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संयु
गुण
रख
माला
पृ. २५
रमत करता रोलरे । रुप एहवो देख धूज्यो मुख न निकसे बोलरे ॥ कं० ८ ॥ हाय हाय मुझ साथ छूटो । करूं कियूँ हिव कामरे । रोवत पीटत रात बीती फज़र हुवो ताम रे ।। कं० ६ ॥ महर मनाही मार्ग सेती । फिरत इत उत जहरे | काल रूप विक्राल आवत हस्ती देख्यो तेहरे ॥ कं० १० ।। अतही त्रास्यो जाय नास्यो छिपण कुं नहिं जागरे कूप माहे डाक पड़ियो फूल्यो साखा लागरे ॥ ॐ० ११ ॥ हल्यो बट मूहाल उ डियो देत डंक शरीर रे । डाहल करडे ऊंदरावे । चार अजगर नीररे ॥ कं० १२ ॥ बेस जाने भिया नभचर किहांडी तव जातरे । कूप मानव देख दुखियो । कं सुं बतलातरे || कं० १३ ।। पति एहनो मेट संकट वि वद्याधर मुग्ध एवै । मानशी न लिगाररे ।। कं ० १४ ॥ एता दुख में सुख कि छै । रहसी तासुं लुभायंर । त्रिया प्रेरयो हेठे द्यावी । वोलतो इम वायर । कं० १५ ।। आव भाई मेरे केडे पोवा हुं निज गेहरे | सेत बिंदु सुखे महारे । जावायो एहरे || कं० १६ ।। खड़यो खेचर पड़यो टपको । मान मुझ अब वायरे । आवे दूजो एह देखो जिव्हा बस ललचायरे ।। कं० १७ ।। समझास कीधी बहु भांते नहीं मानी एकरे | हुई आखतो गयो पाछो । तजी नहीं ते टेकरे ।। कं० १८ ॥ द्रव्य इम अव भाव समजो । संसार है कंताररे । सार्थवाह जिनराज जानो । साथ तीरथ चाररे || कं० १६ ॥ जवि मूरख बसे निगोदे । छूटियो जिन संगरे । मोह निद्रा तभी मिथ्या । कर्म वनचर ढंगरे || कं० २० ॥ भ्रमी: भव में लह्यो नर भव । राहा न शिव को जानरे । काल करी से त्रास पडीयो । कुगुरू कूप पिछ नरे ॥ कं २१ ॥ चार अहिगत कुटुम्ब माख ।
ढाल
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