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जब
दोहा-रे विपही विषिया गृधी, विषिया दे उपदेश । पिण विषया विष से बुरा भव २ मरण लहेश ॥१॥ कर्दमक लीयो थको रह्यो अज्ञान अछाद । क्रांत किसी दिन यरतणी । उल्लडूं नहिं याद ॥२॥ डाभ रख | अणी जल विंदवो एता हूं सुख नाहिं । दधि अगाध जग दुख भरयो। परमन एह लहाहि ॥३॥ सेत विंदुरो माला
लोलपी कूद पड़यो गहि रूढ । मान्यो नहिं खेचर बचन इसो नहीं हूं मूढ ॥४॥ किम सीमा मधु विंदवो पृ.२४ किम मूवो पड कूप । किम कहणी मानी नहीं भाषो सयल सरूप ॥५॥
ढालग्यारवी ॥देव वनिता एमपं भाणो वस्त्र संप सनररे।। ए देशी॥ कंवर जंबू कहे प्रभवा । सांभलो मुझ हेतरे।अर्थ एह नो भाव समझी। थाय जो सावचेतरे । कं०। ॥१॥ मगर मोटो हुँतो तिहा, वसे सारथ वाहरे । विणज अर्थ गमन करवा, हुवो तयार इक साहरे । कं० । ॥ २ ॥ घोसणा करी सहर माहे | चालीए पर दीपरे । साथ थावो करूं रक्षा जेम मुक्ता सीपरे । कं०।॥ ३ ॥ साथ संगले भले मुहुरत । किया ता परे। ग्रायने अनग्राम हींडत । पुरुष एक अयाणरे । कं०॥४॥ पडाव कीधो अरण वीचे । करण सिरावण भोगे प्रसाद ने वस जाय सूतो । तेह अल्हादे ठौर रे । ६०॥५॥ षट कर्म से नीव्रत थाई । करयो कच । सब साथरे । ते तिहाई निद्रा माहिं । आधम्यो दिवे नाथरे । कं०। ॥ ६ ॥ नींद भागी व्हीनो जागी । भयंकार देखायर । पवन चाले पत्र हाले । तिमर चिहुं दिस छायरे । कं०। ॥ ७ ॥ फिरत स्वापद पड पड पद