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________________ ली मेरी मति कर तूं नखरा । म० । एक तुज मुझ भरताराजी । जरा परभव का डर आन मान तु कहन हमारीजी सुन मोह की छाक गई । उत्तर तुरत बेश्या की । मा। चित्त में करे विचाराजी। जो फटे जमी तो धसं होय अब कैसे सुधाराजी ॥ शेर || वैराग्य पा संजम लिया और तज दिया संसारजी । सती गई गुरुनी समीपे । कर सर्वका उद्धारजी । नाता बहोतर हो चुके एक से अठारजी। किससे मोहव्वत हम करे हुवा अनंती वारजी ॥ छो । कहे परभवा सत प्रसु बचन तुम्हारा । झूटे न्याती परवार समजलिया सारा । गुरा हीरालालजी का पूरण उपकारा । कहे चौथमल करो धर्म होय निस्तारा ॥मि०॥ उगणीसे तिहोत्तर नयाशहर के मांही ॥ म०॥ ठाणा छ व्वीस सुखदायीजी ॥ ५० ॥७॥ ॥लावणीद्रोण ॥ जो पर नारी का त्याग नही करता है। महाराज । विश्वमें जितनी नारीजी । उस कामी के देखो पाप ये लगता भारीजी ॥ टेर ॥ सर्व धर्म शास्त्र मना करे सन प्यारे । म०। कामान्ध नहीं शावजी । दीपक की लोपे पड़े पतंग ज्यू प्राण गमावेजी । एक श्रेष्ठी गर्भवती स्त्री पर छोडी । म०। आप परदेश में जावेजी। कोई सुंदर देखी शहर. वहां दुकान लगावेजी । छोटीकड़ी। पीछे से कन्या जन्मी रूप में भारी । इंद्राणी के समान मोहनगारी । फिर भर जोबन में आईकन्या न्यारी । म० । माता जद ऐसी विचारीजी ॥ उस०१ ॥ यूं पति के कागज लख भेज्यो नारीने । म० । वर जोगी होगई बाईजी । अब ढील करो मत आप आयदो व्याव रचाईजी । उत्तर में लिख दियो हमे नहीं
SR No.600357
Book TitleJambu Gun Ratnamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethmal Choradia
PublisherJain Dharmik Gyan Varddhani Sabha
Publication Year1920
Total Pages96
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript
File Size6 MB
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