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________________ ज अफीमरी दें।से सुंदर गात, मु० फल रस भोगळयायका, कटुक करे जीव घात । मु० स० ॥ ५॥ तन छोजे। गुण ॥ अरु धन घटे, रहे नित बात ध्यान । मु० तेली का सा वृखभ, ज्यं भ्रमत सदा अज्ञान | TOस॥६॥। | ए भव इम विपता पडै, पर भव नरक नीगोद । मु० ॥ कनक जीब कर्म मेलकू, ज्ञान सुवागे सोद ।मु० । माल स० ॥७॥ इत्यादि उपदेशियो, ऋषजी विषे में राच । मु०। कहे मुझ कुं कुछ गम नहीं, जागो मोह पिशाच । मु० । स० ॥८॥ गौरी उ गुणन की चातुरी रूप अनूप । श्राविका कर झाली । छिटकाई दई कीधो यह विरूप । श्रा० । अंतर वारता सांभल। ॥६॥ चात्रक खात। बूंद ज्यू, चाहती थी वा मोय | श्रा० । हिवडा माहरा वियोग सुं दिन भरती होसी रोय । श्रा० अं०॥१०॥ अधबिच अबला वज गयो, कधी अतही तिरास । श्रा० । तुम उपकार किया थक्रां, सफल करूं हिव आस । श्रा० । अं ॥ ११ ॥ आस करे इक धर्मरी, रोवे उणरी बलाय । मु० । जाणे विषे विष सारिखो, थे क्युं रया ललचाय । मु० । स० ॥१२॥ इम तोहुं मानूं महीं, दीग विण परतीत । श्रा० । ज्यो हूं तुमने मेलऊ, करवी नाहीं कुरीत । मु० । स०॥३३॥ जिम तूं कहि तिम दसे से, तो तुम हमएवाच । श्रा० । जद.बोली हूंई नागला, मान मुनि ये साच । मु. ! || द.स स० ॥१४॥ त्रट की बोल्यो ऋषि वरु, साधा सुं करे हास । श्रा० मत छेड़ तुं मुझ भणी, जाजे इहां थी नास। श्रा० अं० ॥१५॥ पथिक पूछे पद्मण भणी बोलीक रूपा एम। श्री० भरम धरे लोक माहरो, तू पिण दाख्यो || तेम । श्रा० । अंक ॥१६॥ तुझ बिना नागला, कुस हुवे रूपे रूड़ी चंपेल | श्र{ । तन अंगाल सोहे रह्यो ।'
SR No.600357
Book TitleJambu Gun Ratnamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethmal Choradia
PublisherJain Dharmik Gyan Varddhani Sabha
Publication Year1920
Total Pages96
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript
File Size6 MB
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