________________ लाभ उठाते हैं. क्योंकि-जव श्रीभगवान् के आगमन का पता उक्त वादित्र द्वारा लग जाता है तव अनेक भव्य प्राणी श्रीभगवान् की वाणी के द्वारा अपना कल्याण करते है। 8 श्रातपत्र-देवते आकाश में खड़े हुए श्रीभगवत् के शिर पर तीन छत्र करते हैं। जिस से भव्य प्राणियों को यह सूचित किया जाता है किश्रीभगवान् त्रैलोक्य के स्वामी है।। ___ यह पाठ प्रातिहार्य श्रीभगवान् के पुण्योदय से प्रकट होते हैं और ज्ञानातिशय 1 पूजातिशय 2 वागतिशय 3 तथा अपायागमातिशय 4 यह चारों अतिशय मिला कर श्रीभगवान् के मुख्यतया द्वादश गुण होते हैं तथा अनंतशान, 1 अनंतदर्शन, 2 अनंत चारित्र, 3 और अनंत बलवीर्य 4 यह चारों गुण मिला कर श्रीभगवान् के मुख्यतया द्वादश गुण होते है / इस पृथ्वी मंडल में श्रीभगवान् अपने पवित्र उपदेशों द्वारा प्राणी मात्र का कल्याण करते रहते हैं, और जिन के अनंत गुण होने से अनंत नाम कहे जा सकते हैं; तथा जिनसहस्रादि स्तोत्रों में श्रीभगवान् के 1000 नाम वर्णन किये गए हैं। भव्य प्राणी श्रीभगवान् के अनेक शुभ नामों से अपना कल्याण कर सकते हैं, और वे शुभ नाम आध्यात्मिक प्रकाश के लिये एक मुख्य साधन वन जाते है / जैसे “जिन ध्यान" करते हुए फिर वर्ण-विपर्यय के करने से "निज ध्यान हो जाता है, ठीक उसी प्रकार प्रत्येक नाम आध्यात्मिक प्रकाश के लिये कार्य साधक हो जाता है / जव उन नामों के कारण आध्यात्मिक प्रकाश ठीक हो गया, तव व्यवहार की अपेक्षा से उनका किया हुआ प्रकाश ही कहा जाता है। जैसे चचुरिंद्रिय के होने पर भी वस्तु के देखने के लिये प्रकाश सहकारी कारण किसी अपेक्षा से माना जा सकता है। ठीक उसी प्रकार श्रीभगवान् के गुणानुवाद के कारण से जो प्रकाश हुआ है, वह निमित्त कारण होने से उन्हीं का उपकार माना जा सकता है। क्योंकि यह वात स्वाभाविक सिद्ध है कि-जिस आत्मा का जिस प्रकार का "ध्येय" होगा प्रायः उस आत्मा में फिर उसी प्रकार के गुण प्रगट होने लग जाते हैं। जैसे कि-किसी विषयी अात्मा का "ध्येय एक युवती होती है, तो फिर वह विषयी आत्मा उस 'ध्येय के माहात्म्य से विषय वासना में उत्कट भाव रखने लग जाता है। इतना ही नहीं किन्तु फिर वह अपनी इच्छा पूर्ति करने के लिये नाना प्रकार की योग्य और अयोग्य क्रियाओं में प्रवृत्ति करने लग जाता है, ठीक उसी प्रकार जिस आत्मा का " ध्येय" वीतराग प्रभु होते हैं उस आत्मा के आत्मप्रदेशों से राग और द्वेष के भाव हट कर समता भाव में आने लग जाते है। क्योंकि-फिर वह अात्मा चीतराग पद के प्राप्त करने की चेष्टाएं करने लग