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जंषु
गुण
रख माला
प.२०
अवर पुरुष सब तात भात । सम इसी सलाह कबहू न करनी । हमरे एक उनकी चाहा । ज्युं चात्र करे जल धरनी । इकतारी पुत्र्यांनी देखी । मानी वात समधि नरनी । इनके मन जो याही भाई । तो परवा नहीं इस मरनी । वात कबूल हुई कन्या की । सुण बोली अमृत झरनी । आश्चर्य कथा रसाल थकी तुम । श्रोता श्रोतेन्द्री भरनी ॥१॥ थई बधाई नउं घर में सरू हुवा मंगल चारा । ढोल नगारा वाज्या झंगल । सरनाई बाजे द्वारा । बनडो बनड्यां बाने बैठे उवटण मंजन शृंगारा । स्त्री मुहागण सोह लगावे । कोकिल पकिया सहकारा। धन माल खर्चे बहुतेरा मेघ परे वर्षे धारा कुटुम्ब कबीला न्याती मंत्री। बोलाव्या व्यासा। मोहनी मूरत निरखी हथे। कंवरयां अरवले कँवरनी। प्रा०॥२॥ काना कुंडल नं कनक बेसर । चूडा मण चीरे चलके। नोसर सत सर तीन सरादिक । मुक्ता हार हिये हलके। कंचन बर्ण करार माही । रत्र जड़ित चूडच्यां खलके । वाजू बंध बोरखा कंकण । कटि में काटि में खल झलके। पग नूपर माण में चोराशी । साट पोलरी कडा रल के । इत्यादिक भूषण बहु पहरयां । गति छवि दामन झलके, काहांलू रुप बखानू मानू सोभे गण गोरा हरनी॥ आ॥शा कल्प तरु ज्युं सांभे दुलहा करी पोसाका केसारयां। केसरीयांही | जानी सनिया । जान चढी शहरां दरिया । गेंद अश्व रथ पालखी जिश । मंगल तूर हरप भरिया । उडु गण बीच तारापति ओये । ज्यु जंबू जी संचरिया तोरण काज करी चंवरी विच । दुलहन स फरा-कारया। नब २ क्रोड सो नैया दीधा । सुसरा कर मोचन विरिया। क्रोट अष्ट दश तात आपिया। नव क्रोड गोशाला
ढाल