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जंद
गुण
नाला
पृ.५००/
| इस समे। मिले मुसकिल एह रोण ॥ का० स० २६ ॥ ढाल पोडशमी इम कही समुद श्री पहिली नार ।
का० । हस्त जोड ने वीनवे | धन २ तुम भार । स्वामिन् बलिहारी तुम ज्ञान नी ॥ २७ ॥ रत्र
दोहा ॥ रंगाणी संवेग सुं मोहनी छाक निवार ।निर झूठा बहे चुपही । समझी मनही मझार ॥१॥ पद्म सिरी दूजी त्रिया । आगल ऊभी आय । कर मुजरो इम वीनवे | बिन बोल्यां अंकुलाय ॥ २॥
__ ढाल सतरमी ॥ नींदडली हो नाथ निवारिये । ए देशी ॥ अति हठ मति करो साहिबा । तुम मानो हो नणदलरा वीर के। म्हांका कंपे कालजा | मुख बोलो हो मिठडा निमकीर । वीनतडी हो नाथ अवधारिये ॥ आंकडी ॥१॥ सर्व अलूणो तुम विना । आहिलो जासे हो योवनने रुप के। विन बोल्यां सरसे नहीं । काही झाली हो प्राणेसर चुप के ॥बा० २ ॥ अव गुणी हमने विन गुणे । स्वामी इसडो हो न वि कीजै अन्याय के । करतार भरतार सारिखा । न्याये निपुणा हो आदर चितलाय॥ वी० ३॥ लोभ अति नही कीजिये । दुष्कृतता ते हो जग जन्न कहाय के। बंदर एक हुचो लालची। दुख भोग्या हो घणो |
| ढाल बिल लाय ॥ वी०४॥ कहो सुंदर ए बार्ता | कंथा सुण जे हो एक मन धरधीर के। वन नंदन वन जे हवो। हुतो एक जहो मोटो गहन गंभीर ॥ वी०५॥ कुवा बापी मन हरूं । फल फूले हो भारे वृच्छन माय के । । पशु पक्षी उद्यान में | करता मोजा हो कपि जोटा रहाय ॥ वी०६॥ डाके कूहे ऊछले | ऊंचा चढके