________________ ( 266 ) यह ज्ञान विपरीत भावों को देखता है अतएव इसका नाम विभंग ज्ञान है। इसमें भी जीव का परिणमन भाव होता है। इसी लिये अज्ञान परिणाम जीव का माना गया है। जव जीव का बलवीर्यात्मा उक्त अज्ञानों में प्रवृत्त होता है तब जीव का उक्त अज्ञानों में परिणाम माना जाता है। अव शास्त्रकार इसके अनन्तर दर्शन परिणाम विषय कहते हैंदसणपरिणामेणं भंते कतिविधे प. ? गोयमा! तिविहे प. तंजहासम्मदसणपरिणामे मिच्छादसणपरिणामे सम्ममिच्छा दंसणपरिणामे / भावार्थ-हे भगवन् ! दर्शनपरिणाम कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? हे गौतम ! दर्शन परिणाम तीन प्रकार से वर्णन किया गया है जैसेकिसम्यग्दर्शनपरिणाम, मिथ्यादर्शनपरिणाम और सम्यमिथ्यात्वदर्शन परिणाम। जब पदार्थों का सम्यग्रीति से स्वरूप जाना जाता है। तब जीव के भाव सम्यग्दर्शनमय होते हैं / इसी प्रकार जव पदार्थों का स्वरूप विपरीत रूप से अनुभव किया जाता है तब जीव के भाव मिथ्यादर्शन के होते हैं यदि दोनों भावों को अवलम्बन कर पदार्थों का स्वरूप विचारा जाए तब जीव के सम्यमिथ्यात्वदर्शन होता है / इस कथन का भूल सिद्धान्त यह है कि दर्शन शब्द का पर्यायवाची शब्द निश्चय है / सो जीवों का तीन प्रकार का निश्चय देखने में आता है जैसेकि-सम्यग् (यथार्थ) निश्चय, मिथ्यानिश्चय और मिश्रित निश्चय / मोक्षारूढ़ होने के लिये आत्मा को सम्यनिश्चय की अत्यन्त आवश्यकता है क्योकि यावत्काल पर्यन्त आत्मा सम्यग्दर्शन के भाव में परिणत नहीं होता तावत्काल पर्यन्त वह मोक्षसाधन की योगक्रियाओं में भी प्रारूढ़ नहीं हो सकता / / अतएव मोक्षगमन के लिये सम्यग्दर्शन मूल वीज है। इसी द्वारा आत्मा अपना कल्याण कर सकता है। मिथ्यादर्शन द्वारा संसार भ्रमण का विशेष लाभ जीव को होता है अर्थात् मिथ्यादर्शन से ही संसार में जीव की स्थिति है / मिश्र दर्शन भी संसार से निवृत्ति कराने में असमर्थ है / सो जिज्ञासु आत्माओं को सम्यग्दर्शन के आश्रित होकर निर्वाण प्राप्ति अवश्यमेव करनी चाहिए / इसका सारांश यह है कि-जीव का परिणाम उक्त तीनों दर्शनों में हो जाता है। अव शास्त्रकार दर्शनपरिणाम के अनन्तर चारित्र परिणाम के विषय में कहते हैं। चरित्तपरिणामेणं भंते कतिविधे प.? गोयमा पंचविधे य.तं.सामाइय चरित्तपरिणामे छेदोवठावणियचरित्तपरिणाम परिहारविसुद्धियचरित्त परिरणामे मुहुमसंपरायचरित्तपरिणामे अहक्खायचरित्तपरिणामे /