________________ ( 246 ) ही व्यवहार पक्ष में पदार्थों की नूतनता वा पुरातनता प्रतिक्षण दृष्टिगोचर होती रहती है। अतएव जैन-दर्शन ने स्याद्वाद के आश्रित होकर उक्त दोनों पक्ष उक्त ही प्रकार से ग्रहण किये हैं। पार्हत दर्शन प्रत्येक पदार्थ की उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यरूप तीनों दशाएँ स्वीकार करता है। जब प्रत्येक पदार्थ उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यरूप गुण वाला है तब उस पदार्थ में नित्य और अनित्य ये दोनों पक्ष भली प्रकार से माने जा सकते हैं। ऐसा मानने से व्यवहार पक्ष में कोई भी विरोध भाव उपस्थित नहीं होता। जिस प्रकार पदार्थों के विषय में कथन किया गया है उसी प्रकार जगत् विषय में भी जानना चाहिए। यदि इस विषय में यह शंका की जाए कि जब जगत् का जैन-मत में कोई भी निर्माता नहीं मानागया है तव जगत् के विषय में नित्यता और अनित्यतारूप धर्म किस प्रकार माने जा सकेंगे? इस विषय में जैन-मत को उक्त दोनों धर्मों में से केवल एक धर्म को ही स्वीकार करना पड़ेगा / जव एक धर्म स्वीकार किया गया तब वह धर्म एकान्त होने से युक्तियुक्त नहीं रहेगा। जब वह धर्म युक्ति को सहन न कर सका तव जैन-मत का कोई भी युक्तियुक्त सिद्धान्त नहीं ठहरेगा / इस शंका का समाधान यों है कि जैनमत में नित्यता और अनित्यता रूप दोनों धर्म जगत् विषय में स्वीकार किये गए हैं जो युक्तियुक्त होने से सर्वप्रकार से माननीय सिद्ध होते हैं / यद्यपि जैनमत ईश्वर को जगत्-कर्ता स्वीकार नहीं करता तथापि प्रत्येक पदार्थ को उत्पाद व्यय और ध्रौव्य धर्म वाला मानता है। निम्न पाठ के देखने से सर्व शंकाओं का समाधान हो जायगा / तथा च पाठः तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे वियडभोती यावि होत्था तएणं समणस्स भगवत्रो महावीरस्स वियट्ट भोगियस्स सरीरं ओरालं सिंगारं कल्लाणं सिबंधएणं मंगलं सस्सिरीयं अणलंकिय विभूसियं लक्खण वंजण गुणोववेयं सिरीए अतीव 2 उबसोभेमाणे चिटइ / तएणं से खदए कच्चायणस्स गोत्ते समणस्स भगवत्रो महावीरस्स वियट्ट भोगिस्स सरीरं ओरालं जाव अतीवर उक्सोभेमाणं पासइरत्ता हह तुष्ठ चित्तमाणदिए पीइमणे परम सोमस्सिए हरिस वस विसप्पमाणहियए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइरत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं प्पयाहिणं करेइ जाव पज्जुवासइ / खंदयाति समणे. भगवं महावीरे