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जंबु
गुण
माल
पृ. ३
चार अनंतीए सुख पोम्या । चार बीश इंडक में भ्राम्या दान, शील, तप भावना भावो । कर कर्ररणी कर्म का उडावो || १३ || अजर अमर पद तुमही पास्यो । दया भाव दिल में जो लास्यो । भिन्न २ संबेग रचावे । उरण विन इमो कुण मार्ग बतावे ॥ १४ ॥ हलुकर्मी जिन मुख साम्हो न्हाले । वीतराग तुम धन्य हो कृपाले तो विन कवण निकासन हारो । जगत फंद दुर्गति दातारो ॥ १५ ॥ केई व्रतले केई वेरागे । लटिक २ जिन चरणा लागे । मगधाधिप कहे प्रफुल्लित हृदे । तारण तिरण तुम साचो वृदे ॥ १६ ॥ सभा सकल मन रंजत थाई | वंदना करके शीस नमाई । आया जिण ही दिस कुं जाई । ढाल ए प्रथम चौपाईनी गाई || १७|| ॥ दोहा ॥ ति अवसर एक देवता प्रभु समपि प्रकटत । चरण कमल विच शीस धरे । परसन एम करंत ॥ १ ॥ मुझ सुर ाउ केतलो । भाषो जगदाधार । सात दिवस बाकी हिवे । दाख्यो श्री करतार ॥२॥ अमर हुवो अदरस जदा, श्रेणक इम पूछतं । किहां यह त्रिदश उपजसे फुरमावो भगवंत ॥ ३॥ ए इह ही उपजसी, सुरण श्रेक राजिन्द । पुनरपि पूछै नरपति, वंदि पद अरविन्द ॥ ४ ॥ इहा उपजसे जहां लगे, प्रभु भव पांच श्रख्यात । कृपानाथ कृपा करे, ते सुखजो साख्यांत || ५ || || ढाल दूसरी ॥ रामजी पधारिया ब्राह्मण केरे गेह ॥ ए देशी || श्रेणक पूछया अंतरे, भाषे दीन दयाल | सावधानं थई सांभलो, एह संबंध रसाल ॥ १ ॥ भविक जन चेतजो. सुरण कर यह अधिकार । इा हीज जंबू द्वीप में, पुरेनामे सुग्राम 1 far भिखारी तिहां, बसे रावड पामर नाम । भ० ॥ २ ॥ तंस पतनी पर कंदरा, उपना, नंदन, दोय । नाम
ढाल
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