Book Title: Jain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
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Page 322
________________ ( 301 ) - भावार्थ-द्वीन्द्रिय जीवंगति परिणाम की अपेक्षा से तिर्यग् गति परिणाम से परिणत हैं / इंद्रियपरिणाम से जीव द्वीन्द्रिय हैं क्योंकि मुख और शरीर ही इनकी इंद्रियां हैं। किन्तु शेष वर्णन नारकीयवत् है। केवल योगपरिणाम की अपेक्षा से वचनयोग और काययोग ही होता है। ज्ञान परिणाम की अपेक्षा से आभिनियोधिक ज्ञान और श्रुतज्ञान भी है तथा अज्ञान परिणाम की अपेक्षा से मतिअज्ञान और श्रुत अज्ञान भी है। अपितु विभंगज्ञान नहीं है / दर्शन परिणाम की अपेक्षा से सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि है किन्तु सम्यगूमिथ्या दृष्टि नही है। शेषवर्णन पूर्ववत् है / इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय पर्यन्त जानना चाहिए / भेद केवल इतना ही है कि-इन्द्रियों की वृद्धि कर लेनी चाहिए जैसेकि-त्रीन्द्रिय जीवों की तीन ही इंद्रियां होती हैं और चतुरिन्द्रिय जीवों की चार इंद्रियां होती है। परन्तु शेष परिणामों का वर्णन प्रग्वित् जानना चाहिये। ___ अव इनके अनन्तर सूत्रकार पचेन्द्रिय तिर्यविषय में कहते हैं: पंचेंदिय तिरिक्ख जोणिया, गतिपरिणामेणं तिरियगतियां, सेसं जहा नेरझ्याणं णवरं लेसापरिणामेणं जाच सुक्कलेसावि चरित्तपरिणामेणं णो चरित्ती अचरित्तित्रि चरित्ताचरित्तिवि वेदपरिणामेणं इथिवेदगोवि पुरिसवेदगावि णपुंसकवेदगावि // भावार्थ-पंचेंद्रिय तिर्यग्योनिक जीव गतिपरिणाम की अपेक्षा से तिर्यग्गति में परिणत है। किन्तु शेष वर्णन जैसे नारकियों का किया गया था उसी प्रकार जानना चाहिये। भेद इतना ही है कि लेश्यापरिणाम की अपेक्षा से पंचेंद्रिय तिर्यग्योनिकों में कृष्ण लेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या इन छः ही लेश्याओं में उक्त जीवों के परिणाम हो जाते हैं। यदि चारित्रपरिणाम की अपेक्षा से उनको देखते हैं तब वे जीव सर्वथा चारित्री नहीं होते किन्तु अचरित्री और चारित्राचरित्री होजाते हैं, परंच वेद परिणाम की अपेक्षा से वे जीव स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद इस प्रकार तीनों वेदों में परिणत हो रहे हैं। अव इसके अनंतर मनुष्य परिणाम विपर्य कहते है मणुस्साणं गतिपरिणामेणं मणुयगतिया इंदियपरिणामेणं पंचिंदिया 'अणिदियावि कसायपरिणामेणं कोहकसायीवि जाव अकसाईवि लेसा परिणामेणं कएहलेसावि जाव अलेसावि जोगपरिणामेणं मणजोगीवि जाव अजोगीवि उपभोगपरिणामेणं जहा नेरड्या णाणपरिणामेणं आभिणिबोहियणाणीवि जाच केवलनाणीवि अणाणंपरिणामेणं तिरिण विश्रणाणा,

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