SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ||॥ १३ ॥ दील चौथी इमें गाई । चोकतणी देशी थाई । पुन्य जोग प्रभुत्तापाई । सुणजी थे रणव भाई।। १०॥१४॥ गुण दोहा ॥ रतन जटित मंदिर भैला गोष श्रेण सरूप । मुक्ताफल री जालिका केतुकल शत अनूप. ॥१॥ माला विछी विछायत मुखमली गीदादिक बहु भांति । सेज्या सिंहासन मणि रचित | पैशै शिव मन खांति ॥२॥ जैसे सुररु सुरांगना भोगे भोग उदार । शशि वना रा रमणं ज्युं ज्योतिष चक्रे विचार ॥ ३ ॥ बैठ झरोरो निरखता इतनृत्य उत बाजार । नित प्रति सुख भीना रहे भामिनी से भरतार ॥ ४ ॥ ढाल पांचमी-वीरजी जी बखाणी मुनीश्वर करणी प्रापरी । ए देशी ॥ एक दांगाखे हो भवि अन बैठो मोजसुं, जोता नगरी भार॥सुणो तुमे श्रोता हो, हलुकर्मी होता हो, भ० शिवकुंवर जिसा, नयशी दीठा हो । भ० आता दूर सुं । तप मूरत अंणगार । सु०॥ १॥ तन पर सेवी हो भ. धूप पडे घणीं । दाजे पग सुखमाल । सु० । शीश उघाडे हो । भ० । सूरज तप रह्यो । चाले गज गंतं चाल। सु०॥२॥ | ढाल हाथ में झोली हो भ० । मेला कापडा । मुखपती सौभे मुख । सु० शिव मन चिंते हो । १० । दीसे सुख णा । क्यु सेहे इतनो दु:ख । सु०॥३॥ एम विषारी हो । भ० । जाय पूछू एहने । जदि छेदवे शंश । | सु० । महिसारे हेटे हो । भः । तुत ही उतरथा । नाम शिर से अवतंस । सु०॥ ४ ॥ बंदणा कीधी हो । ||
SR No.600357
Book TitleJambu Gun Ratnamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethmal Choradia
PublisherJain Dharmik Gyan Varddhani Sabha
Publication Year1920
Total Pages96
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy