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लंबु
शृण
रक्ष
माला
हृ. ५
म० १७ ।। इम चिंती तिहां आवियो, उतरचो जख मकान । नागला सुखी साधु आवीया, भल उगीयौ आजभान ॥ भ० ॥ १८ ॥ पद पंकज वंदना, भरणी ते तिहां आई चाल । मुनि ने भारत देखने, चिंते यो काई हृदयाल | भं० ॥ १६ ॥ वंदना की घी जगत सुं लुल २ शीस नमाय । छकाया रा तातज़ी धन २ तुप ऋषिराय || भ० ।। २० ।। विनय करी ने बीनवे चित किहां छै मुनिराज । मुनि कहे श्रावका सांभलो, एक करो हम काज ॥ भ० २१ ।। फुरमावे कृपा करी, जिम छै तिम सुणाय । नागला ने जाणेय छै, तो ल्याई हां बुलाय ॥ भ० ||२२|| चतुरा चिमकी चित्त में, धृग् २ कर्म कठोर । निवै माहरो नाहलो, आयो इहां उदै जोर ॥ भ० ॥ २३ ॥ द्वितीय ढाल इम वर्ण बी, मोह कर्म विरतंत । भवियण आगल सांभलो । दृढ किम करें सती संत ॥ भ० ॥ २४ ॥ दोहा ॥ किण सुकाम कुण नागला, कवण चरित की रीत । कहो कथा सब मुझ भणी, किम बगड़ी तुम नीत ॥ १ ॥ नव जोबनडी तजी, बंधव केरी लाज । आयो कुं इस अवसर, दंपत सुखरे काज ॥ २ ॥ ढाल तीजी ॥ वीर नृपत अन्य दास में देशी ॥ सती कहे संता सांभलो, चारित सुंमत चूक । मुनि श्री पावती का सती ग्रहो कहूंछू पाडी कूक ॥ मु० ॥ स० ॥ १ ॥ दुक्कर मानव भव घरणो, अि दुक्कर पाम्यो धर्म | मु० सहिजे ही नहीं खोइये, राखी कुलरी शर्म । मु० । स० ॥ २ ॥ मेवा मिठाई छांडके, करे हलाहल आहार | मु१ साल दुसाला तज करी, घोडे दाट गंवार | ० सा० ॥ ३ ॥ गेंद सवारी मूंक के, चढ़ बैठे लंबो कर्ण, सु तिम स्त्री सुख तुम चहो, बम कर उत्तम वर्ण । मु० स० ॥ ४ ॥ मारी क्यारी
डाल