Book Title: Jambu Gun Ratnamala
Author(s): Jethmal Choradia
Publisher: Jain Dharmik Gyan Varddhani Sabha

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Page 63
________________ '' आकाशरे लो । या घर अपणे आई उल्हाशे । जाण्यो घणो सुखु थाशेरे लो ॥ न० १८ ॥ श्रथ वधंती बुद्धि जा । लवे. कुबुद्ध अयाणीरे लो । तिण देवत सुं बोले वाणी । कर देवो माने काणीरे लो ॥ न० १६ ॥ इम कहेतां एक आंख गमाई । दूजी आंधी थाईरे लो । देवे प्रलंभो तिणरे जाई । कीधी कि तेवाईरे लो ॥ न० २० || सुझ थी अधिको तूं सुख चायो । भोगवो हिवडा लहायोरे लो । अब क्यूं आरत ध्यान धरायो | कीधांरो फल पायोरे लो ।। न० २१ ॥ इमद्दिज समझो अंतरजामी । कहुं कर जोडी शिर नामीरे लो । पुन्य देव तूठा ऋद्धपामी । लोभ बधावो सांमीरे लो || न७ २२ ॥ जो नहीं मानी तो दुख पास्यो । सिद्धि ज्यूं पितास्योरे लो । भोग जोग दान्यों ने गमास्यो । अधिर आत्मा थास्योरे लो || न० २३ ।। चार बीसमी ढाल ए दाखी । व्योमसेन इम भाषीरे लो । समझावा में कुमियन राखी । पति राखण अभिलाषीरे लो । न० २४ ॥ पृ. ५७ जंबु गुरा रत्न माला ॥ दोहा ॥ हंस बोल्या जंबू जदा । समजो मर्म सुजाण । पुदगलरी बांधा बुरी | तुमचा वचन प्रमाण || १ || उदय भावरा जोर से । विषम अर्थ समझाय । पिण मानूं नही एकही हुं जाएं सम न्याय ॥ २ ॥ मुझ हृदय दरसावियो । गुरुवर सत्य स्वरूप | अलग कियो मिथ्यात्वता । ज्यं कण कंकरसूप || ३ | न्याय पंथं कूं नहीं ज्यूं नृपरो । नोंखार । भले भाव से भामनि । सांभल एह अधिकार ॥ ४ ॥ || ढाल पचीसमी || आज निहे जोरे दीशे नहेलो । एदेशी || जंबू द्वीपरा भरत क्षेत्र में । पूर्व सं ढाल २५.

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