Book Title: Jain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
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Page 296
________________ ( 275 ) सम्बन्ध होने पर शोक करना / (3) पीड़ाचिन्तवन-पीड़ा रोग होने पर दुःखी होना / (8) निदान-अागामी भोगों की चाह से जलना। रौद्रध्यान-चार तरह का होता है / (1) हिंसानन्द-हिंसा करने कराने में व हिंसा हुई सुनकर श्रीनन्द मानना / (2) मृषानन्द-असत्य बोलकर, बुलाकर व बोला हुश्रा जान करानन्दं मानना / (3) चौर्यानन्द-चोरी करके, कराके व चोरी हुई सुनकर आनन्द मानना / (4) परिग्रहानन्द-परिग्रह बढ़ाकर, बढ़वाकर व बढ़ती हुई देखकर हर्ष मानना। धर्मध्यान-चार प्रकार का है / (1) आज्ञाविचय-जिनेन्द्र की आज्ञानुसार आगम के द्वारा तत्वों का विचार करना / (2) अपायविचयअपने व अन्य जीवों के अज्ञान व कर्म के नाश का उपाय विचार करना (3) त्रिपाकविचय-श्रापको व अन्य जीवों को सुखी या दुःखी देखकर कमों के फल का स्वरूप विचारना / (4) सस्थानविचय-इस लोक का तथा आत्मा का श्राकार वा स्वरूप का विचार करना / इसके चार भेद हैं:(१) पिंडस्थ (2) पदस्थ (3) रूपस्थ (8) रूपातीत / पिंडस्थध्यान ध्यान करने वाला मन, वचन, काय शुद्धकर एकान्त स्थान में जाकर पद्मासन या खड़े श्रासन व अन्य किसी सिद्धादि श्रासन से तिष्ठकर अपने पिंड या शरीर में विराजित आत्मा का ध्यान करे। सो पिंडस्थ ध्यान है / इसकी पांच धारणाएं हैं: 1 पार्थिवीधारणा-इस मध्यलोक को क्षीर समुद्र के समान निर्मल देख कर उसके मध्य में एक लाख योजन ब्यास वाला जम्बूद्वीप के समान ताए हुए सुवर्ण के रंग का एक हजार पाँखड़ी का एक कमल विचारे / इस कमल के सुमेरु पर्वत समान पीत रंग की ऊँची किर्णिका विचारे / फिर इस पर्वत के ऊपर पाण्डुक वन में पाण्डुक शिला पर एक स्फटिक मणी का सिंहासन विचारे और यह देखे कि मैं इसीपर अपने कर्मों को नाश करने के लिये बैठा हूं। इतना ध्यान वार वार करके जमावे और अभ्यास करे / जव अभ्यास होजावे तब दूसरीधारणा का मनन करे। २अग्निधारणा-उसी सिंहासन पर बैठा हुआ ध्यान करने वाला यह सोचे कि मेरे नाभि के स्थान में भीतर ऊपर मुख किये खिला हुवा एक 16 पाँखड़ी का श्वेत कमल है। उसके हर एक पत्ते पर अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः ऐसे 16 स्वर क्रमसे पीले लिखे हैं व वीच में हैं पीला लिखा है। इसी कमल के ऊपर हृदय स्थान में एक कमल औंधा खिला हुआ पाठे पत्ते का उड़ते हुए काले रंग को विचारे जो ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु. नाम, गोत्र, अन्तराय, ऐसे आठ कर्म रूप हैं ऐसा सोचे /

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