________________ ( 232 ) अब शास्त्रकार पुद्गल द्रव्य के लक्षणविषय कहते हैंसद्धंधयार उज्जोओ पहाछायातवे इया। वनगंधरसा फासा पुग्गलाणं तु लक्षणम् // 12 // उत्तराध्ययन सूत्र 28 गा..१२ वृत्ति-शब्दो ध्वनिरूपपौगलिकस्तथान्धकारं तदपि पुद्गलरूपं तथा उद्योतोरत्नादीनां प्रकाशस्तथाप्रभा चन्द्रादीनां प्रकाशः तथा छाया वृक्षादीनां छाया शैत्यगुणा तथा प्रातपोरवरुष्णप्रकाशा इति पुद्गलस्वरूपं चा शब्दः समुच्चये वर्णगंधरसस्पर्शाः पुद्गलानां लक्षणं ज्ञेयं वर्णाः शुक्लपीतहरितरतकृष्णादयो गंधो दुर्गन्धसुगन्धात्मको गुणा रसाःषदतीक्ष्णकटुककषायाम्लमधुरलवणाद्याः स्पशाः शीतोष्णखरमृदुस्निग्धरुक्षलघुगुर्वादयः एते सर्वेपि पुद्गलास्तिकायस्कन्धलक्षणवाच्याः शेयाः इत्यर्थः एमिर्लक्षणेरेव पुद्गला लक्ष्यन्ते इति भावः // भावार्थ-पांच द्रव्यों के लक्षण कथन करने के पश्चात् अब छठे पुद्गल द्रव्य के लक्षण विषय सूत्रकार कहते है। स्मृति रहे पूर्वोक्त पांच द्रव्य अरूपी और अमूर्तिक कथन किये गए हैं / परंच पुद्गलद्रव्य रूपी है / इसलिये इसके लक्षण भी रूपी ही हैं / जो शब्द होता है वह पुद्गलात्मक है। क्योंकि जिस समय पुदल द्रव्य के परमाणु स्कन्ध रूप में परिणत होते हैं, तब उनमें परस्पर संघर्षण होने के कारण एक ध्वनि उत्पन्न हो जाती है / वह ध्वनि अथवा शब्द तीन प्रकार से प्रतिपादन किया गया है। जैसे कि जीव, अजीव और मिश्रित शब्द / जिस पुद्गलद्रव्य को लेकर जीव भाषण करता है वह जीव शब्द कहा जाता है। जो अजीव पदार्थ परस्पर संघर्षण से शब्द उत्पन्न करते हैं उसे अजीव शब्द कहते हैं / जीव और अजीव के मिलने से जो शब्द उत्पन्न होता है उसका नाम मिश्रित शब्द है जैसे वीण का वजना। जिस प्रकार शब्द पुद्गल का लक्षण है उसी प्रकार अंधकार भी पुद्गल द्रव्य का ही लक्षण है / क्योंकि यह कोई अभाव पदार्थ नहीं है / जिस प्रकार, प्रकाश की सिद्धि की जाती है, ठीक उसी प्रकार अंधकार की भी सिद्धि होती है। रत्नादि का उद्योत, चन्द्रादि की प्रभा (प्रकाश), वृक्षादि की छाया जो शैत्यगुण युक्त होती है, रवि (सूर्य) का आतप (प्रकाश) यह सब पुगल द्रव्य के लक्षण हैं। जिस प्रकार ऊपर लक्षण कथन किये गए हैं ठीक उसी प्रकार पांच वर्ण जैसे—कृष्ण, पोत, हरित, रक्त और श्वेतः दो गंध जैसेसुगंध और दुर्गन्धः पांच रस जैसे-तीच्ण, कटुक, कषाय, खट्टा और मधुर, अाठ स्पर्श जैसे कि--कर्कश, सकोमल, लघु, गुरु, रूक्ष, स्निग्ध, शीत और