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पू०२२
जंबु
लारले थाहा पाडे जोर । जोर तण वशना वही विया बोलियो चोर ॥ ३ ॥ वात विस्त्री शहर में सेठ ऋषभ गुण दत्त गेह । क्रोड़ निनाणू सोनिया एह पिण मुणियो तेह ॥ ४॥ धन लेवण इच्छाकारी । आपस में संकेत। रख भलन करम दसे छकी अाव्या चोरी हेत ॥ ५ ॥ माक्षा
__ढाल दशमी राघव आवियो हो । सुभट सघला शूर । ए देशी ॥ प्रभवो आवियो हो होयने हुशियार | कृतांत सागे दीस तोरे केंहें म रूं मार । म० ॥१॥ विविध शस्त्रर विविधवक्तर । विविध टोप सुचंग । विविध जोरा विविध तोरा । विविध तस्कर संग । प्र० ॥२॥ पूर्व रजनी शहर वाहिर । रह्या तेपर छन । अर्ध राते चालियाते सर्व रो इक मन्न ॥ ॥ ३ ॥ कपाट ताला लागियातिण । देखिया पुर द्वार । मंत्र वारी छांट तांही । खुल पड्या तिहवार । प्र० ॥४॥ अवस्था पनि विद्या पढतां सकल जन सोबत। निडर कूदत जाय चलिया कोई नहीं रोकत । प्र. ॥ ५ ॥ हाथ भाला चक्र वरछी खड्ग विज्जल सार । कटार कमठागदातेगा। झल हले झपकार । प्र॥६॥ फास फरसी कस कुदाला | माथ पाटागोह । देखना तस गात कंपे । नेत्र भरिया छोह । प्र७॥७॥ बाजार विचे होय आया। कियो तिम ही तंत्र । निद्रा आई ज, वरजी । तुरत खलिया जंत्र । प्र०॥ ८॥ मांहि पेठा देख चिहुदिस । सो नियना दंग । गांठ बांध ॥ धरि मस्तक । आण मन उमंग ॥ प्र०॥ ॥ कंवर मन में देख चितें । नही माहरे चाह । पिण लोग कहस्ये
ढाल