Book Title: Jain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
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Page 287
________________ ( 266 ) रहित हो जाता है, किन्तु यह कर्म केवल तीन कषायों के उदय से ही यांधा जाता है / तथा च पाठः मोहणिजकम्मा सरीरप्पयोगपुच्छा, गोयमा ! तिव्वकोहयाए तिव्व माणयाए तिव्वमायाए तिव्वलोहाए तिव्वदंसणमोहणिज्जयाए तिव्व चरित्तमोहणिज्जयाए // मोहणिजकम्मासरीर जाव पयोगबंधे / भग० शत० 8 उद्देश है। भावार्थ-श्री गौतम स्वामी जी श्रीश्रमण भगवान महावीर स्वामी से पूछते हैं कि हे भगवन् ! मोहनीय कार्मण शरीर प्रयोगवंध किस कर्म के उदय से होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में श्री भगवान् प्रतिपादन करते हैं किहे गौतम ! तीन क्रोध, तीव्र मान, तीव्र माया, तीन लोभ, तीव्र दर्शन मोहनीय कर्म और तीव्र चारित्र मोहनीय कर्म के द्वारा मोहनीय कार्मण शरीर का बंध होजाता है / तात्पर्य इतना ही है कि चारों कषाय और दर्शन तथा चारित्र में मूढ़ता इन छ: कारणों से मोहनीय कर्म का बंध होजाता है। जिस का परिणाम जीव को उक्त प्रकारेण भोगना पड़ता है और वह धर्मपथ से प्रायः पराङ्मुख ही रहता है। एवं सदैव सांसारिक पदार्थों के प्रासेवन की इच्छा में लगा रहता है प्रश्न-नैरयिक आयुष्कार्मण शरीर का वध किस प्रकार से किया जाताहै ? उत्तर-जो जो कर्म (क्रियाएँ) नरक के आयुप के प्रतिपादन किये गए हैं उनके पासेवन से नैरयिकायुष्कार्मण शरीर का वध किया जाता है। जैसेकि नेरयाउयकम्मासरीरप्पयोग बंधेणं भंते ! पुच्छा ? गोयमा ! महारंभयाए महापरिग्णहयाए कुणिमाहारेणं पचिंदियवहेणं नेरइयाउयकम्मा सरीरप्पयोग नामाए कम्मस्स उदएणं नेरझ्याउयकम्मासरीर जाव पयोगवंधे // भगवतीसूत्र श. 8 उ०६॥ भावार्थ हे भगवन् ! नरक की आयु जीव किस प्रकार से बांधते हैं ? इसके उत्तर में श्रीभगवान् प्रतिपादन करते हैं कि हे गौतम ! महाहिंसा (आरम्भ) करने से, महापरिग्रह की लालसा से, मृतक वा मांस भक्षण से और पंचेन्द्रिय जीवों के वध से जीव नरक के कार्मण शरीर की उपार्जना करलेता है। जिसका परिणाम यह होता है कि-मर कर नरक में उत्पन्न होना पड़ता है / प्रश्न-तिर्यग्भव की आयु जीव किन 2 कारणों से वांधते हैं ? उत्तर-नाना प्रकार की छलादि क्रियाओं के करने से जीव पशु योनि की आयु बांध लेते हैं जैसेकि

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