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माला
|| निर जरा जल कब हूं नहि निकसे । मुसकिल शिव फल पावो ॥ स्वा० १३॥ वृथा पुन्यरी पूंजी खोवो । ।
पाछल ही सीदास्यो ! सयण प्रजनरो कहण कबूलो । म्हाने दो विश्वासो ॥ स्वा० १४॥ उर्वशी रूपे उरवगुण
शी हियनी । उरवशी आछु बहिनी । कारन लोपा हुकम उठावां, मानो नाथ हम कहनी ॥ स्वा० १५॥ रढ़िया लघरठ इतनो न कीजे । हमरठ लागी तुम से पालवा जली जाण ने दैस्यां जोर न चलसी हमसे । स्वा० १६॥ आप चतुर विज्ञान शिरोमण । थोडा में बहु जाणो । काज न सुधरे अति ताण्याथी । तासु अति मति ताणो ॥ स्वा० १७ ॥ पलक उठाई निजर में लावो । ज्युसबने मुख थावे । करुणा व्याप्त भई घट में, तो हम पे क्यूं नहि आवे ॥ स्वा०१८॥ अछो सयाणा नही अयाणा । करसण ज्यु नहीं करजे । ढाल पनरमी प्रिया परचावे । विनतडी चित धरजे ॥ स्वा० १६ ॥
॥दोहा ॥ कंत कहे कामल प्रते । भलो कह्यो तुम हेत । रस लंपट योही करे । फलीयो खोवे खेत ॥ १ ॥ खेत फल्यो दश बोलरो । इण में संदेह नाहि । चउ विध फल वि लूण स्यूं । भांगां की नहि चाहि ॥ २॥ राग फाश विच डारती । थे छो बधिक समान | मन हिरणा पडसे नही । एह निश्चय विध जान ॥ ३॥ जिव्हा वश पड कर मूवो । काग एक मति हीण । एवंडो मूरख हूं न छु, समझो प्रिया प्रवीण ॥४॥ किम हुई एह वार्ता महर करी फुरमाय । हिव हूं दाखू भामिनी । सुणज्यो चित लगाय ॥ ५॥
॥ ढाल स्रोलभी ॥ जिदं सरण थकी भय संपजे ॥ एदशी ॥ इण ही जंबू द्वीप में बहती नर्मदा
दाल