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रत्न
माला
.. || तिमिर ने हुयो उजासक । मात पिता उठ प्राविया । कुल वधू कुल दीपक पासक । चित्र लिखित सम
| देखिया । ऊपन आश्चर्य मन में विमाशक । आलस अंग निवारिए । स्नान मंजन करो हर्ष हुलास क । गुण
भूषण वस्त्र अलंकिए। करो तुम भोजन मीठडा गाशक । चालिये फेर बाजार में | विणज करो जोडिए
धन तणी राशक । इम फुरमावियो तातजी ॥१॥ एहवा वचन श्रवणे सुणी। बोलिया तव श्री जंबू ...|| कुमारक । कामन माहरे आथ सू । चालवो नहीं मुझ नेजी बाजारक । जगतना धंधा सब कारमा । कारमो
जौवन धनरू परवारक । अविचल धर्म जिणराजनो । सेव्यां सुं होय जावे तुर्त अधारक । स्वार्थना सब को सगा। विण स्वार्थ नहीं कोईकरे सारक । पंछी बैठे हरय। तरु ऊपरे । उडजावे सुका मुं न रहे क्षिण बारक । श्री गुरुदेव चेतावियो। सांच छै इम नही झूठ लिगारक । जाण रइ खोटो किम खाइये । पार खुरो नही एह प्राचारक। कंवरजी उत्तर इम दाखियो॥२॥ श्रवण पुट खुल्या एहवा बाक्य सुण । कुमरयां का मात पिता बुलवायक । अष्टादश मिल मशलत करी । पुत्र पुत्र्यांपते इम समझायक। छांडता । नेकहू लाजन बालुडा अायक । किया वडा कर पालणा । जावोछो आज दिवस छटकायक। उत्तमनी नही रीतडी । क्षणिक वियोग हमसे न खमायक | सुर २ सहू मरजावस्यां। थोडीतो मन अणु कंपावी लायक । आज्ञा बिन किंण जावस्यो । भलाइ देजावो हम छातीपे पांयक ॥ ओप जग में वधारिये । नयणां मांसु अति नीर झरायक । इम कडे तात समायजी ॥३॥ बैरागी बना फिर उपदिशे। तुमतो बंध्या
ढाल
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