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तत्त्व ज्ञान में वर्णित 'मोक्ष - मार्ग' आनन्द पूर्वक जीने की साधना है। दूसरे शब्दों 'सुखपूर्वक जीने की कला' है। जीवन में आनन्द की उपलब्धि तभी संभव है जब वह विकार रहित हो, क्योंकि विकार ही विश्व के सब प्राणियों के दुःखों व द्वन्द्वों का कारण है । विकार पर विजय पाने की साधना ही वास्तविक साधना है। इसे किसी सम्प्रदाय या वर्ग विशेष की साधना समझना भूल है। वस्तुत: जैन-साधना 'जन-साधना' है, प्रत्येक जन इसे अपना सकता है और अपने दुःखों से छुटकारा पा सकता है, यह इसका व्यष्टि रूप है। दूसरा इसका समष्टि रूप है । इस रूप में यह सुन्दर समाज का निर्माण करती है जिसे अपनाकर मानव-समाज अपने समस्त दुःखों व समस्याओं से मुक्त हो सकता है।
वर्तमान युग 'विज्ञान - युग' है। विज्ञान के कारण भौतिक विकास अपनी चरम सीमा पर पहुँच रहा है। विज्ञान प्रदत्त भौतिक उपलब्धियाँ मानव-समाज के अन्तर में स्थित कषाय को उभार कर व्यवहार में व्यक्त करनें में निमित्त बन रही हैं। परिणाम स्वरूप वर्तमान मानव-समाज कषाय से बुरी तरह ग्रस्त है । उसका यह कषाय स्वार्थपरता, शोषण, संग्रहवृत्ति, भोगलिप्सा आदि असंख्य बुराइयों को जन्म दे रहा है। फलस्वरूप सम्पूर्ण मानव-समाज संत्रस्त व दुःखी है। युग की मांग है कि इस स्थिति से मुक्ति पायी जाये। इसके लिए ऐसे मार्ग की आवश्यकता है जो साम्प्रदायिक मान्यताओं द्वारा थोपा न जाकर वैज्ञानिक हो । इस कसौटी पर मोक्ष तत्त्व ज्ञान व वीतराग साधना शत प्रतिशत खरे उतरते है । ये मानव-समाज की व्यष्टि व समष्टि रूप में समस्त बुराइयों, दुःखों व समस्याओं का अन्त करने में समर्थ हैं । अतः तत्त्व वेत्ताओं व साधकों का यह दायित्व व कर्तव्य है कि युग की इस मांग को पूरी करने में अपना योग दें । तत्त्वज्ञान व साधना को 'व्यावहारिक व वैज्ञानिक अध्यात्मवाद' के रूप में प्रस्तुत करें। साधना के इस रूप को आज का सम्पूर्ण विश्व अपनाने को तैयार है । यदि विज्ञान के साथ 'व्यावहारिक अध्यात्मवाद' का योग न हुआ तो विज्ञान से विश्व का विनाश अवश्यंभावी है। यदि विज्ञान के साथ व्यावहारिक अध्यात्मवाद का योग हो गया तो आध्यात्मिक विकास व भौतिक विकास परस्पर पूरक व प्रेरक होकर आज से अनेक गुने अधिक बढ़ जायेंगें, जिससे इसी धरती पर स्वर्गीय सुख व अपवर्गीय आनन्द की उपलब्धि संभव हो सकेगी।
मेरे जीवन-निर्माण एवं आध्यात्मिक रुचि जागरण करने में आचार्यप्रवर श्री हस्तीमलजी म.सा. की महती कृपा रही।
जैतत्त्व सार
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