________________
गुण
रख
|| हो बैठी हरपंत के। मधुर स्वादरी रसवती । भोगी दिल में हो । अहला दयावंत ॥वी०७॥ हुई अचा
णक गगन में । देवबाणी हो दिव्य आश्चर्य कारक । पुष्करणी में इण समें । पड होसी ते नर अवतार । वी० ८॥
जोडाथी कूदी पाया । तत्क्षण हुई हो देवांसी देह के। नग्न मूरत नर बोलियो । फिर पामीहो ऋद्ध नही माला
संदेह ॥ वी ९॥मेंदी कहे नहिं कूदीये। वहु तृष्णा हो अछे पापरो मूल के । कदेही नपडसी पाधरी । नि. श्चय जाणो हो था से प्रतिकूल ॥ वा० १०॥रे मूर्खा समझे किसुं । देख थाऊ होऊ प्रत्यक्ष देवीस कहीं पडियो डाक के । हुवो वंदर हो पांवरो तत खेव ॥ वी० ११ ॥ खाज खुजातो नीसरयो । कही तूं ही हो। पड इण रे माय के । साक ही हूं अहमक नहीं । भूरे मरकट हो, बेहु हाथ घसाय । वी० १२॥ अश्व चढी ने महिपती आया अहिडो हो खेलण तिणवार के । जंगल वीच पुरंदरी । देखी पूछे हो एहै कवण विचार ॥ बी०१३ ॥ पहली आपो साटिका । पाछे कहि मुंहो हूं सयल सरूप के। पट देई सुण वारता ले चाल्यो हो साथे तम भूप ॥ वी०१४॥ जोरन चल सक्यो रंच ही । जोवत ही हो रहे गयो लंगर के। पकड कलंदर लेगयो परवश पडियो हो । निज कृत बे सहूर ॥ वी० १५॥ भूखो तिरसो राखियो यहि कंबा हो न्हानी मारे मार के । सीखवी बहु विध कला। नाचण रूमण हो झूक करवो लुहार ॥ वी. ॥१६॥ करां कटोरो लेइन भिक्षा मांगे हो जन जनरे पास के। करत आजीविका पुर पुरे । फिरतो फि नचावी तास ॥ बी०१७॥ तिण हीज मगरे आवीयो । करले डहरूम्हो रचायो ख्याल के । राखी ।
ढाल