Book Title: Jambu Gun Ratnamala
Author(s): Jethmal Choradia
Publisher: Jain Dharmik Gyan Varddhani Sabha
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जंबु
शु
रत्न
झाला
2.15
|| ७ || कन्या गउ भौमा दिकेरे । बोलु ने मृषावाद । सु० थापल राख नहूं नहीरे | करी दुजारी मर्याद। सु ॥ ८ ॥ हा युं न काहूं गांठंडीरे । ताला पड कुंची खोल । सु० । इत्यादि चोरी नहीं करूं । कूडा मापा तोल । सु० ॥ ९ ॥ मैथुन चोथो व्रत कह्योरे | पंचम परिग्रह जान | सु० उधं अधो तिछीं दिशतणारे । कह्यो अत्रसर देख प्रमाण ! सु० ॥ १० ॥ सप्तम छावीस बोल नीरे। करी मर्यादा जेह । सु० पनरा कर्मा दान कुंरे सर्वथा त्याग्या तेह | सु० ॥ ११ ॥ अथ दंडा विषरे । आतप ने नहीं रंच । सु० | नवमा समायिक करूंरे समता भावे संच ॥ सु० ॥ १२ ॥ चउदा नेम फुटकर बहुरे । दे शावगामी व्रत ॥ सु० । प्रति पूरण पोषो करूंरे । निर्दोषण देउं दत्त | ० || १३ ॥ यथा शक्ति हूं टालस्यूंरे || निशाणचे अतिचार | सु० जाव जीव • लग पालस्यूरै लीधा ज्यूं व्रत वार ॥ सु ॥ १४ ॥ सफल मनोरथ कर लियेोरे, विनो सांच पोतो गेह । सु० । यो मात पिता करे | हर्ष नयन अवलेह | सु० || १५ | आज जाया तूं दीसतोरे । हस्तव दन अणपार । सु० | धन्य पुन्याई ताहरीरे । भेट्या पंचम गणधार | सु० || १६ || चिन्तामण धर्म पामीयोरे । तिल संचित आनंद | सु० । उपसर्ग आज ही ऊपनोरे । दाख्यो सकळ संबंध | सु० ।। १७ । ए-सुण थर हर कंपतारे । हिवढे चांपे घर राग-1 मोटो उपद्रबटलगयोरे । गुरुजन केरे भाग | मु० ॥ १८ ॥ दीक्षा लेवण मन ऊपन्यो मेरे आज्ञा दीजे मोय । सु० वज्र पात सम लागीयोरे || धरणी ढलीया सोय । सु १९ ॥ सात्र चेत क्षण अंतरे - रे । दुबा शतिल उपचार । सु० रेषछ इसडी न कीजियेरे ॥ अमने करण आधार | सु० ॥ २० ॥ संजम नहीं
ढाल
म

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