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धन्यवाद। श्रीमान् विजयराजजी (बिजैराजजी) खींवसरा बलुदा [ मारवाड ] निवासी को धन्यवाद दिया जाता है कि जिन्होंने इस पुस्तक के प्रकाशन का सम्पूर्ण व्यय अपने पुत्र जन्मोत्सव के उपलक्ष में प्रदान किया है । आशा है कि अन्य महानुभाव भी आप का अनुकरण कर अपने धर्म परायण होने का परिचय शिघ्र देंगें ।
मोतीलाल रांका,
"प्रकाशक" शील रक्षा प्रथम भाग ॥ . इस पुस्तक में शील की महिमा और कुशील का बखूबी निषेध किया गया हैं, और शील किस तरह ग्रहण कर ना चाहिये इसका वर्णन भी अति उत्तमता से बतलाया है, मनुष्य मात्र को अवश्य पढ कर लाभ उठाना चाहिये । इतनी विशेषतायें होने पर भी मूल्य केबल १ प्रति )॥ ३५ प्रति १) .
" जैन " भावनगरानी अन्दर काव्यमां शीलनी ६ बाडानुं सारी रीते स्वरूप आपेल छै आदि ।