Book Title: Jambu Gun Ratnamala
Author(s): Jethmal Choradia
Publisher: Jain Dharmik Gyan Varddhani Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ माला बरण सामग्री लख थयो । मन में अति भय भ्रंत । का० । रुधिरं लागो मुख जेहने, भावे कुछ नही मंत ॥ का० स० ॥ १४ ॥ जहाज एक ति अवसरे । आावी सुकृत जोग । का० । नियमक तिण ऊपर बैठो विचक्षण लोग ॥ का० स० १५ ॥ हाक दई काक आविया । सोच्यो चित्त मझार । का० स्वाद इसो वांछे नही । मानाही लिगार || का० स० १६ ॥ प्रोहरण तो चलतो रह्यो । पाछे निकस्यो मच्छ । का० । देही करी नीले प्र. ३३ घुस्यो । उडतां टूटा पं ॥ का० स० १७ ॥ विश्रामो दीसे नही, हार पड्यो विच नीर । का० । जलचर भखियो तेहने । प|म्यो नही जेतीर ॥ का० स० १८ ॥ अर्थ अभ्यंतर सांभलो । चहुं गत ए कंतार । का० । काग समाणो जीव छै । मृत्यु कलेघर नार ॥ का० स० १६ ॥ भोग आमिष रसियो थको । सेवे स्त्री नित्त | का० । गुरु जन कहे मुर्छा मती । सहि दुख पास्यो मित्त ।। का० स० २० ॥ मानी नही सठ सीख ए । गिरध्यो विषय विकार । का० । उदय सुर्य तपियां थकां मुंद गयो संवर द्वार | का० स० २१ ॥ कर्म दृष्टि बरसी घणी, भरगयो पापरो खाल । का० । संसार उदधि में वहि चल्यो । दीसे नहीं किहां पाल ॥ का० स० २२ ॥ जलचर नो भय ऊपनो । रोग रु सोग वियोग । का० । अंतराय दुख देवती । भय भूल भीनो भोग ॥ का० स्र० २३ ॥ धर्म जान ले श्राविया सुधर्म गणीं निर्याम । का० । ज्ञान दर्शन दुरवीण दे । पो छाडे शिव ठाम || का० स० २४ ॥ एहवो लोलपी हूं न छूं । ज्यो मानूं नही आज । का० । काल मच्छ ग्रहे संपदा - निकस जावे जहाज || का० स० २५ ।। मरणो पडे जग जलधि में । जाणी इबे कोण | का० । नाफिल मत रहो जंबु गुण रख ढाल १६

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96