________________ ठीक उसी प्रकार सर्वत्र समझना चाहिए। प्रश्न-आयुष्कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर-जिसके द्वारा आत्मा चारोंगतियों में स्थिति करता है जैसेकि-- नरक गति की श्रायु 1, तिर्यग् गति की श्रायु 2, मनुष्य गति की आयु 3 और देवगति की श्रायुः 4 / प्रश्न-नाम कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर-जिस कर्म के द्वारा शरीर की रचना होती है उसे नाम कर्म कहते हैं। आगे शुभ और अशुभ श्रादि इसके अनेक भेद हैं। प्रश्न-गोत्र कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर-जिस कर्म के द्वारा जाति आदि की उश्चता और नीचता दीख पड़ती है, उसे गोत्र कहते हैं अर्थात् इस कर्म के द्वारा आत्मा संसार में उच्च और नीच माना जाता है। प्रश्न-अंतराय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर-जिस कर्म के द्वारा नाना प्रकार के विघ्न उपस्थित होते है नथा जो पदार्थ पास हैं ये छिन्न भिन्न हो जाएँ और जिन पदार्थों के मिलने की आशा हो. वे न मिल सके तव जानना चाहिए कि अव अंतराय कर्म का विशेष उदय हो रहा है। प्रश्न-ये पाठों ही कर्म किस समय वाँधे जाते हैं ? . उत्तर-प्रतिक्षण (समय२) आठों ही कर्म चाँधे जाते हैं, परन्तु आयुष्कर्म प्रायः निज श्रायु के तृतीय भाग में जीव वांधते हैं। अतः आयुष्कर्म को छोड़ कर सातों ही कर्म प्रतिसमय निरन्तर चाँधे जाते हैं। देव और नारकीय अपनी छः मास शायु शेष रहजाने पर परलोक का आयुष्कर्म वाँधते हैं। मनुष्य और तियचों के सोपकर्म वा निरुप कर्म श्रादि अनेक भेद हैं परन्तु यह बात निर्विवाद सिद्ध है कि-विना आयुष्कर्म के चाँधे कोई भी जीव परलोक की यात्रा के लिए प्रवृत्त नहीं होता। प्रश्न-कमाँ के परमाणु कितने 2 होते हैं ? उत्तर--प्रत्येक कर्म के अनंत 2 परमाणु होते हैं / इतना ही नहीं किन्तु जीव के असंख्यात प्रदेशों पर कमों के अनंत 2 परमाणुओं का समूह जमा हुआ है, उन्हें कर्मों की वर्गणायें भी कहते हैं / परन्तु स्थिति युक्त होने से अपने 2 समय पर उन कर्मों के रस का अनुभव किया जाता है। प्रश्न-पाठ कर्म किस प्रकार जीव वाँधते हैं ? कहणं भंते जीवा अठकम्म पगडीओ बंधइ ? गोयमा ! नाणावरणि