Book Title: Jambu Gun Ratnamala
Author(s): Jethmal Choradia
Publisher: Jain Dharmik Gyan Varddhani Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ || भ० दाखी इण विधे । तृतीय भव विस्तार । मु० श्रो० । श्रवण करतां ही भ० कथन सुहामणा । नित ही | | मंगलचार । सु० श्रो० ॥ २१ ॥ दोहा-न्याती लाधा मे घणा विषय भोग सनेह । निपुण पारखू चतुर जन किम गर्भित हुवे तेह ॥ । माक्षा ॥ १॥ जप तप व्रत करिके भरी । निज पुंजीरी खेव । संजम न्यो भल घर रहो वृत्ति कवल अलेप ॥ २ ॥ पोषध प्रतिक्रमणा करे, ब्रत पाले निर्दोष । छठ२ श्रामिल पारणे लगी सुरत इक मोष ॥ ३ ॥ इत्यादिक कर. णी करी वर्ष द्वादश पर्यंत । दुर्बल देह मुमाल अब जाएयो नहीं निकसंत ॥ ४ ॥ कर अणसण अराधना. काल समे करि काल । प्रथम कल्प सुर ऊपना, पाम्या भोग रसाल ॥ ५॥ मुरियाभ जिम ऋद्धि लही वि. जुन माली देव । आतम रख देवागणा सहसा गम करे सेव ॥ ६॥ वो सुर राजन एद्द छै, कह्यो तुझ से विस्तार । इणहीज नगरे उपज से जंवू नाम कुंवार ॥ ७ ॥ श्रेणक नृप हरष्यों बहु हृदे प्रफुल्लित थाय । त. इत वचन वंदणा करी आयो जिण दिस जाय॥ ८ ॥ अब जन्मादिक वारता. कहूं अछु सुखकार । भवियण भावे सभिलो. मन भावन अधिकार ॥ ६॥ ढाल छही ॥ खबर करी तत खेय पदम सीखर भणी ललना ए देशी । सेठ ऋषभदत्त नाम. बसे तिहां धन धणी । ललना । घणा सेठ तस हेठ, लक्षी तेह ने अति घणी । ल. धारणी नार उदारक शील | .

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96