इम सोची असवार बे । सेठ ग्रहे तेह तत क्षिण आव्या । दीठो कंवर दीदार वे ॥ ध० ३ || हर्ष वदन होई इण पर बोले । किम ल्योको संजम भारवे । छांय हमारी बसिये सुखसुं । भोगवो भोग उदार वे ॥ ध० ४ ॥ स्वामी किहां छै सुख जगत में । काल सुं नहीं माहरे प्रीत वे । किस के भरोसे प्रभुजी दाखो | रहणो दोय न चिंतवे ॥ ध० ५ ॥ राखणरीजो सामर्थ्य होवे । तो राखीजे मोय ब एह शक्ति नहीं इन्द्र नरेन्द्र की । कीजे जिम सुख होयवे ॥ घ० ६ ॥ पांच से सत्ताईसें सघला । हुवा संजम कुं तैयार थे । बोहत जलू सवणौवी आया । गणधर रे दरवारबे ॥ घ० ७ ॥ कंचल डोडा आकार कियाकर। पांच अंग नमायवे । आगल ऊभा बिनवे गुरांसे । तारीजे कृपा करायवे ॥ ध० ८ ॥ बीहना भगवंत भव में भ्रमण सुं । अलीता पलीता लोकवे । लाग रह्या जगवासी जीवारे । हरिए एहें हम शोकवे ॥ ध० ६ ॥ करी दिश उत्तर पूर्व बिच । जाइने लोच्या केशवे । वस्त्र अलंकार दूर करीने । पहिरया साधुजीरा वेश बे ।। ध० १० ॥ फिर आवी चरण। घर मस्तके | वंदना करे वारंवारवे । श्री मुख सुं धर्म व्रत उचराव्या । कीधा सहू अंगीकारवे ॥ ध० ११ || गणधरसा व्रत देवणहारा । जंबू साहुबा अणगारबे | कौणक सा उत्स ढाल ३४ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ བྷྲ ལྤ ཝཱ ྂ पृ. ८१ करणहारा । कहांला कीजे विस्तारवे ॥ ध० १२ ॥ लोक सकल तब हुवा बिसर्जन । पोंता निज २ गेहवे । शिक्षा सिखाने गुरुवर आपे । जंबु आदश सनेहवे ॥ घ० १३ ॥ पांच महाव्रत निरतिचारे | पंचेन्द्री वश तय । चार कषाय न करवो कदापि । नव वाड शील पलायवे ।। ध० १४ ॥ सुवचन कुवचन सम परिमे । सहणी क्षमा कर घालवे । जड चेतनरो भेद समझने । रहरणो वैराग में लालरे । ध० १५ ॥ भाव करण जोतिनुं सच्चा । मन वचकाया शुभ धारवे । ज्ञान दर्शन चारित्र संपन्ने । ए तीनुं ही सुखकारवे ॥ ध० १६ ॥ शीतादिक वेदन समभावे । सहिकर करज' चुकायवे । मरण उपसर्ग सु नहीं डरणो । गुण सत्तावीस थायवे ॥ धन० १७ ॥ सांझ सवेरे पडिकमणो । पडिलेहरण बिध सद्धबे । ज्ञान अश्व वढ तप तेगा गहि । करवो करमां सु जुद्धबे ॥ ध० १८ ॥ प्रथम पोरसी करवी सझाय । द्जी मध्ये ध्यान ध्यायवे । तीजी में निरवद्य आहार गवेषण । चोथी में फिर सझायवे ॥ ध० १६ ॥ पांच सुमतने तीन गुपत जुत । करवो नव कल्पी बिहार | ज्ञान गुराये विनय स लेगो । वहणो आज्ञानुसारखे ॥ घ० २० ॥ इत्यादिक दीवी हित शिक्षा | तहत करी हर्षायवे । सर्व मली पद पंकज प्रणमी । लीवी शीप चढायवे ॥ ध० २१ ॥ खप कर आगम ज्ञान सुण्यो बहु । पुदगल सुख सु अलिप्तवे | मांड्यो आतम निर्मल करवा । नानाविध तप दिसवे ॥ ध० २२ ॥ सूत्र तणी रचन कर पूछा । तिण कीधी महाभागवे । पंचम कालरा जीव उधारण । तसु उप कार अथाग बे ।। ध० २३ ।। गुरु अनुमत अनुसार चलता । ध्याता सुकल ध्यानवें । घाति कर्म राहु थया ढाल ३४ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंबु गुण रत्न नाला लगा । प्रकट्यो केवल रवि ज्ञानबे ॥ ध० २४ ॥ लोक अलोकरा भाव सकलही । हस्ताम्बल जिम पाशवे । मार्ग बतावे भवि जीवांने । दे उपदेश उल्हाशत्रे ॥ घ० २५ ।। ढाल भणीए चोतीसमी । श्री जंबू गुण गायबे सब परिवार उधार लियो जिमन । जहाज समाझ निरायवे ।। ध० २६ ॥ ॥ दोहा ॥ सकल मनोरथ सब हुवा। श्री गुरु देव प्रताप । वीर धनुष धर्म कर ग्रह्मा कहा करे रिपु पाप ॥ १ ॥ इम हिज सर्पिणी काल में चतुर्थ आरे अंत ! जंबूजी चरम केवली थया महा गुण वंत || २ ॥ पृ. ८२ ॥ डाल पैंतीसमी ॥ भवियां भक्ति चोखे चित्ते नित जपिये नवकार । एदेशी । परम प्रतापी दंभ उत्थापी सुधम पाट विराज । निज काम सवारया भविजन तारया । जारया कंदर्प राज । बलिहारी उनकी उत्तम मुनी की । नांवलियां निस्तार | समरो भवि नित्ते एकण चित्ते । श्री जंबू अणगार || आं १ ॥ कीरत सब विद्ध । बधइ कला निद्ध । जैसे वृद्ध पावंत ऊगीने ऊगा शिवपुर पूगा। फेर नही आवंत । जिहां सुख अनंतां । का। भगवंता । संसय नही लिगार || स० २ ।। शासन पति सिद्ध केवल लिया । पाछल गौतम स्वामी । द्वादश वर्षे पदवी हर्पे । भोगी अंतर जामी ! निवे वर्षनी आयू वरनी । पोता मुक्त महार ॥ स० ३ ॥ सुधर्म स्वामी केवल पामी शोडश वर्ष परमाण | प्रभु पाट दियावी कर्म निठावी । लीधो पद निर्वाण | सो वर्षानो आयू मानो मुक्त भया भवपार ॥ स० ४ ॥ वरस जु सोला । कंवर किलोला । जंबू ढाल ३५ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ख माला पृ.८३ ग्रह वसाय पीछे लोधा बरते रह्या छमस्थे । वस परस सुखदाय । वर्ष चमाली केवल पाली । असी वर्ष आयु धारं ॥स.५॥ पाट विराज्या प्रभवा छाज्या । श्री जिन धर्म दिपाया बहु कीधी करणी भव भय हरणी । पातक दिया जराय । सहु पामी सद्गत । ऐसा जिन मत । अधम उधारण हार ॥ स० ६॥ मात पित सहु वले आएं बहु । तप जप संजम चाल । आछी गत लाधी आतम साधी। भ्रमण भवंतर टाल । इम धर्म श्रद्धे । निर्मल हृदे । जिनही कुं सुखकार ॥ स०७॥ भली वस्तु संहारे पंचम आरे । काल महातम एह । दस बोल विछेदा । सुणो भवि भेदा । जंबू पाछल जेह । प्रकट प्रमाणे केवल नाणे । वली दर्शन तसु लार ॥स. ८॥ परम अवध जुज्ञाने । मन पर्यव न्याने । आहारीक पुलाक । एह लवधी दोई उपजे न कोई । प्रभु जी इण परभाश । तीन चरता नही अनुसरता । पाछला कोई नर नार ॥ स० ९॥ उप सम खपगो । श्रेण न लगो । जिन कल्पी मुनि राय । तीर्थंकर जोलू | हिव होवे तोलूं । एह दश बोलन थाय । मिथ्यात्व बधाया रत्न विलाया । दुःखम पारो झार ॥ स० १०॥ कथा अभिप्राये जोड कराए । जंबू चरितरी शाख होज्यो मुझ प्रत मिच्छामि दुकृत । न्यूनाधिक जे भाष । बैरागनी भीनी । ढाला कीनी । दुख दुर्गत सब टार ॥ स० ११ ॥ पृथ्वी धर ताते । लक्ष्मी माते । ओश वंश उत्पन्न | जयपुर नो वासी । श्रावक प्रकासी । आनंद जेदूं मन्न । पचती मुंढांलां । अति ही रसालां । कीधी बुद्धि अनुसार ॥ स. १२ ॥ करूं अरदासे । अल्प अभ्यासे । पंडिता कीधी जोड । मुझ कृपा कीजिये सुद्ध लीजिये । न्यो हुवे कोई. खोड । लक्कडरा | ढाल Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबु गुण रल माला पृ. ८४ 1 घोडा वालक दोडा । ति पर एह विचार || स० १३ || अर्थ सुधारी करो विचारी । सागे देसी गाय | बहु महर करीने चित्त धरीने । ज्ञाता इम फुरमाय । निर्जरा थासे । भवि हर्षा से । भव जलरा तिरणार ॥ स० १४ ॥ संवत् उगणीसे ऊपर वीसे । आशाढ पावस ऋतु मास । पख कृष्ण जुं पांचे । प्रेम सुंबांचे । पामे लील विलास | जंबू गुण ग्रामे । कथा अभिरामे । रत्न माल शनीवार ।। स० १५ ।। ॥ कलश सरध वर्णन तीरथ करता दुरित हरता। इंद्र सारे सेव हैं । त्रैलोक्य स्वामी मोक्ष गामी । सोही मोरे देव हैं ।। १ ।। महाव्रतधारी आतमतारी । जीवषद् प्रति पालता । गुरु देव मोटा लियां हुं ओटा । दोष सला टालता ॥ २ ॥ सब जीव रक्षा एह परीक्षा । धर्म जिनकूं जारिणये । जहां होत हिंसा नहीं संसा। धर्म वही पछानिये || ३ || एह तीन रत्ना कीजे जतना । सुद्ध चित सूं धारिये । कहे वक्ता श्रोता । ग्रंथनो सार ए ॥ ४ ॥ सक्न सारूं । त्यागवारूं । करो निज हित आगए । प्रभु सरण लेवो धर्म सेवो | थायसे कल्याणएं ॥ ५ ॥ इति श्री जंबू गुण रत्नमाला संपूर्ण ॥ ढाल ३५ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीवीतरागायनमः ॥ लावणी ठारा नाताकी द्रोण में. कहे जंबू परभवा अष्टादश हुवा नाता । महाराज । एक ही जन्म के मांहीजी । पण कर्म रेख नाटले करे। कोई लाखों चतुराई जी ॥ ढेर | ये मथुरा नगरी में रहती थी वेश्या । म० । नाम कुमेर सेना लेना जान । परवीण कला में रूपवान । है महापाप की खान । केई छैल छबील भोगी भंवर को देखी । म० । नयन का मारे खेची बान | सन धन यौवन ले लूट | मुग्ध जन पडे फांस में अन || शेर ॥ बसंत ऋतु के बीच गणिका सज के तन शृंगार जी । चली रथ में बैठ के गुलसन की देखन बहारजी । सेठ सूत भोगी भंवर रतिपति अनुसारजी । दोस्ती उससे लगी करे काम खुवारजी || छोटी कडी || भोग योग वेश्याने सुता सुत जाया । कुमेरदत्त कुमेरदत्ता ठहराया । वैश्या चिंते इनके पोषन में रहाया || मेरे छूटे रसिले भोग जो पुण्य से पाया || मिलन || हो दयाहीन बालक पेटी में बँध कर | म० दीना यमुना में बहाईजी || पण० १ ।। सोरीपुर घाट पे साहूकार दो उभा । म० पेई को लीनी निकालाजी । फेरदोनों लीना बांट वित्त में हुई खुशाली जी । ये दोनों निज घर भिज नारयां ने सूप्या । म० । किया फेर मोटा पाली जी । आपस में सगाई करी पूर्व ना बात समालीजी । श० । पीठीका मर्दन करी पोसाक तन पे । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सज करे । खावे बंदोरा भूम से छतर चमर सिर पे दुरे । ब्राह्मण वेद उच्चारतां चवरी के बीच फेरा करे | व्याव करके विदनी को वीं लाया निज घरे । छोटा टिकडी भ्राता भगनी को भोगे भेद ना पाया । एक दिन गवाक्ष में पड खेल रचाया | नामांकित मुद्रिका बांच अति सरमाया । ले मुंह मुथरा कुबेरदत्त सिधाया ॥ मि ॥ कुंबेरदत्ता हो लज्जित कंपन लागी । म० । चित्त में बहु पिछताईजी । प० २ ।। उस समे मुनि महाराज ज्ञानी पधारे । म० । आय कर प्रश्न कीनाजी । कैसे हुवा अकाज । मुनि जब उत्तर दीनाजी । थे पूर्व जन्म में कंथ कामिनी होता । म० । शीलव्रत थां तिहां लीनाजी | पाडोसण भंगाया त्याग पापणी अनर्थ कीनाजी || शेर || पाडोसण मर वीच मथुरा हुई वेश्या नारजी | तुम दोनों उसकी कूल में लिया जुगल अवतारजी । बंद कर सिन्दूक में यमुना में दीना डारजी । कुमेरदत्ता सुन चरित्र छुटी अश्रुधारंजी || छो ॥ मुनिराज दे उपदेश खूब समझाई। फिर पिता पुत्र को दोनों न्याय सुनाई । वैराग पाय कोई उत्तम सती पे जाई । मुख बांध वस्त्रिका संयम लियो सुख दाई | मि ॥ तप जप करणी कर अधि ज्ञान सती पाई । म० । मात संग देख्यो भाईजी || १० ३ ॥ ले आज्ञा गुरुणी की समजावा के कारण | म० | आई वह मथुरा के दरम्यान पूंछे वंश्या से । दे मुझ को रहने के लिये मकान । पूर्व पश्चिम सम तेरी मेरी करणी | म० | बेश्या जब ऐसी बोली जबान । कहे साध्वी आई कारण से तुंज हकमें हित जाण ॥ शेर ॥ जो रहे खेलाना होगा तुझ को मेरा कुमारजी । मंजूर कर रही साध्वी आगे सुनो अधिकारजी । उस वक्त कुमेरदत और मिलके वेश्या नारजी । चित्रशाली में घुसे रोने लगा कुमारजी ॥ छो || बालक का सुनके रुदन वैश्या अद Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ली मेरी मति कर तूं नखरा । म० । एक तुज मुझ भरताराजी । जरा परभव का डर आन मान तु कहन हमारीजी सुन मोह की छाक गई । उत्तर तुरत बेश्या की । मा। चित्त में करे विचाराजी। जो फटे जमी तो धसं होय अब कैसे सुधाराजी ॥ शेर || वैराग्य पा संजम लिया और तज दिया संसारजी । सती गई गुरुनी समीपे । कर सर्वका उद्धारजी । नाता बहोतर हो चुके एक से अठारजी। किससे मोहव्वत हम करे हुवा अनंती वारजी ॥ छो । कहे परभवा सत प्रसु बचन तुम्हारा । झूटे न्याती परवार समजलिया सारा । गुरा हीरालालजी का पूरण उपकारा । कहे चौथमल करो धर्म होय निस्तारा ॥मि०॥ उगणीसे तिहोत्तर नयाशहर के मांही ॥ म०॥ ठाणा छ व्वीस सुखदायीजी ॥ ५० ॥७॥ ॥लावणीद्रोण ॥ जो पर नारी का त्याग नही करता है। महाराज । विश्वमें जितनी नारीजी । उस कामी के देखो पाप ये लगता भारीजी ॥ टेर ॥ सर्व धर्म शास्त्र मना करे सन प्यारे । म०। कामान्ध नहीं शावजी । दीपक की लोपे पड़े पतंग ज्यू प्राण गमावेजी । एक श्रेष्ठी गर्भवती स्त्री पर छोडी । म०। आप परदेश में जावेजी। कोई सुंदर देखी शहर. वहां दुकान लगावेजी । छोटीकड़ी। पीछे से कन्या जन्मी रूप में भारी । इंद्राणी के समान मोहनगारी । फिर भर जोबन में आईकन्या न्यारी । म० । माता जद ऐसी विचारीजी ॥ उस०१ ॥ यूं पति के कागज लख भेज्यो नारीने । म० । वर जोगी होगई बाईजी । अब ढील करो मत आप आयदो व्याव रचाईजी । उत्तर में लिख दियो हमे नहीं Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोले । मत रोने दे लेले तु अज्जा खोले । मेरा गुंज हालरा सुन ले भाई भोले । उनने भी लगाया ध्यान रहीने श्रोले ॥ मि० ॥ वंदव १ देवर २ नन्द ३ भतीजो ४ पोतो । महा० ॥ काको षट् लगे सगाईजी ॥ प० ४ ॥ मत रोवे वंदव तुम हम एकही माता । मा । देवर । तू कंत से छोटा भ्रात । एक बजे से नन्द शोक है मेरे तेरी मात | मैं भुवा भतीजा तू लगता है मेरे ॥ म० || भाई जो है मेरा तुम तात मैं दादी तुं पोता पुत्र का नंदन है साक्षात ॥ शेर ॥ काका भतीजी मैं लगे तात लघु नंदन जानजी क्यों बके तुं वे हया कुमेरदत्त कहे तानजी । है नाता तुझ से लगे सुन ले जरा घर ध्यानजी । भाई १ पिता २ पति ३ नन्द ४ है तू बाबा सुसरा मान जी ॥ छो ॥ हां भाई बैन आप एक माता का जाया । माता का पति हुवा जिससे बाप कहवाया । भरतार लगे सोरीपुर में परणाया । शोकन का लडका जिनसे पुत्र गिनाया । मि० । काकाजी का बाप लगो इस कारण । म० बाबा इस नाते साईजी । प० ॥ ५ ॥ भडकी भगतन कहे अरे कुटिल क्या बोले । म० । मति पाखंड लगानाजी | मेरी किस दिन की तुं छोरी यहां से होय खानाजी । कहे आरज का नैन बैन से मोही । म० । केई को किया दिवानाजी । मत बोले कड़वा बोले बैन जरा तुम लज्जा लानाजी । शेर । षट नाता तुझसे लगे अब चोड़े दूं प्रकाशजी । माता भावज दादी सासू बधू शोक विमासजी | जन्म की दाता मेरी माता लगे तूं खासजी । मैं नगद भावज लगे तूं भ्रात बधू हुल्लासजी । छो । तूं दादी मेरे लगे बोल बिचारी । मुज दादे की होगई जिससे नारी । तू सासू मैं हूं बघू तिहारी । खांविद की है तूं खास महतारी || मि० ॥ तुं बधू हमारी जरा शर्म तो लारी । मा पुत्र की प्यारी कहाईजी ॥ प०६ ॥ ए सोकड़ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनी भाइयों और आत्महितैषी सज्जनों की सेवा में अप्रूव भेट. (श्रावक धर्म दर्पण) अथात् श्रावकों के धारण व मनन करने योग्य विषयों का संग्रह. पृष्ट संख्या छियानवें ९६ मूल्य केवल ) ५ प्रति का १) मात्र । ___ इस पुस्तक के सम्बन्ध में अधिक लिखने की आवश्यक्ता नहीं पुस्तक क्या है मानों समुद्र को घडे में भरा गया है। देखिये इसके लिये प्रसिद्ध पत्र क्या सम्मति देते हैं। "कॉन्फरन्स प्रकाश अजमेर" अंक ४० ता. १६ जौलाई सन् १६१६ ई० इस किताब का जैसा नाम है वैसा ही गुण है इसमें श्रावक धर्म के विषय में कई उपयोगी और माननीय विषयों का संग्रह है आदि । "जैन प्रभात" अंक ४ माह आश्विन संबत् १९७३ इस पुस्तकमें श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुसार श्रावक के धर्म का विवर्ण किया है श्वेताम्बर भाईयों के संग्रह करने योग्य है आदि । ' "दिगम्बर जैन सूरत" वर्ष ६ अंक १० श्रावण सं० २४४२ इस पुस्तक में श्रावकों के धारण व मनन करने योग्य बातों का संग्रह कुल ५१ विषयों में किया गया है आदि । ___“वैद्य मुरादाबाद" वर्ष ४ अंक ८ और जैन धर्म धारक ग्रहस्थ को श्रावक कहते हैं इसमें श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय के अनुसार श्रावक धर्म का बर्णन किया गया है श्वेताम्बर जैन लोगों के काम की चीन है। Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फुरसत / म० / आप तुल्य घर वर ताईजी / मत जोजो मेरी राह तुम्हे दीजो परणाईजी / छोटीकड़ी / पास प्राम विच आछो वर जोई लीनो | माता ने कन्या को व्याव धूमसे कीनो / शाक्ति के मुवाफिक डाइज्यो देदीनो / म० / सासर गई कुमारीजी // उस० 2 // अब पिता परदश से चल्यो काम से निपटी। म० ! आयो उसी ग्राम के मांईजी / सगपण की खबरन काय सराय में उतरा जाईजी। रजनी के बिच जा छत के ऊपर सुते / म / सुता का घर था वहांईजी / अर्द्ध निशा पैशाब करण वो बाहर आईजी / छोटीकड़ी / दीपक के उजाले देख बहात में सहाई / व्यभिचारण कन्या बोलत नहीं शर्माई / दो हार गलाको फिर बछु तुमताई ।म० / भोगवरा दिया उतारीजी ॥उस० 3 // दोई कर्म कमाके निज स्थान जा सूता / म०। प्रात हुवा सेठ सिधायाजी | वो निज नगरी में आय कुटुम्ब से मिल हुलसायाजी / कन्या को बुला के पिता अति सुख पाया / मा० / हार जद नजरां आयाजी भेद जान बेटी फांसीले प्राण गमायाजी / छोटीकड़ी / हुवा जन्म अख्यारत सेठका सुरजो भाई / कहे चोथमल्ल अब त्याग करो चितलाई / मरूस्थल में प्राम बिलाडा मांई / म० / उन्नीसे तिहोत्तर मुजारीजी // उस० 4 //