Book Title: Jambu Gun Ratnamala
Author(s): Jethmal Choradia
Publisher: Jain Dharmik Gyan Varddhani Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 91
________________ ॥ श्रीवीतरागायनमः ॥ लावणी ठारा नाताकी द्रोण में. कहे जंबू परभवा अष्टादश हुवा नाता । महाराज । एक ही जन्म के मांहीजी । पण कर्म रेख नाटले करे। कोई लाखों चतुराई जी ॥ ढेर | ये मथुरा नगरी में रहती थी वेश्या । म० । नाम कुमेर सेना लेना जान । परवीण कला में रूपवान । है महापाप की खान । केई छैल छबील भोगी भंवर को देखी । म० । नयन का मारे खेची बान | सन धन यौवन ले लूट | मुग्ध जन पडे फांस में अन || शेर ॥ बसंत ऋतु के बीच गणिका सज के तन शृंगार जी । चली रथ में बैठ के गुलसन की देखन बहारजी । सेठ सूत भोगी भंवर रतिपति अनुसारजी । दोस्ती उससे लगी करे काम खुवारजी || छोटी कडी || भोग योग वेश्याने सुता सुत जाया । कुमेरदत्त कुमेरदत्ता ठहराया । वैश्या चिंते इनके पोषन में रहाया || मेरे छूटे रसिले भोग जो पुण्य से पाया || मिलन || हो दयाहीन बालक पेटी में बँध कर | म० दीना यमुना में बहाईजी || पण० १ ।। सोरीपुर घाट पे साहूकार दो उभा । म० पेई को लीनी निकालाजी । फेरदोनों लीना बांट वित्त में हुई खुशाली जी । ये दोनों निज घर भिज नारयां ने सूप्या । म० । किया फेर मोटा पाली जी । आपस में सगाई करी पूर्व ना बात समालीजी । श० । पीठीका मर्दन करी पोसाक तन पे ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 89 90 91 92 93 94 95 96