Book Title: Jambu Gun Ratnamala
Author(s): Jethmal Choradia
Publisher: Jain Dharmik Gyan Varddhani Sabha

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Page 86
________________ जंबू गुण रख माल पृ. ८० ॥ ढाल चोतासमी ॥ धन प्रभु रामजी धन परणामजी । ऐ देशी ।। धन जंबू सामजी । धन पर णामजी । धन संच्या धन वंसवे । धन तुझ तातजी । धन तुझ मातजी । इम लोग करे परसंसवे ॥ ध० १ ॥ हवी महिमां श्रवणे सुरण के । राजन चिंते मन्नवे । एवो जौवन एहवी संपद । छांडे छे ए धन्नवे ॥ ४०२ ॥ इसा पुरुसांरो दरसण कीजे । इम सोची असवार बे । सेठ ग्रहे तेह तत क्षिण आव्या । दीठो कंवर दीदार वे ॥ ध० ३ || हर्ष वदन होई इण पर बोले । किम ल्योको संजम भारवे । छांय हमारी बसिये सुखसुं । भोगवो भोग उदार वे ॥ ध० ४ ॥ स्वामी किहां छै सुख जगत में । काल सुं नहीं माहरे प्रीत वे । किस के भरोसे प्रभुजी दाखो | रहणो दोय न चिंतवे ॥ ध० ५ ॥ राखणरीजो सामर्थ्य होवे । तो राखीजे मोय ब एह शक्ति नहीं इन्द्र नरेन्द्र की । कीजे जिम सुख होयवे ॥ घ० ६ ॥ पांच से सत्ताईसें सघला । हुवा संजम कुं तैयार थे । बोहत जलू सवणौवी आया । गणधर रे दरवारबे ॥ घ० ७ ॥ कंचल डोडा आकार कियाकर। पांच अंग नमायवे । आगल ऊभा बिनवे गुरांसे । तारीजे कृपा करायवे ॥ ध० ८ ॥ बीहना भगवंत भव में भ्रमण सुं । अलीता पलीता लोकवे । लाग रह्या जगवासी जीवारे । हरिए एहें हम शोकवे ॥ ध० ६ ॥ करी दिश उत्तर पूर्व बिच । जाइने लोच्या केशवे । वस्त्र अलंकार दूर करीने । पहिरया साधुजीरा वेश बे ।। ध० १० ॥ फिर आवी चरण। घर मस्तके | वंदना करे वारंवारवे । श्री मुख सुं धर्म व्रत उचराव्या । कीधा सहू अंगीकारवे ॥ ध० ११ || गणधरसा व्रत देवणहारा । जंबू साहुबा अणगारबे | कौणक सा उत्स ढाल ३४

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