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________________ रत्न प्र. ४ ..| दियो भव देवजी । दूजो भाव देवहो । भ० ॥३॥ अटन करी अन मांग के, लाचे भिक्षा कराय। रेवती माता | तदा भोजन देवे वणाय म० ॥ ४ ॥ इण विध करे दिन पूरणा । दुःखे २ गमे कोल | एकदा पुन्य अकुरथी, मिल गया साधु दयाल । मे० ॥ ५। दरसण कर भवदेवजी, अर्जी कीधी एम । हुं दुःखियारो अत माला घणो। मुझ सुख होवे केम । भ० ॥ ६॥ संत कहे भव्य सौभलो, चरित लियां सुख होय.। संसार में फसि यांथकां भव २ माहे रोय। भ०॥७॥अल्प कमी के आई पासता, लीनो संयम भार । जप, तप, खष, करणी करी, रंगियो धर्म मझारभ० ॥८॥ एक दा चिन्ते माहरो, लघु भाई दुःख पाय। परम प्रीत उण सुंहूती, काहुँ हिवे समझाय ।। भ• ॥६॥ गुरु सुंमागी आज्ञा, फिर आया सुग्राम । लघु बंधव बंदण भणी, चाली. आव्यो ॥भ० १०॥नि कहे भाइ सांभलो, क्यों भोगो जग देःक्ख । निकलो तुम संसारथी, ज्यु मिले अवि चल सुक्ख भ० ॥११॥ भाव देव कहे भाइजी, म्हारो हिवडा व्याह । नागला नामा नार सुं, होरह्यो सोई उच्छाह ॥ भ० ॥१२॥ पुनरपि बोले ऋषि वरु. हुवा अनंती वार। व्याह से गर्न सरे नहीं, तुम प्रावो हम लार ॥ भ० ॥ १३ ॥ लज़ना कर नटना सक्यो, भ्राता सरम अपार । दिक्षा ले लारे हुवो, विनय वंत आचार । भ० ॥१४॥ अध परणी गृहणी तजी, विचरथा बंधव संग । नेह तां तूं तूठो, नहीं धृग पड़ोरे अनंग। ॥ भ० ॥ १५॥ पंच महा व्रत पालतां, बीतो कितनो ही काल ।सुरगति लही भव देव जी, आतम ने उजवाल भ.॥१६॥ भाव देव लार रह्या, अंकुश बिन गजराज । समरी चित्त में नागला, चाल मिलू हिव आज ।। ढाल
SR No.600357
Book TitleJambu Gun Ratnamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethmal Choradia
PublisherJain Dharmik Gyan Varddhani Sabha
Publication Year1920
Total Pages96
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript
File Size6 MB
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