Book Title: Jain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
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Page 323
________________ ( 302 ) दसणपरिणामेणं तिरिणविदंसणा चरित्तपरिणामेणं, चरित्तावि अचरित्तावि चरित्ताचरित्तावि वेदपरिणामेणं पुरिसवेदगावि इत्थिवेदगावि नपुंसगवेदगावि अवेदगावि // भावार्थ-जिस प्रकार उक्त परिणामों का वर्णन किया गया है उसी प्रकार मनुष्यपरिणाम का भी वर्णन किया गया है केवल भेद इतना ही है किमनुष्य मोक्षगमन कर सकता है। अतः वह कतिपय परिणामों से सर्वथा विमुक्त हो जाता है। जैसेकि 1 मनुष्य गतिपरिणाम की अपेक्षा से मनुष्य गति परिणाम वाला है। 2 इंद्रियपरिणाम की अपेक्षा से पंचेंद्रिय भी है और अनिन्द्रिय भी है। क्योंकि जब जीव केवल ज्ञानयुक्त होजाता है तब वह इंद्रियों से काम नहीं लेता अतएव फिर उसे अनिन्द्रिय ही कहा जाता है। 3 कषायपरिणाम की अपेक्षासे कषाययुक्त भी होता है। जव केवल ज्ञान उत्पन्न हो जाता है तब वही जीव अकषायी बन जाता है अर्थात् क्रोध, मान माया, लोभ से युक्त भी रहता है, परन्तु जब सर्वज्ञ भाव को प्राप्त हो जाता है तव वह जीव उक्त कषायों से सर्वथा रहित भी होजाता है।। 4 लेश्यापरिणाम की अपेक्षा से जीव छः लेश्याओं से युक्त भी रहता है और अलेश्यी भी हो जाता है। 5 योगपरिणाम की अपेक्षा से मनोयोग युक्त भी है, वचन योग युक्त भी है और काययोग युक्त भी है तथा अयोगी भी हो जाता है अर्थात् जब मोक्षारूढ होता है तब तीनों योगों से रहित होकर ही निर्वाण प्राप्त करता है। 6 उपयोगपरिणाम की अपेक्षा से साकारोपयोग युक्त और निराकारोपयोग युक्त है। 7 ज्ञान परिणाम की अपेक्षा से मति ज्ञान, श्भुत ज्ञान, अवधि ज्ञान, सनापर्यव ज्ञान और केवल ज्ञान युक्त भी हो जाता है। इसी प्रकार मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान, और विभंग शान युक्त भी होता है। ८दर्शन परिणाम की अपेक्षा से सम्यग्दर्शन, मिथ्यादर्शन और सम्यमिथ्यादर्शन युक्त भी होते हैं।' चारित्र परिणाम की अपेक्षा से चरित्री भी हैं और अचरित्री और चरित्राचरित्री भी होते हैं अर्थात् मनुष्य सर्वथा त्यागी, देशत्यागी तथा सर्वथा अविरति भी होते हैं। . 10 वेदपरिणाम की अपेक्षा से-स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद,

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