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जंबु
गुण
रक्ष
माला
पृ०२१
धरनी ॥ ० ॥ ४ ॥ व्याव करीने भाव चारितीया । चढिया मंदिर संग धरणी । वैठ पर्थक मन में चित्तं । ए मुझ आतम सुख हरनी । आहूं ही पद्मण अर्ज करे यूं । हाथ जोड चंपक वरणी । योगीश्वर ज्युं ध्यान मावा । तो तुम हमकुं क्युं परणी । प्रीतम पाछो जवाब न आये । घण ऊभी आगल धरणी । हुकम दियां विन क्युं करवेशां, सलाह करे अब क्या करणी । प्रीउजी मुखडे नहीं बोलतो । अनुकूल गत आदरनी । आ० ।। ५ ।। नृत्य करावे लंक लचावे । लुल २ जावे रंगराती । घूघर घमकावे अंग दिखावे । नेन भ्रमावे मृदु गाती । वा जंत्र वजावे ताल लगावे । धन दरसावे मुसकाती । भृकुटी चढावे भाव बतावे । मन ललचावे राती । मदन दीपावे देह धुजावे । प्रेम रचावे मोहमाती । विन बतलावे कोप जणावे । धडकावे हमरी छाती | चूक विन तजस्यो मोरे मीतम । हंससे दुनियां नगरनी || आ० ॥ ६ ॥ भौंह कमान बात नेनुदे तकि बाहे भालम सामे । ज्ञान खड्ग से अध विच छेदे । जोरन कुछ चलता तामे । चित्र लेख ज्युं आप उभये हो । बात कहा हिरदा में भूल चूक ज्यो हम मे होवे । कहि बतलाको चवडा में । विन बोल्वां सरसे नहीं कंता । समझ लीजिये इतना में। नवमी ढाल पति से प्रमदा । कुमियन राखी कहवा मे । निश्चल मन जम्बू का । जैसे । चूल का कंचन गिरी वरनी ॥ ० ॥ ७ ॥
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॥ दोहा ॥ तिण वेला पल्ली पती प्रभवो तेहनो नाम । सात व्यसन रो साहिवो करें चोरनो काम ॥ १ ॥ रायनोडो करो । कुलं छनपर ताप । इाडे चालण लग्यो । करतो जाडा पाप ||५|| तस्क रपांचसे
ढाल
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