Book Title: Jambu Gun Ratnamala
Author(s): Jethmal Choradia
Publisher: Jain Dharmik Gyan Varddhani Sabha
View full book text
________________
जंबु
माला
पृ.७१
जनक जनता सब समाझिया । पुत्र जामतूं गुरांतणी ठामक । बलिहारी ताहरी बुद्धिकी। किहांलो वरनन कांजे गुण धामक । तुम बिन रहिकर घर विषे । नाहिं गुमावा हम तणी मांमक । सर्व अलूणो बेटा तुम बिना । तुम विन सबही काम निकामक | हमही उधारस्यां आत्मा । डूबिए किम तुम सा शुभ पामक । लेसां चारित्र सम चूप मुं । एम मतो कर लीधो छै तामक । ढाल एह भणी तेतीसमी । पातक भाजे लेतां । इण तणा नामक । भविजन नित्य गुणं गाइये । पर उपकारी श्री जंबुजी सामक । आज दिवस आगम कहे ॥७॥
॥दोहा॥ एह रचना प्रभवो लखी । उपज्यो धर्म वैराग । पांच सयासु आयके । भेटयो नृप महा भाग ॥१॥ स्वामी देश तुमारडे । लियो अदत्त हूं दान । शीघ्र संभाली लीजिये। पायो धर्म निधान ॥२॥ कौणके कहे पल्ली पती । किम तूं ज्ञान लहाय । जंबू जीरी वारता दीवी सफल सुणाय ॥ ३ ॥ फिर बोल्यो चंपापति निर्भय रहो हम पास । मिलसे खरच खजानसूं । सुख सुं कीजे वास ॥ ४ ॥ डर नहीं मान्यो तुम तणो आज जगे महाराज । अबडर लागो कालको तिण सुनं सकुं भाज ॥ ५॥ भक्त करूं जिण राजरी । रक्त रहस्यु धर्म मांही । सक्त फोरवस्युं चरित में | जाली जंव बांहि ॥ ६ ॥ बीजराय उजवालियो । जातिवंत || ढाल कुलवंत । धन २ तूं भल चेतियो । भूपत एम भणंत ॥ ७ ॥ इसो कवण या जगत में | अघविच पडियो नाय । पड चेते मानव जिका । ताळू रंग सवाय ॥ ८ बात बिस्तरी शहर में । जंबू जोग लहाय । प्रभ बादिक प्रति बोधिया । लोक बदे इम बाय ॥६॥

Page Navigation
1 ... 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96