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जंबु
गुण
रख
माला
८०४२
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देख झरोख में । घूमरण लाग्यो हो । जाणे काढयो व्याल || बो० १८ ॥ कौतक करवो भूलीयो । पैठो बंदर हो सोग सागर माहिं के। कपि पत लाठ्यां कूटियो । पिख तिरा ने हो। कछु गम रही नाहि ॥ वी० १६ ॥ नर पति देवी देखने। पिछाण्यो हो मुझ सागे कंत के । माल देवी छोडावियो । शिक्षा मानी हो नहीं तू तिरयंच ॥ वी २० ।। इम प्रभु हृदय सोचिये । वन जग जाणो हो फल शुभ पुद् गल्ल के | ज्यांनवरां ज्यूं जीवडा मिलवो भोग जहो छै घणो मुसकल्ल ॥ वी २१ ॥ गुरु देववाणी वापी क्रिया आपां डाक्या हो हूंवा नर अवतार के सूर शिव सुखरी लालसा फेरूं कूदण हो धया आप तयार ॥ बी०२२ ॥ रहो जी रहो थे वाला नही । नही थाजे हो बंदर री रीत के । ढाल सतरमी इम कही । पद्म श्री हो दूजी सुविनीत ॥ वी० २३ ॥
॥ दोहा ॥ सुरा बोल्या जंबू कंवर कनक कामिनी काज || लोभ करयां इस पर हुवे । तृष्णा सिंधु पाज ॥ १ ॥ सोतो हूं सब पर हरूं । केम मिले दृष्टंत । श्रंगालक दुखियो थयो हेतु एह मिलंब ॥२॥ किम श्रम तिने ऊपनो केम मिल्यो वह हेत । कहुं हुं सुण इण अवसरे चेत सके तो चेत ॥ ३ ॥ पाणी केरा बुदबुदा संज्या वान समान चलितमान सुख पुदगली कुंजर ना ज्यूं कान ॥ ४ ॥
॥ ढाल अठारमी ॥ देशी । विण जारानी ॥ जी चांच० || पद्मनि चेतरे | देखी जगत सरूप | दुःख घणो सुख कुछ नहीं । प० अविचल अटल अनूप । मुक्त में साता जिन कही ॥ प० ॥ १५० ॥ इण पर
ढाल
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